— ध्रुव शुक्ल —
वाणी के संयम से आता है बोलना
अधीर, उत्तेजित, साहसहीन का
समर्थन नहीं कर पाते शब्द
किसी भी भाषा के
बसा हुआ है सबका जीवन भाषाओं में
नहीं होती शब्दों की पीठ
होती है उनसे सबके चेहरों की पहचान
जो शब्द निकल गया ज़ुबान से
देता वही सुनायी सबको
सबको वही दिखायी देता
आता है उसी का परिणाम
शब्दों को विलोपित नहीं करता आकाश
सुनायी देती रहती उनकी अनुगूॅंज
पीछा करती रहती है जीवन भर
शब्दों के बिना नहीं होता न्याय
शब्दों से ही रचा जाता सौभाग्य
शब्दों से ही दुर्भाग्य
शब्द से परे नहीं है जीवन
उसी में बसा हुआ है संसार
शब्द के उच्चारण से
दीखता है काल
दीखता है देश
देश में शब्द बसे हैं सबके दिल के
कन्नड़, मलयालम, तेलुगु और तमिल के
असमी, बङ्गाली, पंजाबी में खिल के
हिन्दी, उर्दू, गुजराती और मराठी के
अपनी-अपनी क़द-काठी के
बन गये हमारी बोली-बानी
आपस में हिल-मिल के
शब्द हैं संसार के प्रथम प्रवासी
सबकी भाषा के आजीवन न्यासी