महात्मा गांधी का अंतिम इंटरव्यू

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गांधीजी ने दिल्ली की हिंसा को रोकने के लिए 13 जनवरी से 18 जनवरी 1948 तक अपने जीवन का अंतिम आमरण अनशन किया और इसमें वे पूरी तरह सफल हुए। गांधीजी के इस अनशन पर पूरी दुनिया की नजर थी। एक 78 साल के बूढ़े आदमी जिसकी रूह नोआखाली, बिहार व कलकत्ता में अनशन करते थक चुकी थी, वह बूढ़ा आदमी आजादी के तुरंत बाद एक बार फिर अपनी जनता से हिंसा रोकने की अपील कर रहा था।

गांधीजी के आमरण अनशन के सफल होने के लिए पूरी दुनिया से लगातार संदेश प्राप्त हो रहे थे। लेकिन अमरीका में एक पत्रकार ऐसा भी था जो उनके इस उपवास की सफलता पर गांधीजी की हत्या की आशंका व्यक्त कर रहा था। उसे पूर्वाभाष हो गया था कि गांधी अगर इस उपवास में सफल हो गए तो कट्टरपंथी उन्हें किसी भी कीमत पर जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। उस पत्रकार का नाम था विसेन्ट शिएन ।

18 जनवरी को जब दिल्ली में पूरी शांति हो गयी और सभी पक्षों ने गांधीजी को लिखकर दिया कि वे अब हिंसा नहीं करेंगे तब गांधी ने अपना अनशन समाप्त किया। अचानक उसी रात को बिसेन्ट शिएन ने अपने लेखक दोस्त विलियम शरर जिन्होंने ‘राइज एंड फाल ऑफ थर्ड राइक’ पुस्तक लिखी थी को फोन किया और कहा कि मुझे तुमसे जरूरी मिलना है, तुम अभी आ जाओ। विलियम शरर जब उनसे मिलने गए तो शिएन ने कहा कि मैं जल्द गांधी से मिलना चाहता हूं, क्योंकि गांधी की मौत आने वाली है। शरर ने कहा कि क्या बात करते हो गांधी की मौत ? शिएन ने कहा कि हां गांधी की मौत! क्योंकि गांधी अब ईसा बन चुके हैं। जब ईसा जिंदा नहीं रहे तो गांधी कैसे जिंदा रह सकते हैं?

विंसेंट शिएन और विलियम शरर ने तुरंत तैयारी की और हिन्दुस्तान आये। 27 जनवरी की शाम विन्सेण्ट शिएन अपने मित्र के साथ गांधी से मिलने की तीव्र इच्छा से भरकर वर्माण्ट स्थित अपने फ़ाॅर्म हाउस से बिड़ला हाउस पहुंचे। शिएन को निरन्तर यह भय सता रहा था कि जल्दी ही गांधी की हत्या हो सकती थी। शिएन चाहते थे कि वे दूसरे विश्व युद्ध और अणु बम के बाद उनके सामने उभरे मुश्किल सवालों को गांधी के सामने रखते, लेकिन वे इस भयावह अहसास से प्रेरित थे कि इसके पहले ही गांधी की हत्या हो जाएगी।

जब प्यारेलाल प्रार्थना-सभा के बाद शिएन को गांधी से मिलने ले गये, तो शिएन को गहरी राहत मिली। वह लम्बा रिपोर्टर और ठिगना सत्याग्रही कमरे में बिछी चटाई पर एक-दूसरे की बग़ल में चलते रहे, जिस दौरान शिएन महात्मा के सामने अपने सवाल दागते रहे।

शिएन ने कहा, ‘मैं कर्म और कर्म के फलों के साथ बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव करता हूँ।’

गांधी चलते-चलते ठहर गये। उन्होंने किसी चिडि़या की तरह गरदन हिलाते हुए शिएन की ओर देखा। ‘पहले मैं एक बात साफ़ कर दूँ, मुझे मोतीझिरा का बुखार है। डाॅक्टर भेजे जाते हैं और वे सल्फ़ा ड्रग के इंजैक्शन या उसी तरह की कोई चीज़ें देकर मेरी जान बचा लेते हैं। लेकिन इससे कुछ भी साबित नहीं होता। मुमकिन है कि मेरा मर जाना मनुष्यता के लिए ज़्यादा मूल्यवान होता।’

शिएन ने गांधी से दूसरा प्रश्न पूछा द्वितीय विश्वयुद्ध में अमरीका की हिटलर से एक न्यायसंगत और तर्कसंगत लड़ाई विध्वंसकारी नतीजे कैसे पैदा कर सकती है?

गांधी ने कहा उन साघनों की वजह से जिनका इस्तेमाल अमरीका द्वारा किया गया है। साघनों को साध्य से अलग नहीं किया जा सकता। अगर हिंसक साघनों का इस्तेमाल किया गया, तो उसके नतीजे बुरे होंगे।

शिएन ने पूछा ‘क्या ये बात हर समय और स्थान के सन्दर्भ में सही है?

