एस आई आर और वोट चोरी के विरोध में साझा नागरिक मंच की पथसभा

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Joint Citizen Forum

8 सितम्बर 2025 को साकची गोलचक्कर पर साझा नागरिक मंच द्वारा शाम पांच बजे से वोट चोरी और एस आई आर के विरोध में एकजुट प्रदर्शन सह नुक्कड़ सभा का आयोजन किया गया। चुनाव आयोग के द्वारा बिहार में स्पेशल इन्टेनसिव रिवीजन के जरिए 65 लाख लोगों का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया। विदेशी घुसपैठियों को हटाने तथा मतदाता सूची की अन्य गडबड़ियों को ठीक करने के नाम पर चुनाव आयोग ने यह एसआईआर लाया है। असल में इसका उद्देश्य बड़े-पैमाने पर सिर्फ गरीब और मेहनतकशों का नाम हटाकर उन्हें वोटाधिकार से वंचित करना था। वैसे लोग भाजपा को आम तौर पर वोट नहीं डालते हैं। आज भी समाज में वैसे वर्चस्ववादी हैं जो सर्व बालिग मताधिकार को गलत मानते हैं। ऐसे लोग ही एस आई आर प्रक्रिया को सही मान सकते हैं। इन्हें छांटने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ ऐसे दस्तावेज मांगे जिनमें आधार कार्ड और राशन कार्ड नहीं थे।सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आधार कार्ड जोड़ा गया। इससे कुछ राहत मिली। फिर भी इस प्रक्रिया में अनेक बड़ी गड़बड़ियां हैं।

भाजपा के नेतृत्व में दिल्ली के मसनद पर बैठे सरकार और उसके निर्देश पर चलनेवाले चुनाव आयोग ने देश भर में संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। पूरी चुनाव प्रक्रिया में अनेक अनियमितताएं पिछले कुछ वर्षों से जारी हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के वक्त कई सवाल उठाये गये। चुनाव आयोग ने उनका संतोषजनक जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा।बंगलौर लोकसभा चुनाव में महादेवपुरा विधान सभा क्षेत्र में वोटचोरी का जो खुलासा हुआ, वह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है।

इसीलिए, साझा नागरिक मंच ने इन सवालों पर लगातार प्रचार अभियान जारी रखा है। संगठित और असंगठित मजदूरों के बीच तथा विभिन्न क्षेत्रों में पर्चा बांटने का अभियान चलाया जा रहा है।

साझा नागरिक मंच की मांग है कि 1. एस आई आर पर रोक लगे 2. सत्ता पक्ष के दखल से मुक्त स्वतंत्र निष्पक्ष चुनाव आयोग गठन की प्रक्रिया बने। लोकसभा के अध्यक्ष, प्रतिपक्ष के नेता तथा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पैनल चुनाव आयोग का गठन करे।

एस आई आर के विरोध में चल रहे जनमत जागरण अभियान में चुनाव आयोग द्वारा की जा रही गड़बड़ियों के अनेक पक्ष बताये जा रहे हैं। पहले चुनाव आयोग सम्पन्न मतदान का ठीक-ठाक संख्या में आंकड़ा बताता था, अब प्रतिशत में बताता है। इससे यह पता नहीं चलता कि ठीक-ठाक कितने लोगों ने मतदान किया। पहले चुनाव के दिन शाम को और उसके बाद देर रात को मतदान की संख्या बताई जाती थी! इसमें कभी भी एक प्रतिशत से ज्यादा का फर्क नहीं आया। अब जब तकनीक बेहद सटीक हो गई है, तब भी शाम और देर रात तक के आंकड़े में पांच प्रतिशत से ज्यादा के फर्क भी आ रहे हैं। इतना ही नहीं, पहले आमतौर पर देर रात तक बताए गए मत संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता था। अब तो मतदान के दिन की रात में बताए गए मत प्रतिशत से भी अलग कुछ दिनों के बाद मत प्रतिशत जाहिर किया जाता है, और उसमें भी अच्छा खासा फर्क होता है। पहले कभी आंकड़ों, वीडियोग्राफी और सीसीटीवी कैमरे के फुटेज को दिखलाने से मनाही नहीं होती थी। अब तो उन्हें छुपाने के लिए नियम तक बदल दिए गये हैं। जिलाधीशों का नकारात्मक हस्तक्षेप चुनाव की अंतिम मतगणना घोषित करने में, जीत का सर्टिफिकेट देने में और कभी-कभी दिए गए सर्टिफिकेट को वापस लेकर दूसरे पक्ष को जीत का सर्टिफिकेट देने जैसे रूपों में बढ़ता गया है।

