“चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेज़ ग्रामीण बिहार वासियों के लिए जमा कर पाना असंभव है.SIR की प्रक्रिया संविधान की प्रस्तावना में दिए गए राजनीतिक न्याय और समानता के वादे के खिलाफ है.”
“अनुचित दबाव में सिर्फ लक्ष्यों को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग की अपनी ही प्रक्रियाओं का कई बार उल्लंघन हुआ है.इससे मतदाता सूची की गुणवत्ता अधिक बिगड़ेगी और चुनाव आयोग के उद्देश्य को नुकसान पहुँचेगा”
आज 21 जुलाई 2025, को पटना के BIA हॉल में मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” (SIR) पर एक जन सुनवाई का आयोजन किया गया.इस जन सुनवाई में बिहार के 14 ज़िलों से आए 250 लोगों ने भाग लिया.28 प्रतिभागियों ने SIR की प्रक्रिया के बारे में अपने अनुभव साझा किए जिन्हें 6 प्रतिष्ठित नागरिकों के पैनल ने सुना.
कटिहार से आईं फूल कुमारी देवी ने बताया-“मैं मज़दूर हूं.BLO ने मुझसे आधार और वोटर कार्ड की फोटोकॉपी मांगी.मैंने 4 किलोमीटर चलकर पासपोर्ट फोटो खिंचवाई.मेरे पास पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने अपने राशन का चावल बेच दिया.दस्तावेज़ जुटाने में मेरे दो दिन की मज़दूरी चली गई.मेरे पास चावल नहीं था,दो दिन भूखी रही ”
राज्य भर से आए प्रतिभागियों ने बताया कि गणना फॉर्म BLO के बजाय कई बार वार्ड पार्षद,आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या सफाईकर्मी द्वारा बांटे गए.कई मतदाताओं को फॉर्म भरने का तरीका ही नहीं बताया गया.कई परिवारों में कुछ लोगों को फॉर्म मिला,कुछ को नहीं.पटना शहर में बिना फोटो वाला अनधिकृत फॉर्म बांटा गया.कई विवाहित महिलाओं को अपने मायके से दस्तावेज़ लाने में कठिनाई हुई.BLO ने जिन दस्तावेजों को लिया (जैसे आधार और वोटर कार्ड),वे ECI की अधिकृत सूची में नहीं हैं.
जन सुनवाई में आये सिर्फ 5 से कम लोगों को अपने फॉर्म पर रिसीविंग मिली.वे सभी जागरूक थे और दबाव डालने के बाद ही रिसीविंग मिली.कई मामलों में लोगों को पता ही नहीं था कि उनका फॉर्म BLO ने पहले ही जमा कर दिया,बिना उनके हस्ताक्षर लिए एक मामले में,जिसने इस पर सोशल मीडिया पर बात की,उसके करीबी लोगों को धमकियाँ मिलीं.ग़ैर-पढ़े-लिखे मतदाताओं को फॉर्म भरवाने के लिए लगभग ₹100 देने पड़े। कई BLO ने बैंक पासबुक की कॉपी भी ली,जबकि SIR में इसकी ज़रूरत नहीं बताई गई थी.कोई मानक प्रक्रिया नहीं थी.
एक ही परिवार में पति की फोटो ली गई,पत्नी की नहीं.यह खेती का समय है.बिहार के सबसे ग़रीब लोग इस समय पंजाब में खेतों में काम कर रहे हैं.वे अधिकतर अनपढ़ हैं और उनके पास फॉर्म ऑनलाइन भरने की सुविधा नहीं है.कोसी नदी के बाढ़ प्रभावित गांवों में दस्तावेज़ बार-बार बाढ़ में बह जाते हैं,खासकर ग़रीब और दलित वर्ग के लोग इसका शिकार हैं.BLO पर भारी दबाव है—जो नियमों का पालन कर रहे हैं उन्हें धीमा कहकर डांटा जा रहा है और वेतन रोकने की धमकी दी जा रही है.BLO और आंगनवाड़ी सेविकाओं की इस प्रक्रिया में अत्यधिक व्यस्तता से शिक्षा और पोषण की जनकल्याणकारी योजनाओं को नुकसान हो रहा है.
जन सुनवाई की पैनल में वजाहत हबीबुल्ला (पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त), न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश (पूर्व न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय),प्रो. (पूर्व निदेशक, ए. एन. सिन्हा संस्थान),जाँ द्रेज (अर्थशास्त्री), भंवर मेघवंशी (सामाजिक कार्यकर्ता) और प्रोफेसर नंदिनी सुंदर (समाजशास्त्री) शामिल थे.
न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश ने बताया कि चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेज़ ग्रामीण बिहारवासियों के लिए जमा कर पाना असंभव है.
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने बताया, “प्रशासन का दुरुपयोग हो रहा है,यह लोगों की मदद नहीं बल्कि उन्हें परेशान कर रहा है.SIR की प्रक्रिया न संविधान के अनुसार है, न RTI कानून के अनुरूप है.”
सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने कहा कि SIR की प्रक्रिया संविधान की प्रस्तावना,जिसमें राजनीतिक न्याय और समानता का वादा है,उसके खिलाफ है.
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा- “SIR को संशोधित नहीं बल्कि रद्द किया जाना चाहिए.चुनाव आयोग की अपनी प्रक्रियाओं का कई बार उल्लंघन हुआ है.इससे मतदाता सूची की गुणवत्ता गिरेगी और उद्देश्य विफल होगा.”
समाजशास्त्री प्रो. नंदिनी सुंदर ने बताया-“SIR लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.मेरी आशा है कि हमारी आवाज़ सुनी जाएगी और हम आगे लड़ाई जारी रखेंगे.”
एएन सिन्हा संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. दिवाकर ने बताया कि आज हमारा लोकतंत्र न जनता का है,न जनता के लिए है,न जनता द्वारा है.हमें इसे वापस लाने के लिए संघर्ष करना होगा.
जन सुनवाई का आयोजन भारत जोड़ो अभियान, जन जागरण शक्ति संगठन, NAPM, समर चैरिटेबल ट्रस्ट, स्वराज अभियान और कोसी नवनिर्माण मंच ने मिलकर किया.
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