
— डॉ सुनीलम —
9 अगस्त 1942 का दिन 1857 की क्रांति के बाद आजादी के आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण जनक्रांति दिवस है। 8 अगस्त को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासमिति द्वारा बम्बई में ‘करो या मरो, भारत छोडों’ का प्रस्ताव पारित किया गया था। 8 अगस्त की रात को कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिये गये थे। 9 अगस्त को प्रतिबंध के बावजूद बम्बई में हजारों राष्ट्र भक्तों ने राष्ट्र ध्वज फहराने का प्रयास किया जिसमें लाठी, गोली चली। इसके बावजूद अरुणा आसफ अली ने तिरंगा फहराया। अगस्त क्रांति आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने लाठी, गोली, गिरफ्तारी, जेल, सजा सब कुछ का सहारा लिया। जवाहर लाल नेहरू ने ‘दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि सरकार कहती है कि पुलिस या फौज की गोली से 1,020 लोगों की जान गयी तथा 3200 जख्मी हुए। लेकिन जनता का अंदाजा है कि करीब पच्चीस हजार लोग मारे गये। शायद चवालीस हजार की तादाद कुछ सही है।
क्योंकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 538 स्थानों पर गोलियां चलायी गयीं। डॉ राम मनोहर लोहिया के मुताबिक शहीद होने वालों, घायलों तथा फर्जी मुकदमें झेलने वालों की संख्या 50,000 से अधिक थी।
अगस्त क्रांति आंदोलन 1857 के बाद स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बडा जनआंदोलन है। 1857 के आंदोलन का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, अजीमुल्लाह और नाना साहेब जैसे दिग्गजों ने मिलकर किया था। इसी विद्रोह के बाद कांग्रेस का गठन ए.ओ हयूम, दादा भाई नौरोजी, बदरूद्दीन तैयब जी, फिरोजशाह मेहता के सहयोग से किया था। अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल और महाराष्ट्र में जबरदस्त आंदोलन चलें जिसका नेतृत्व अरविन्दों घोष, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपतराय जैसे क्रांतिकारी कर रहे थे। लार्ड कर्जन के द्वारा बंगाल का विभाजन किए जाने के बाद आंदोलन तेज हो गया। तिलक जी ने ऐनी बेसेंट के साथ मिलकर होम रूल लीग बनाई। 1916 में मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच लखनऊ पेक्ट हुआ। अंग्रेजों ने जब भारतीयों के मूल अधिकारों को चुनौती दी तब गांधीजी ने सत्याग्रह शुरू किया। यह वही दौर है जब जलियावाला बाग में क्रूरतम तरीके से जनरल डॉयर द्वारा नरसंहार किया गया। तिलक जी की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया। भारत छोड़ों आंदोंलन के पहले गांधीजी ने 1919, 1921, 1930,1932 में बडे़ राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाए। 28 दिसंबर 1931 से 1934 तक सतत आंदोलन चलें। इस बीच कांग्रेस नया संविधान बनाने की प्रक्रिया में लग गई। गांधीजी के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने चुनाव लड़ा तथा सात राज्यों में सरकार बनाई।
1939 में बिना सलाह मशविरा के अंग्रेजों ने भारत के युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। कांग्रेस ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। जापान ने ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध शुरू किया। सिंगापुर मलेशिया और रंगून पर कब्जा कर लिया। काकीनाडा और विशापट्टनम पर हवाई हमले होने लगे तब अमरीका के रूजवेल्ट तथा चीन के चांग काई शेक ने ब्रिटिश सरकार पर कांग्रेस के साथ समझौता करने के लिए दबाव डाला, अंग्रेजों ने स्टेफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। सभी राजनैतिक दलों ने अपने-अपने कारणों से इसका विरोध किया। गांधीजी ने इसे पोस्ट डेटेड चैक ऑफ क्रेसिंग बैंक बताया। डॉ लोहिया के मुताबिक क्रिप्स का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद की योजना को, जिसका उद्देश्य साम्राज्यवाद के क्रियान्वयन हेतु मार्ग प्रशस्त करने के लिए भारत का अनेक टुकडों में बंटवारा करना, रजवाड़ों को स्वतंत्र करना, प्रांतों को भारत से विलग होने का अधिकार दिया जाना, साम्प्रदायिक एवं व्यक्तिगत विद्वेष के आधार पर भारतीय जनसमुदाय की लगातार बढ़ती जा रही एकता को खंडित करना था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जापान भारत के सीमाओं तक पहुंच गया था, तब डॉ लोहिया ने ‘कपटी जापान और आत्म संतुष्ट ब्रिटेन’ नामक लेख लिखा था, जिसे गांधीजी ने अपनी संपादकीय टिप्पणी के साथ हरिजन में प्रकाशित किया था। उन्होंने लिखा था कि मेरी नजर में तोजो उतना ही दुष्ट है जितना कि हिटलर या चर्चिल। क्योंकि यदि इस दर्दनाक नरसंहार का अंत इनमें से किसी की विजय के रूप में होता है तो उससे बेहतर विश्व की मेरी आशाएं चकनाचूर हो जाएंगी। गांधीजी भी मानते थे कि दोनों खतरनाक हैं। भारत सिर्फ पूर्ण स्वतंत्र होकर ही फासीवाद के विरूद्ध लड़ी जाने वाली लड़ाई में सही और प्रभावशाली योगदान दे सकता है।
‘करो या मरो’ आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर अंग्रेजों द्वारा किये गये दमन का सरकारी कारण, बड़ी संख्या में आम नागरिकों का थानों, सचिवालयों, सरकारी कार्यालयों पर कब्जा कर तिरंगा फहराने का प्रयास था। जिसे अंग्रेज हर कीमत पर विफल करना चाहते थे। अंग्रेजों ने यह समझ लिया था कि कांग्रेस ने 7-8 अगस्त 1942 को जो प्रस्ताव पारित किया है उसके बाद भारत में हुकूमत करने की उसकी गुंजाइश बहुत कम रह गयी है। प्रस्ताव में कहा गया था कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी पूरे आग्रह के साथ भारत से ब्रिटिश सत्ता को हटा लेने की मांग को दोहराती है।
भारत की स्वतंत्रता की घोषणा हो जाने पर एक अस्थाई सरकार स्थापित कर दी जाएगी और स्वतंत्र भारत मित्र राष्ट्रों का मित्र बन जाएगा और स्वतंत्र संग्राम के सम्मिलित प्रयत्न की परीक्षाओं और दुख-सुख में हाथ बटाएगा। अस्थाई सरकार देश के मुख्य दलों और वर्गों के सहयोग से ही बनायी जा सकती है। इस प्रकार यह एक मिलीजुली सरकार होगी, जिसमें भारतीयों के समस्त महत्वपूर्ण वर्गों का प्रतिनिधित्व होगा। उसका प्रथम कर्तव्य अपनी समस्त सशस्त्र और अहिंसात्मक शक्तियों द्वारा मित्र राष्ट्रों से मिलकर भारत की रक्षा करना, आक्रमण का विरोध करना और खेतों, कारखानों तथा अन्य स्थानों में काम करने वाले उन श्रमजीवियों का कल्याण और उन्नति करना होगा जो निश्चय ही समस्त शक्ति और अधिकार के वास्तविक पात्र हैं। उक्त प्रस्ताव पं. जवाहर लाल नेहरू ने पेश किया और सरदार पटेल ने उसका समर्थन किया। प्रस्ताव पारित होने के बाद गांधी जी ने भाषण देते हुए कहा कि हमने जो काम का बीड़ा उठाया है उसे पूरी लगन के साथ पूरा करें, ताकि न केवल इस देश में, अपितु समस्त विश्व में शाश्वत शांति और न्याय की स्थापना हो सके।
उन्होंने हर एक हिन्दुस्तानी से कहा कि वह अपने आप को आजाद समझे। उन्होंने कहा कि मैं इस लड़ाई में आपका नेतृत्व करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता हूं। सेनापति अथवा नियंत्रक के रूप में नहीं अपितु आपके तुच्छ सेवक के रूप में। और जो कोई सर्वाधिक सेवा करेगा वही मुख्य सेवक माना जाएगा। मैं तो राष्ट्र का मुख्य सेवक हूं। अपना भाषण समाप्त करते हुए गांधीजी ने कहा, ‘मैंने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया है ‘वह करेगी या मरेगी।’ उन्होंने कहा था कि मैं आपको एक संक्षिप्त मंत्र देता हूं। इसे आप हृदयस्थ कर सकते हैं तथा अपनी हर एक सांस में इसे प्रकट होने दे सकते हैं। यह मंत्र है- ‘करो या मरो।’ हम या तो भारत को आजाद कराएंगे या ऐसा करते हुए मर जाएंगे, हम अपनी दास्ता को भुगतने के लिए जिंदा नहीं रहेंगे। प्रत्येक पुरुष या स्त्री कांग्रेसी इसी अटल निश्चय के साथ संघर्ष में शामिल होंगे, हम अपनी दास्ता को दीर्घायु होते देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।
