शांति की पहल का स्वागत

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Parichay Das

— परिचय दास —

ह खबर आई कि पाकिस्तान के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारत से संपर्क कर युद्धविराम की पहल की। इसके पश्चात भारत ने इस पर सहमति जताई। यह घटनाक्रम दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण संकेतक माना जा सकता है। इस बीच उल्लेखनीय है कि सिंधु-जल-समझौते पर रोक बरक़रार रहेगा। इस समझौते के स्थगन को पाकिस्तान युद्ध की घोषणा मानता रहा है। दूसरी बात, पाकिस्तान के भेजे अधिकतर ड्रोन भारत ने मार गिराये थे।

भारत का रुख स्पष्ट और सैद्धांतिक रहा है—वह आतंकवाद के सख्त खिलाफ है और किसी भी प्रकार की हिंसा को बढ़ावा नहीं देता। भारत हमेशा से यह कहता आया है कि वह युद्ध का पक्षधर नहीं है बल्कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखता है। भारत की विदेश नीति का मूल आधार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना रही है, जो पूरे विश्व को एक परिवार मानने की दृष्टि प्रदान करती है।

पाकिस्तान द्वारा युद्धविराम की पहल करना, भले ही सामरिक दबाव या आंतरिक परिस्थितियों के चलते हो लेकिन यह एक सकारात्मक संकेत है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। भारत की ओर से इस पर सहमति देना न केवल उसकी परिपक्वता का परिचायक है बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत शांति को अवसर देने के लिए हमेशा तत्पर रहता है, बशर्ते आतंक और हिंसा पर लगाम हो।

यह भी स्मरणीय है कि सीमा पर अशांति न केवल सैनिकों के लिए जानलेवा होती है बल्कि सीमा के दोनों ओर रहने वाले आम नागरिकों के जीवन को भी प्रभावित करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और सामाजिक जीवन—सब कुछ संकटग्रस्त हो जाता है। ऐसे में युद्धविराम जैसी पहलें आम जनजीवन में राहत पहुंचाने का कार्य करती हैं।

हालांकि यह पहल स्वागतयोग्य है लेकिन इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि पाकिस्तान अपनी ज़मीन से संचालित हो रहे आतंकवादी संगठनों पर कठोर कार्रवाई करे। बिना इस मूल समस्या के समाधान के, युद्धविराम केवल अस्थायी राहत बन कर रह जाएगा।

अतः यह समय है जब दोनों देश परस्पर विश्वास और संवाद की भावना को मज़बूत करें। भारत ने अपनी ओर से सकारात्मकता दिखाई है—अब यह पाकिस्तान पर है कि वह इस विश्वास को किस हद तक कायम रख पाता है। स्थायी शांति तभी संभव है जब दोनों पक्ष अपने-अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करें और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर समझौते के बजाय कठोरता दिखाएं।

भारत-पाकिस्तान संबंध और शांति की पहल: एक संतुलित विश्लेषण

हाल ही में यह समाचार सामने आया कि पाकिस्तान के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारत को फोन कर युद्धविराम की अपील की, जिसे भारत ने स्वीकार कर लिया। यह घटनाक्रम भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नई परत जोड़ता है, विशेषकर उस परिप्रेक्ष्य में जब दोनों देशों के बीच तनाव, विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में, लंबे समय से चिंता का विषय रहा है।

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध 1947 के विभाजन के समय से ही जटिल रहे हैं। 1947, 1965, 1971 और 1999 में दोनों देशों के बीच चार युद्ध हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त सीमा पर अक्सर मुठभेड़ और गोलीबारी होती रही है। 2003 में पहली बार औपचारिक युद्धविराम समझौता हुआ था, जिसने कुछ वर्षों तक सीमाओं पर शांति बनाए रखी। लेकिन समय-समय पर पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम उल्लंघन, घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों ने इस शांति को भंग किया।

भारत की विदेश नीति में “शांति के लिए शक्ति” का सिद्धांत रहा है। भारत मानता है कि संवाद और सहयोग की राह खुली रहनी चाहिए, लेकिन आतंकवाद के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान को अपनी धरती से संचालित आतंकी संगठनों पर रोक लगानी होगी। पुलवामा हमले (2019) और उरी हमले (2016) के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे कदम उठाकर यह संकेत दिया कि वह अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इसके बावजूद, जब भी पाकिस्तान की ओर से शांति की पहल होती है—चाहे वह राजनीतिक दबाव में हो या अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य में—भारत ने उसे एक अवसर के रूप में लिया है। हाल की पहल भी इसी नीति की कड़ी है।

