गांधी अकेला चला है!

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chanchal

— चंचल —

3 जून 1947। इतिहास की बहुत बड़ी तारीख़ है ।  इतिहास ठहरा होगा , सवाल दर सवाल से गुज़रा होगा – कहाँ से शुरू किया जाय ?  भारत आज़ाद होगा , अंगरेजो साम्राज्य का फ़ैसला हो चुका है, लेकिन के साथ । ब्रिटिश संसद ने भारत के लिए अपना आख़िरी वायसराय तय किया है लार्ड माउंटबेटन को । वे भारत आ रहे हैं भारत को सत्ता सौंपने । उनके पास एक प्लान है उस प्लान को इतिहास माउंट बेटन प्लान कहता है । उस प्लान में वह “ लेकिन “ लगा हुआ है । लार्ड माउंट बेटन निहायत परेशानी में हैं कि इस लेकिन को बग़ैर गांधी को समझाए , हल नही किया जा सकता । उस लेकिन में है भारत का बँटवारा । प्लान में चर्चिल की सोच बार बार ध्वनित होती क़ि भारत के जितने भी टुकड़े हो सकें कर दो । तीन तो निश्चित ही । ब्रिटिश साम्राज्य के दो मोहरे सावरकर और मोहम्मद वली जिन्ना भारत के बँटवारे की रूपरेखा बना चुके हैं । लेकिन कांग्रेस कैसे तैयार हो बँटवारे के लिए ? इस सवाल को जिन्ना हल करने लगे । जिन्ना ने मुस्लिम लीग की तरफ़ से नारा दिया Direct action “ सीधी कार्यवाही “ ।

पूरे देश में लीग ने दंगा मचा दिया इतना खून खराबा होने लगा क़ि लगा देश गृहयुद्ध में झोंक दिया गया है दंगा रोकने की एक ही शर्त है पाकिस्तान दो । गांधी जी हैं नही , वे दंगाग्रस्त कलकत्ता और नोवाख़ालि में अकेले दम पर दंगा रोक रहे हैं । खून ख़राबे ने कांग्रेस को मजबूर कर दिया और उसने बँटवारे को मान लिया । संघ , हिंदू महा सभा , कम्युनिस्ट और अंग्रेज सब के सब मिल कर जिन्ना के साथ खड़े हैं । गृहयुद्ध और बँटवारे में से एक चुनने के सवाल पर कांग्रेस ने बँटवारे को चुन लिया । माउंट बेटन प्लान तो सफल था , सारे लोग बँटवारे के पक्ष में हैं तो लार्ड माइंट बेटन की चिंता क्या है ?

लार्ड की चिंता है – गांधी । उन्हें बँटवारे पर कैसे राज़ी किया जाय ? सरकार के तमाम कारकून , एजेंसिया और विश्लेषक लार्ड माउंट बेटन को बताते हैं – कांग्रेस भी तो राज़ी हो गयी है । लार्ड माउंट बेटन का कहना था -ये सारे कांग्रेस मिल कर भी खड़े हो जायँ तो गांधी के घुटने तक भी नही पहुँच पाएँगे । गांधी की ताक़त दूसरी है , जिस दिन वह लाठी टेकता सड़क पर चल पड़ेगा लाखों लोग उसके पीछे होंगे , गांधी की ताक़त ये कांग्रेस (संगठन ) नही है । लार्ड माउंट बेटन तय करते हैं गांधी जी से मिलना है । यह मुलाक़ात 3जून 1947को हो रही है । उस दिन गांधी का मौनव्रत था । यह दुनिया के इतिहास में दर्ज सबसे बड़ा संवाद है , जो एक मुल्क के मुस्तकबिल का फ़ैसला करने जा रहा था ।कितना दिलचस्प नजारा रहा होगा – एक तरफ़ एक समूचा साम्राज्य खड़ा है , दूसरी तरफ़ एक अकेला तनहा आधी धोती पहने , आधी ओढ़े खड़ा है , बिल्कुल शांत , निश्चिंत  साम्राज्य ने वही पुरानी चाल चली जिससे कांग्रेस डर गयी थी – लार्ड माउंटबेटन आँकड़ा देते हैं कत्ले आम का , दंगे का – 4000 मारे जा चुके हैं एक लाख बेघर हो चुके हैं , बँटवारे के अलावा कोई रास्ता नही है । साम्राज्य का जवाब पुराने लिफ़ाफ़े की खोल पर पेन्सिल से लिख कर दिया है गांधी जी ने , क्यों की उस दिन उनका मौनव्रत था ।

गांधी को बँटवारे का ज़िम्मेदार बोलनेवालो अब तो दुनिया भी घूमने लगे हो , कभी ब्रिटिश संग्रहालय जा कर देखो , लिफ़ाफ़े का पिछला हिस्सा जिस पर गांधी जी जवाब लिखा था , उस संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है , उनके लिए वह अनमोल धरोहर है । लिखा है –

“ मेरी पूरी आत्मा , इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है क़ि हिंदू और मुसलमान , दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं । इस सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने जैसा है । “

विचार के दृढ़ता की ताक़त , खामोश रह कर भी बड़े बड़े साम्राज्य की नीद उड़ा देती है ।

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