डॉ लोहिया शीर्षस्थ कांग्रेसी नेताओं के गिरफ्तार हो जाने के बाद भूमिगत हो गये। उन्होंने देशभर में गतिविधियों का संयोजन करने के लिए केंद्रीय निदेशालय बनाया। अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली जैसे नेता उनके साथ थे। उन्होंने मुम्बई से 13 अगस्त 1942 से 14 अगस्त 1942 तक भूमिगत कांग्रेस रेडियो स्टेशन का संचालन किया। बाद में कलकत्ता में कांग्रेस रेडियो स्टेशन की स्थापना की गयी। उन्होंने ‘डू एण्ड डाई’ नाम से भूमिगत बुलेटिन भी जारी किया। फाइटर्स एवं मार्च फारवर्ड जैसे पेम्फलेट भी निकाले। उस समय जेपी जेल में थे। सर्वविदित है कि गिरफ्तारी के कुछ महीनों बाद जयप्रकाश नारायण हजारीबाग जेल से भाग निकलने में सफल रहे। लोहिया को अंततः 20 मई 1944 को बम्बई में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। एक महीने बाद उन्हें लाहौर किले में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्हें प्रताड़ित किया गया। ब्रिटिश लेबर पार्टी के प्रमुख प्रो. हेराल्ड लास्की को लिखे गये पत्र में लिखा कि 4 महीने से अधिक किसी न किसी रूप में मेरे साथ दुर्व्यवहार किया जाता रहा है। मुझे दिन-दिन भर और रात-रात भर जगाये रखा जाता है।
सर्वाधिक लगातार 10 दिन तक ऐसा किया गया। जब मैंने इसका प्रतिरोध किया तो मुझे हथकड़ी लगे हाथों को चारों ओर से घेर कर जमीन पर गिरा दिया गया। अक्टूबर 1945 में उनके पिता हीरालाल लोहिया की मृत्यु हो गयी। (हीरालाल जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे तथा गांधी जी के नजदीकी कार्यकर्ता थे)। लेकिन कृपा पाकर पेरोल लेने से अपने पिता की इकलौती संतान होने के बावजूद उन्होंने जेल से रिहा होने से इन्कार कर दिया। जेल से छूटने के बाद जानकारी मिलने पर जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें पत्र लिखा, ‘क्या तुम अभी अपने पुराने रूप में हो, तीक्ष्ण बुद्धिमान, थोड़ा चंचल और स्वेच्छाचारी ? क्या जीवन ने तुम्हें कठोर बना दिया है ? किन्तु ये केवल प्रश्न है, जिनका तुम उत्तर नहीं दे सकते और मुझे उत्तर खोज कर निकालने के लिए तुमसे मिलना होगा। मैं आशा करता हूं कि जब भी हम मिलेंगे, तुम मेरी ओर नहीं देखोगे। जैसा कि तुम करते हो, एक खोल के माध्यम से मुझे देख रहे होगे। उल्लेखनीय है कि डाॅ. लोहिया जेल से छूटने के बाद स्वास्थ्य लाभ हेतु गोवा गये, जहां गोवा के निवासियों ने पुर्तगाली सरकार की दमनकारी नीतियों की जानकारी उन्हें दी। तब उन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन की शुरूआत की। जल्द ही गोवा को पुर्तगाली शासकों से स्वतंत्र कराने में सफलता हासिल की।
अगस्त क्रांति में महिलाओं की अहम भूमिका रही। विशेषकर अरुणा आसफ अली को अगस्त क्रांति की नायिका माना जाता है। 9 अगस्त को उन्होंने सरकारी इमारतों पर तिरंगा फैराने के आंदोलन का सफल श्रीगणेश किया था। भूमिगत होकर उन्होंने आंदोलन चलाया। उस समय अंग्रेजों ने 5 हजार रुपये का इनाम घोषित किया। गांधीजी ने कहा कि अपने आपको इस तरह भूमिगत रह कर मारने की बजाय साहस से आत्मसमर्पण कर दो तथा 5 हजार रुपये का इनाम खुद लेकर हरिजन के फन्ड में जमा कर दो। लेकिन वे भूमिगत रही। दिल्ली में 26 सितंबर 1942 को उनकी संपत्ति जब्त कर ली गयी। 26 जनवरी 1946 को जब अंग्रेजों ने सभी नेताओं को छोड़ दिया तथा अरुणा आसफ अली के गिरफ्तारी वारंट वापस ले लिये तब भूमिगत मोर्चाबंदी के लिये उन्हें अखबारों ने 1942 की झांसी की रानी लिखकर संबोधित किया। अरुणा आसफ अली 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान 1 साल जेल में रहकर 1932 में भी उन्हें 6 महीने की सजा मिली थी। व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान भी वे जेल में रही थीं।