महाराष्ट्र के मरकरबाड़ी गांव का एक ऐतिहासिक संदर्भ बन गया है।इस गांव के लोगों को अपने यहां के मत के नतीजे का भरोसा नहीं हुआ। तब उन्होंने चुनाव के बाद सार्वजनिक घोषणा कर अपने बूथ का फिर से मतदानहपर्ची के माध्यम से करने का निर्णय लिया। लेकिन नई सरकार ने उनके इस मतदान कार्यक्रम को पुलिस बल की ताकत से नहीं होने दिया। अगर मतदान सचमुच सही हुआ था तो उन्हें मतदान से रोकने का क्या तुक था। वैसे भी उस मतदान से रिजल्ट में कोई फर्क तो आने वाला नहीं था। जाहिर है उस मतदान से जो सच जाहिर होता, वह चुनाव नतीजों से अलग होगा, यह डर कहीं न कहीं था। एस आई आर के तहत यह मान्यता रखी गई है कि 2003 के बाद की जो सारी मतदाता सूचियां हैं वे मान्य नहीं हैं। 2003 के बाद की सूचियों के मतदाताओं की नागरिकता अपुष्ट या अप्रामाणिक है।

लाखों मौजूदा युवा मतदाताओं को प्रामाणिक की जगह उन्हें संदिग्ध बताना कहीं से भी वैधानिक और नैतिक नहीं है। आज तक किसी भी रिवीजन में पुरानी मतदाता सूची को अमान्य नहीं किया गया। किसी भी पुनरीक्षण में केवल हटाने की प्रक्रिया नहीं चली। जोड़ने और छांटने की प्रक्रिया साथ-साथ चली। इस बार ये दोनों काम हुए। इस बार रोजगार की तलाश में बाहर गए लोगों को भी मतदाता सूची से बाहर करने की मानसिकता चुनाव आयुक्त के बयान से जाहिर हुई है। सभी बालिगों को मताधिकार भारतीय लोकतंत्र का मूल आधार है। इसके साथ कोई भी छेड़खानी सही नहीं है। मतदाता सूची में फर्क से जातियों की जनसंख्या में भी फर्क का एक तर्क तैयार हो सकता है । इस तरह से यह जातीय जनगणना को भी कमजोर करने की एक प्रक्रिया बन सकती है।

इसी जागृति की कड़ी में आज की नुक्कड़ सभा हुई। इस सभा को रामकविन्द्र सिंह, सियाशरण शर्मा, रईस अफरीदी ,मंथन , सुजय राय, अरविंद रविकर, सुखचंद्र झा, अभिषेक कुमार आदि ने सम्बोधित किया।

इस कार्यक्रम में देवाशीष, शशांक शेखर, जगनारायण जगत , मनतोष चक्रवर्ती, उजागिर यादव, गौतम बोस, श्यामली राय, शशांक शेखर, शीतल पांडेय, विकास कुमार, अंकुर शाश्वत, मुरारी प्रसाद, सपन दास राय, रामबचन, राजकुमार दास, अवधेश कुमार, हेमंत द्विवेदी, मिथुन दास, देवेन्द्र सिंह, प्रफुल्ल साहु, ममता द्विवेदी, पूनम शर्मा,मनीष सिंह, चरणजीत सिंह , आशीष घोष, जयकिशोर, चैतन्य शिरोमणि, असलम मल्लिक, श्याम किशोर, शंकर नायक, अमर सेंगेल, रायमूल बानरा, कृष्णा लोहार, गणेश राम आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

काशीनाथ प्रजापति ने गीत गाया और अशोक शुभदर्शी, शैलेन्द्र कुमार अस्थाना , ज्योत्स्ना अस्थाना, काशीनाथ प्रजापति, उदय हयात, वरुण प्रभात आदि ने जनतांत्रिक और प्रगतिशील कवितायें प्रस्तुत की।

-मंथन


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