— संतोष सिंह —
कल (१३ जुलाई) को आरा में “भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर: बेजुबानों की आवाज” पर परिचर्चा हुई। जिस तरह से संवाद को प्रिय मित्र, लेखक, समाज और साहित्य को पैनी नजर से देखने वाले और पढ़ने वाले भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी सुशील कुमार जी ने आगे बढ़ाया, मुझे बहुत गहरी तसल्ली हुई। एक तो किताब कोई कितने अंदर जाकर पढ़ सकता और कितना अलग प्रश्न पूछ सकता है। प्रश्न बहुतेरे हुए, मुझे १९५० के पहले के कर्पूरी पर अब तक की ३० के करीब परिचर्चाओं पर कम ही प्रश्न पूछे गए थे। मै मेकिंग ऑफ कर्पूरी के प्रश्नों से अभिभूत हुआ। लोग भवन की बात करते हैं, निर्माण की प्रक्रिया भूल जाते हैं।
बाहरलाल, लगभग ७० मिनट के संवाद और अगले ३५ मिनट के प्रश्नोत्तर में हमें फिर एहसास कराया क्यों लोग शाहाबाद की क्रांति और विचारों की भूमि कहते हैं। इस भूमि में कहां १९३३ में त्रिवेणी संघ को नींव रखी, इसने समाजवादी आंदोलन और किसान आंदोलन को पुरजोर स्वर दिया। नक्सलवाद का लहू भी खूब बहा। इतिहास में जाए तो उसी भूमि में वीर कुंवर सिंह भी हुए। और आगे जाए तो राजा हरिश्चंद्र, गौतम ऋषि और अहिल्या भी।
फिलहाल, बात कर्पूरी ठाकुर की। ये ठीक है कि अकादमिक फोरम पर कर्पूरी विमर्श बहुत बड़ा है, लेकिन लेखक के लिए ये बड़े संतोष का विषय है कि उनकी चर्चा जड़ों तक हो रही है। शायद अंबेडकर के बाद, कर्पूरी सबसे बड़े आइकन रूप में उभरे हैं। इन दोनों की मृत्युपरांत आयु बढ़ती ही जा रही। मुझे पूछा गया, क्या कोई पार्टी है जो कर्पूरी की आइडियोलॉजी फॉलो नहीं करती। शायद भी कोई! प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से, सभी। बीजेपी और कांग्रेस नियो सोशलिस्ट पार्टी हैं। समाजवाद ने एक लंबा रास्ता तय कर लिया है, इसमें गांधीवाद, नेहरूवाद, लोहियावाद, आंबेडकरवाद, जेपीवाद, एकात्म मानववाद, सबका साथ, सबका विकास और कांग्रेस का वंचितों और मातहत तक पहुंचने की नई राजनीतिक रवायत भी शामिल। सबके अपने अपने समाजवाद हैं, अपना अपना निकाल लीजिए। लेकिन कर्पूरी शायद सब जगह हैं। यही उनकी स्थाई विरासत है।
मैं कुछ पूछे गए आरा प्रश्नों को संलग्न कर रहा हूं, बानगी के तौर है।
सभा में पूर्व एमएलसी श्री लाल दास राय और जेपी आंदोलन के दौर के नेता श्री सुशील तिवारी, जिन्होंने कर्पूरी को देखा था और साथ में काम भी क्या था, अपना अपना साझा करके हमें समृद्ध किया।
आयोजक शाहाबाद के प्रख्यात पत्रकार आशुतोष कुमार पांडे (मैने उन्हें प्रख्यात कहकर ही बुलाता हूं) को बहुत स्नेह और धन्यवाद। आशुतोष पीछे चार महीने से लगे थे। लोकल मीडिया की बहुत धन्यवाद। द आरा स्टोरी को खासकर, इसका वीडियो स्टोरी के लिए। ये अब दर्ज हो गया रिकॉर्ड में।
और हां, आप सबके आतिथ्य की गर्माहट लिए वापस लौटा। दिल से हाथ मिलानेवाले हथेलियों की गर्माहट का कोई सानी नहीं।