इसी तरह सुचेता कृपलानी ने 1942-43 में भूमिगत रहकर आंदोलन चलाया। भूमिगत स्वयं सेवक दल की स्थापना की। राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की स्थापना भी की। 1944 में उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1945 में वे रिहा की गयीं। इसी तरह ऊषा मेहता ने अगस्त क्रांति के दौरान 9 अगस्त से ही सक्रिय भागीदारी की। 14 अगस्त को 1942 को ही उन्होंने रेडियो प्रसारण शुरू कर दिया। 12 नवंबर को उन्हें बाबूभाई प्रसाद के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 6 महीने तक उन्हें यातनाएं दी गयीं। रेडियो षड्यंत्र केस में उन्हें 7 साल की सजा हुयी। अप्रैल 1946 में वे रिहा हुईं। वनलता सेन 1942 के आंदोलन के दौरान एक कार्यक्रम में लाठीचार्ज में घायल हुईं, उन्हें गिरफ्तार किया गया, लगातार यातनाएं दी गयीं। 1945 में वे रिहा हुईं। 1930 से ही वे अनुशीलन दल की सदस्या बन कर विप्लवी कार्यों में भाग लेती थीं। अखिल बंगाल छात्र समिति की मंत्री होने के नाते उनका नाम टीटागढ़ षड्यंत्र केस में भी जोड़ा गया था। अनुशीसल दल से जुड़ा एक और नाम किरण चक्रवर्ती का है जिन्होंने भूमिगत रहकर आंदोलन में सक्रिय हिस्सेदारी की। 1942 में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। दिनाजपुर और ढाका प्रेसीडेंसी जेलों में रहीं। 1945 में रिहा हुईं। 1942 के आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 1942 को सिविल कोर्ट में माया घोष ने झंडा फहराने का प्रयास किया। पुलिस ने गोली चलाई इसके बावजूद उन्होंने झंडा नहीं छोड़ा। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 2 साल जेल में रहने के बाद 1944 में उनकी रिहाई हुई।
अगस्त क्रांति आंदोलन में जयप्रकाश नारायण जी की भूमिका अग्रणी थी। हजारीबाग जेल से भागने के बाद उन्हें पकड़ा गया। सभी कांग्रेसजनों को छोड़ने के बावजूद जब जयप्रकाश नारायण और डाॅ लोहिया को नहीं छोड़ा गया तब 2 अप्रैल 1946 को गांधीजी ने लार्ड एथिक लारेंस को पत्र लिखकर कहा कि जयप्रकाश नारायण और डाॅ लोहिया जैसे लोगों को जेल में रखना हास्यास्पद है। दोनों विद्वान और सुसंस्कृत व्यक्ति हैं जिन पर किसी भी समाज को गर्व हो सकता है। 13 अप्रैल 1946 को प्रार्थना सभा में भाषण देते हुए गांधी जी ने कहा कि आप लोग श्री जयप्रकाश नारायण और डाॅ लोहिया को जानते हैं ये दोनों व्यक्ति साहसी, कर्मठ और विद्वान हैं वे आसानी से धनी बन सकते थे। किन्तु उन्होंने सेवा और त्याग का रास्ता चुना। उनकी प्रबल इच्छा थी, देश की गुलामी की जंजीरों को तोड़ना। यह स्वाभाविक ही था कि विदेशी सरकार ने उन्हें खतरनाक मानकर उन्हें जेल भेजा। हमारे पास योग्यता को मापने का अलग पैमाना है और हम उन्हें देशभक्त मानते हैं, जिन्होंने अपनी जन्मभूमि के प्यार में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। अहिंसा के पैमाने से उनमें कोई कमी रही हो, यह इस समय बिल्कुल अप्रासंगिक है।
