पिछले दरवाजे से संसद में प्रवेश की परंपरा जनमत का अपमान है – रघु ठाकुर

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Raghu Thakur

भारत के राष्ट्रपति जी ने देश के चार व्यक्तियों को संविधान के अनुसार राज्यसभा में मनोनीत किया है ।संविधान निर्माताओं संविधान बनाते हुए सोचा था कि विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाएं जो चुनाव लड़ कर नहीं आ सकते उनकी योग्यता का लाभ संसद को मिले इसलिए यह राष्ट्रपति द्वारा नाम जदगी का प्रावधान किया गया था ।परंतु भारतीय राजनीति के नियंत्रकों ने अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। और राज्यसभा में नामजदगियाँ दलीय या जातिय हित पूर्ति का माध्यम बन गई ।यह पिछले सरकारों के दौर में भी हुआ है और आज भी जारी है ।

कल के नामजद लोगो में एक श्री उज्जवल निकम एडवोकेट है जिन्होंने कसाब जैसे आतंकवादियों को मृत्यु दंड दिलाने में अहम भूमिका अदा की थी ।निसंदेह वे एक योग्य और निपुण वकील है जिन्हें आपराधिक कानून का बेहतर ज्ञान है। परंतु क्या यह कानूनी योग्यता उन्हें राज्यसभा में नाम जादगी के लिए पात्र बना सकती है ।वर्ष 2024 में श्री निकम लोकसभा का चुनाव भाजपा से लड़े थे तथा हार गए थे। यह भी महत्वपूर्ण मुद्दा है कि जिस व्यक्ति को मतदाताओं ने नकार दिया क्या उसे राज्यसभा में भेजना जनतंत्र का अपमान नहीं है ।

डॉक्टर राम मनोहर लोहिया कहते थे चुनाव में हारे हुए व्यक्ति को पिछले दरवाजे से नहीं जाना चाहिए ,यह जनतंत्र का अपमान है पर अब सरकारें संविधान ,जनतंत्र और नैतिक परंपराओं को नहीं मानती।


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