लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान से जुड़े विभिन्न भाषाभाषी कार्यकर्ताओं ने एक बयान के जरिए कहा है कि बंगाली आप्रवासी कामगारों के साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों में घट रही हाल की घटनाएं गंभीर एवं चिंताजनक हैं और देश की विविधतापूर्ण संस्कृति के लिये खतरा हैं.
पिछले महीने से देश के विभिन्न क्षेत्रों से खबरें आ रही हैं कि, बंगाली कामगारों को टॉर्चर किया जा रहा है, उन्हें मारा-पीटा जा रहा है, गिरफ्तार किया जा रहा है, उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जा रहा है. पहचान के सारे दस्तावेज दिखाने के बावजूद उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है. उनका कसूर बस इतना है कि वे अपनी मातृभाषा बांग्ला बोलते हैं.
25 मई,2025 को बीरभूम के छ: आप्रवासी कामगारों (2 बच्चों सहित) को दिल्ली से बांग्लादेश खदेड़ दिया गया. उनके पैसे और मोबाइल फोन छीन लिये गये. 14 जून को मुर्शिदाबाद और बर्दवान के 7-8 कामगारों को ठाणे, महाराष्ट्र की पुलिस ने पकड़कर सीधे बांग्लादेश भेज दिया. उन्हें वैलिड आधार कार्ड और पैन कार्ड दिखाने के बावजूद नहीं छोड़ा गया.
11 जुलाई को मालदा,नादिया,मुर्शिदाबाद, बीरभूम,पूर्वी बर्दवान, दक्षिणी 24 परगना के 444 बंगाली आप्रवासी कामगारों को झारसुगड़ा, उड़ीसा में गिरफ्तार कर लिया गया. वे अपना आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र नहीं दिखा सके तो उनसे जन्म प्रमाणपत्र और विद्यालय के दस्तावेज दिखाने को कहा गया और जांच की गयी कि कहीं उनके फोन में बांग्लादेश का नंबर तो सेभ नहीं है.11 जुलाई को ही दिल्ली की जयहिंद कॉलोनी के निवासियों को जबर्दस्ती उजाड़ दिया गया. इस कॉलोनी में अधिकांश बंगाली कामगार रहते थे, जिन्हें कई लोग तो वहां 40 वर्षों से रह रहे थे. उनकी पानी और बिजली काट दी गयी, जो कि सरासर मानवाधिकार का उल्लंघन है. ओडिशा में काम कल रहे चुंचुड़ा( ) के रहने वाले देवाशीष दास को, बांग्लादेशी होने के संदेह के कारण प्रताड़ित किया गया. देवाशीष कानूनी दस्तावेज दिखाने के बावजूद अपने को बचा पाने में असफल रहे. किसी तरह से वो अपने घर वापस आ पाये.
सिर्फ गिरफ्तारी नहीं हो रही है, बल्कि बांग्लादेशी होने के संदेह में शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किये जा रहा है, जैसा कि शमशेर के रहने वाले सुजान सरकार के साथ उड़ीसा में हुआ, क्योंकि वो बंगाली थे.
सवाल ये है कि “क्या आज के भारत में बंगाली होना अपराध है ?”
ये सारी घटनाएं भाजपा शासित डबल बुलडोजर सरकार वाले राज्यों में ही हो रही हैं. कुछ दिनों पहले, असम के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगली जनगणना में अगर किसी ने अपने को बंगाली घोषित किया तो इससे साफ हो जायेगा कि राज्य में कितने बांग्लादेशी हैं. प. बंगाल सरकार इस मामले को लेकर कोलकाता हाई कोर्ट गयी है, जिससे बंगाल में तनावग्रस्त स्थिति बनने लगी है. ये उनका ही हस्तक्षेप है, जिससे अंतत: वो लोग वापस आ जायेंगे जिन्हें बांग्लादेश की सीमा के पास “नो मैन्स लैंड” में भेज दिया गया था.
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वर्तमान में बिहार में चल रहे मतदाता पुनरीक्षण का अगला निशाना बंगाल होने वाला है. वास्तव में बंगालियों को बांग्लादेशी बताने और मुसलमानों के खिलाफ घृणा फैलाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान की तरफ से हम देश के बंगाली भाषी नागरिकों के डिटेंशन और प्रताड़ना के खिलाफ तीव्र प्रतिरोध व्यक्त करते हैं. ये घटनाएं आप्रवासी कामगारों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, साथ ही भारतीय संविधान द्वारा सुनिश्चित की गये गये मौलिक अधिकार, जैसे कि समानता का अधिकार, जीवन जीने और वैयक्तिक स्वतन्त्रता का अधिकार, अंतर्राज्यीय आप्रवासियों के सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों का भी उल्लंघन है.
हम इन कार्रवाईयों के पीछे छिपे हुए साम्प्रदायिक उद्देश्यों की कड़ी निंदा करते हैं. एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में किसी को भी अपनी मातृभाषा बोलने के कारण प्रताड़ित नहीं किया जा सकता.
आनंद कुमार
संयोजक, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान
मनीषा बनर्जी (बांग्लाभाषी) – कोर समिति, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान
दीपक धोलकिया (गुजराती भाषी) – कोर समिति, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान
अनन्त पंडा (उड़िया भाषी)- संयोजक , ओड़िशा समिति, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान
गोविन्द चव्हाण ( मराठी भाषी) – संयोजक, महाराष्ट्र समिति , लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान
किरण (झारखंड) – सहसंयोजक, राष्ट्रीय कोर, लो.रा.अ.
मणिमाला (दिल्ली ) – सहसंयोजक, राष्ट्रीय कोर, लो. रा. अ.
ज्ञानेंद्र कुमार (महाराष्ट्र)- सहसंयोजक राष्ट्रीय कोर, लो. रा.अ.
शशिशेखर प्रसाद सिंह (दिल्ली) – सहसंयोजक, राष्ट्रीय कोर, लो.रा.अ.
सुशील कुमार (बिहार)- संयोजक, बिहार समिति लो. रा. अ.
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