1942 में देश के विभिन्न इलाकों में समानान्तर सरकारें गठित की गयी थीं। बलिया और सतारा जैसे 12 स्थानों की कहानियां स्कूलों में भी पढ़ाई जाती है। ब्रिटिश सेना ने बड़े पैमाने पर हथियारों का इस्तेमाल किया। नरसंहार किये, गोलियां चलाईं, हजारों देशभक्तों पर मुकदमें लादकर उन्हें जेल पहुंचा दिया गया। सजाएं दी गयीं। क्रांतिकारियों के पास ना तो मजबूत संगठन था और ना ही अंग्रेजों का मुकाबला करने वाले हथियार। कांग्रेस के नेता पहले ही जेल में थे, जो बाहर थे वे हिंसा तथा गुप्त कार्यवाही पर गांधीजी की नीतिगत रोक के चलते उस तरह सक्रिय नहीं हुए जैसा हो सकते थे। हालांकि देशभर में बड़े पैमाने पर सामूहिक प्रतिरोध भी हुये। मुख्य तौर पर समाजवादियों, क्रांतिकारी गांधीवादियों तथा सुभाषवादियों ने मिलकर यह आंदोलन चलाया। लेकिन आंदोलन का केंद्रीय नेतृत्व शिथिल हो जाने के कारण 1942 का आंदोलन सतत रूप से उसी तीव्रता से नहीं चल सका जैसी इसकी शुरूवात हुई थी।
अगस्त क्रांति के चलते देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ जो भावना पैदा हुई तथा जो वातावरण बना तथा बाद में आईएनए के विद्रोह तथा सेना के भीतर विद्रोह की परिस्थिति बनने के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पैदा हुयी परिस्थिति और ब्रिटेन में आये राजनीतिक बदलावों के चलते अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि डोमिनयन स्टेटस के प्रस्ताव को देश के सभी राजनैतिक दलों ने विभिन्न कारणाों से ठुकरा दिया था लेकिन अंगे्रज देश का विभाजन करने में कामयाब रहे। 1942 के आंदोलन में जनता के बीच बनी एकजुटता यदि कायम रहती तो देश का विभाजन संभव नहीं था। लेकिन देश की कई पार्टियां और नेता अंग्रेजों के हथियार बने और उन्होंने गांधीजी तथा समाजवादियों के विभाजन का विरोध करने के बावजूद देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया। विभाजन के दौरान 50 लाख भारतीय या तो मारे गये या विस्थापित हुये। 1942 का आंदोलन यदि संगठित होता तो इस त्रासदी से बचा जा सकता था।
डाॅ राममनोहर लोहिया ने अगस्त क्रांति को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है। यह डॉ. जी जी पारिख 2 अगस्त 1967 को लिखे गये पत्र से स्पष्ट होता है, जिसमें उन्होंने लिखा है, ‘भारत छोड़ो के लोगों को आप इकट्ठा कर रहे हो यह बहुत अच्छा काम है, इस बार मैं इतना सौभाग्यशाली नहीं हूं कि मैं बम्बई आपके उत्सव में आ सकूं। जरा धूमधाम से उत्सव मनाइये। हो सके तो कुछ आगे भी बढ़िए। 15 अगस्त राज्य दिवस है, 9 अगस्त जन दिवस है। कोई एक ऐसा दिन जरूर आऐगा जब 9 अगस्त के सामने 15 अगस्त फीका पड़ेगा और हिन्दुस्तानी अमरीका और फ्रांस के 4 और 14 जुलाई, जो जन दिवस है, की तरह 9 अगस्त को मनाएंगे। यह भी हो सकता है कि हिन्दुस्तानी कभी अपना बंटवारा खत्म करें और उसी के साथ या उससे पहले 15 अगस्त को भूल जाने की कोशिश करें।
समाजवादियों को डाॅ राममनोहर लोहिया का यह सपना पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। बंटवारा खत्म करना तुरन्त संभव नजर नहीं आता लेकिन भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधार कर वीजा पासपोर्ट खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। यदि 28 देश मिलकर यूरोपीय संघ बना सकते हैं तो दक्षिण एशिया का महासंघ क्यों नहीं बन सकता ? समाजवादी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता संगठन और पार्टियां समाजवादी नेताओं के जन्म दिवस और निर्वाण दिवस को मनाती ही हैं, अब यह जरूरी हो गया है कि समाजवादी अगस्त क्रांति-जन क्रांति दिवस, भारत छोड़ो दिवस, करो या मरो दिवस मनाने का मन बनायें तथा 9 अगस्त के क्रांतिकारियों की नीतियों, सिद्धांतों और कार्यक्रमों को आम जनता तक पहुंचाने के लिए एकजुट हों।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.