वर्तमान समय में, जब पूरी दुनिया आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रही है, युद्ध या सीमा संघर्ष किसी भी देश के लिए हितकारी नहीं है। भारत ने यह साबित किया है कि वह युद्ध का समर्थक नहीं है, बल्कि वह एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में शांति और विकास का पक्षधर है। उसकी प्राथमिकता है – आंतरिक विकास, क्षेत्रीय सहयोग और वैश्विक भूमिका को मजबूत करना। पाकिस्तान की ओर से युद्धविराम की मांग, चाहे किसी दबाव के तहत हो या आंतरिक विवशताओं से प्रेरित, परिपक्व राजनीति की ओर एक संकेत हो सकता है। भारत की सहमति, बिना आक्रामक भाषा या शर्तों के, इस बात का प्रमाण है कि वह संवाद को एक प्रभावशाली माध्यम मानता है, बशर्ते दूसरी ओर से भी विश्वास और ईमानदारी दिखाई जाए।

भारत-पाकिस्तान संबंधों में स्थायी शांति केवल युद्धविराम से नहीं आएगी, बल्कि आतंकवाद, कट्टरता और अविश्वास जैसी समस्याओं के समाधान से आएगी। भारत ने बार-बार यह जताया है कि वह शांति का पक्षधर है, लेकिन आत्म-संरक्षण और राष्ट्रहित उसके लिए सर्वोपरि हैं। अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह इस युद्धविराम को केवल एक रणनीतिक कदम न बनाकर, एक स्थायी नीति में बदले। दोनों देशों के बीच संवाद और विश्वास की बहाली केवल शांति लाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया में स्थिरता, सहयोग और विकास की नींव भी बन सकती है।

वैश्विक दबाव और भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ

पाकिस्तान की ओर से युद्धविराम की पहल को केवल द्विपक्षीय मामला मानना एक सीमित दृष्टिकोण होगा। हाल के वर्षों में पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार दबाव बढ़ा है। फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) ने उसे लंबे समय तक ‘ग्रे लिस्ट’ में रखा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और विदेश व्यापार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। साथ ही अमेरिका, चीन, सऊदी अरब जैसे सहयोगी देशों ने भी पाकिस्तान से आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने की उम्मीद जताई है।

ऐसे में भारत से युद्धविराम की अपील पाकिस्तान की कूटनीतिक आवश्यकता भी बन गई थी। भारत के लिए यह एक अवसर था जहाँ वह बिना झुके शांति का मार्ग अपना सकता था और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी परिपक्व छवि को और मजबूत कर सकता था।

भारत की रणनीतिक स्थिति

भारत अब केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति है। उसकी विदेश नीति “नेबरहुड फर्स्ट”, “एक्ट ईस्ट”, और “मल्टी-अलाइंमेंट” जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। भारत का लक्ष्य है – आर्थिक विकास, विज्ञान और तकनीक में आत्मनिर्भरता, और वैश्विक मंचों (जैसे UN, G20, BRICS) पर प्रभावशाली भूमिका।
ऐसे में सीमाओं पर निरंतर तनाव भारत के विकास लक्ष्यों को बाधित करता है। यही कारण है कि भारत, बिना किसी कमजोरी दिखाए, ऐसे युद्धविराम को स्वीकार करता है, जिससे सीमा पर सामान्य स्थिति बनी रहे और विकास पर फोकस जारी रहे।

मानवीय और सामाजिक पहलू

LOC (लाइन ऑफ कंट्रोल) के आस-पास रहने वाले लाखों नागरिक निरंतर तनाव और गोलीबारी की आशंका में जीते हैं। स्कूलों का बंद होना, विस्थापन, फसलों का नुकसान और जान-माल की हानि—ये सब युद्ध जैसी स्थितियों का स्थायी दुष्परिणाम हैं।
युद्धविराम का सबसे बड़ा लाभ इन्हीं निर्दोष नागरिकों को मिलता है। भारत की नीति हमेशा नागरिकों की सुरक्षा और सामान्य जीवन की बहाली को प्राथमिकता देती रही है।

मीडिया और जनमत की भूमिका

भारत में लोकतांत्रिक ढाँचे और स्वतंत्र मीडिया की मौजूदगी के कारण, सरकार को जनभावनाओं और सार्वजनिक विचारधाराओं का ध्यान रखना होता है। भारतीय जनता आतंकवाद के प्रति सख्त रुख की अपेक्षा रखती है, लेकिन साथ ही यह भी चाहती है कि देश युद्ध के बजाय विकास और शांति की राह पर अग्रसर हो। सरकार द्वारा युद्धविराम पर सहमति देने का निर्णय इस संतुलन को ध्यान में रखकर लिया गया है, जिससे एक ओर राष्ट्रहित सुरक्षित रहे और दूसरी ओर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि सशक्त बने।

भारत-पाकिस्तान युद्धविराम की पहल कोई साधारण घटना नहीं है। यह राजनीतिक, कूटनीतिक, सामाजिक और मानवीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत ने यह दिखाया है कि वह संयम, विवेक और शक्ति—तीनों का संतुलित उपयोग करने में सक्षम है।
यदि पाकिस्तान अपनी जमीन से संचालित आतंकी ढाँचों को वास्तव में नष्ट करने का साहस दिखाता है और द्विपक्षीय संवाद को प्राथमिकता देता है, तो यह युद्धविराम भविष्य की स्थायी शांति का आधार बन सकता है।


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