गांधी ने कहा मैं तो यही कहता हूँ, ये पद परिवर्तनीय हैं। कोई भी अच्छा कर्म बुरे नतीजे को पैदा नहीं कर सकता। बुरे साघन, अच्छे साध्य के लिए इस्तेमाल किये जाने पर भी, बुरे परिणाम पैदा करते हैं।

शिएन इतनी आसानी-से मानने वाले नहीं थे उन्होंने गांधीजी से पूछा ‘मैं हिटलर के खि़लाफ़ हमारे युद्ध के बारे में सोच रहा था, जो मेरी निगाह में एक न्यायसंगत युद्ध था। मैं उनमें से कुछ नेताओं को (रूज़वेल्ट और चर्चिल) को जानता था जो हमारे पक्ष के थे फिर यह कैसे मुमकिन हुआ कि फ़ासीवाद की बुराई के खि़लाफ़ हमारी लड़ाई जो एक सच्चे अर्थों में न्यायसंगत युद्ध था उसने उन नतीजों को पैदा किया जिनका सामना हम कर रहे हैं?

गांधी शिएन की ओर झुके। उन्होंने गहरी उदासी के साथ विनम्रतापूर्वक कहा, आपके साध्य शुभ हो सकते हैं, लेकिन आपके साघन अशुभ थे। ये सत्य की ओर ले जाना वाला मार्ग नहीं है।

शिएन ने कहा, जो लोग हम पर हुकूमत करते हैं, ज़ाहिर है उनका सरोकार कर्म के सत्य की बजाय कर्म के फलों से होता है। तब फिर हम पर अच्छे ढंग से शासन कैसे किया जा सकता है?

गांधी ने कहा आपको (अमरीका) अपनी दौलत की उपासना करना बन्द कर देना चाहिए। एक प्रतिनिघित्वशाली लोकतन्त्र की रूपरेखा रखी जानी चाहिए जिसमें भ्रष्ट लोगों को उन लोगों द्वारा पदच्युत कर दिया जाना चाहिए जो भ्रष्ट नहीं हैं।

शिएन ने पूछा आपका मतलब है, सत्ता भ्रष्ट करती है?

हाँ, गांधी ने कहा, मुझे अफ़सोस है कि मैं यही कह रहा हूँ कि सत्ता भ्रष्ट करती है।

गांधी ने कहा था कि एक शुभ परिणाम हासिल करने के लिए अहिंसा परमावश्यक है।

उस मुलाक़ात के अन्त में गांधी ने शिएन से कहा था कि उनसे दोबारा मुलाक़ात का वे स्वागत करेंगे। और इसे एक स्थायी निमन्त्रण की तरह लें।

इस मुलाकात के बाद शिएन ने लिखा कि गांधी ने बहुत विनम्रता के साथ, एक ऐसे स्वर में जिसे सुनकर किसी दुश्मन का दिल भी पिघल जाता (और मैं कोई दुश्मन नहीं था) कहा कि मेरी मुहिम अभी पूरी नहीं हुई है। अगर यह कहा जा सकता हो कि दिल्ली में मेरा काम पूरा हो चुका है, तो मुमकिन है कि अपनी प्रतिज्ञा (‘करो या मरो’) की ख़ातिर मेरा यहाँ बने रहना ज़रूरी न रह गया हो। हो सकता है कि इस मसले पर कल फ़ैसला लिया जाए।’

इस रिपोर्टर ने गांधी की हत्या के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका लौटने पर लिखा थाः ‘उनको मालूम था कि मैं हताशा की ओर बढ़ती अवस्था में यह जानने के लिए कि सत्य क्या है, आघी दुनिया पार करके उनके पास आया था – इतना तो वे कुछ ही मिनिटों में सहज ही समझ गये थे – और उन्होंने नतीजों की परवाह किये बिना मुझे तुरन्त यह समझाया। मेरी उम्मीदों या सम्भावना के एकदम परे जिस चीज़ से मेरा सामना हुआ, वह दैवीय करुणा की अभिव्यक्ति थी।’

29 जनवरी को विनसेण्ट शिएन जवाहरलाल नेहरू के साथ एक आम सभा के लिए पाकिस्तान से लगी हिन्दुस्तान की उत्तर-पश्चिमी सरहद पर स्थित अमृतसर गये।

29 जनवरी की उस आखि़री रात बिस्तर पर सोने जाने से ठीक पहले, उनकी देखभाल में लगे एक सहयोगी से बात करते हुए गाँघी ने एक बार फिर कहा था कि अगर मैं ‘एक पुरोहित हूँ, जो होने का मैं दावा करता हूँ’, तो मुझे अपनी एक-एक श्वास में ईश्वर का नाम जाप करते हुए अपने हत्यारे को जवाब देना होगा। ‘अगर कोई व्यक्ति मेरे आरपार गोली भेदता हुआ मेरे जीवन का अन्त करता है और मैं उसकी गोली को बिना किसी कराह के सह लेता हूँ, और ईश्वर का नाम लेते हुए अपनी आखि़री साँस लेता हूँ, तभी मैं अपने दावे पर खरा उतरा माना जाऊँगा।’

गांधी को भी शिएन की तरह अपनी हत्या का पूर्वाभाष था। उन्होंने जो कहा उसे कर दिखाया जब गांधी को हत्यारे गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनिट पर प्रार्थना को जाते एक 78 साल के महात्मा को गोली मारी तब वह महात्मा उनका हत्यारा एक- दूसरे के सामने प्रणति की मुद्रा में झुके थे। गांधीजी के अंतिम शब्द थे – ‘हे राम’


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