गांधी और लोहिया : स्वतंत्रता, अहिंसा और नए भारत की दृष्टि

0
Gandhi and Lohia

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहाँ एक ओर महात्मा गांधी ने नैतिकता, सत्य और अहिंसा को राजनीति का आधार बनाया, वहीं दूसरी ओर डॉ. राममनोहर लोहिया ने उसी अहिंसक परंपरा को समाजवादी दृष्टि और जन आंदोलन की धार दी। दोनों के बीच विचारों का अंतर था, पर लक्ष्य एक — न्यायपूर्ण, समतामूलक और स्वावलंबी भारत।

गांधीजी के लिए स्वतंत्रता केवल अंग्रेज़ों से मुक्ति नहीं थी, बल्कि मनुष्य की आत्मा की मुक्ति थी। वे कहते थे कि “स्वराज केवल शासन परिवर्तन नहीं, बल्कि आत्म-शासन है।” डॉ लोहिया ने इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा कि “राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक है जब सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी साथ मिले।”

गांधी के प्रयोगों ने उन्हें सिखाया कि अहिंसा का सच्चा अभ्यास केवल शारीरिक श्रम से जुड़कर ही संभव है। उन्होंने इसे “ब्रेड लेबर” कहा — अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रोटी स्वयं के श्रम से अर्जित करनी चाहिए।

डॉ लोहिया ने भी इस सिद्धांत को स्वीकार किया और कहा कि भारत का पुनर्निर्माण केवल हाथ के श्रम और बौद्धिक श्रम की एकता से ही संभव है। उनके अनुसार, जो समाज अपने श्रम का सम्मान नहीं करता, वह आत्मनिर्भर नहीं हो सकता।

गांधीजी ने कांग्रेस के रचनात्मक कार्यक्रम को स्वराज्य की आधारशिला माना खादी,ग्रामोद्योग, शिक्षा, अस्पृश्यता-निवारण, मद्यत्याग, और सांप्रदायिक सद्भाव।

डॉ लोहिया ने भी माना कि बिना रचनात्मक कार्यों के स्वतंत्रता आंदोलन अधूरा है, पर वे चाहते थे कि यह कार्यक्रम किसान, मजदूर और शोषित वर्गों के संघर्षों से जुड़कर आगे बढ़े।

गांधी ने चेतावनी दी कि “जो आंदोलन रचनात्मक कार्य से कटेगा, वह अंततः हिंसा की ओर जाएगा।”

डॉ लोहिया जी भी मानते थे कि गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम को वैज्ञानिक समाजवाद की दृष्टि से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि समानता और आर्थिक न्याय की स्थापना हो सके।

गांधीजी और डॉ लोहिया दोनों ही अंधाधुंध औद्योगीकरण के विरोधी थे। गांधी ने कहा था कि “भविष्य के भारत में उद्योग गाँवों की सेवा के लिए होंगे, न कि गाँवों के विनाश के लिए।”
उनकी दृष्टि में बिजली, जहाज निर्माण, मशीनें सब हो सकती हैं, पर इनका उद्देश्य ग्रामोद्योग और स्वावलंबी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होना चाहिए।

डॉ लोहिया ने भी कहा था कि भारत को पश्चिमी पूँजीवादी मॉडल की नकल नहीं करनी चाहिए। उन्होंने ‘चौखम्भा राज’ (Four-Pillar State) की अवधारणा दी, जहाँ सत्ता का बंटवारा गाँव, जिला, प्रांत और केंद्र में समान रूप से हो। यह गांधी के विकेंद्रीकरण के सिद्धांत का समाजवादी रूप था।

डॉ लोहिया ने 1940 में अपनी “शांति योजना” में एक विश्वव्यापी दृष्टि रखी जिसके चार सूत्र थे:

1. सभी राष्ट्र स्वतंत्र हों।
2. सभी नस्लें समान हों।
3. पूँजी और निवेश पर अंतरराष्ट्रीय न्याय हो।
4. पूर्ण निरस्त्रीकरण हो।

गांधीजी ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि यदि मानवता को टिकना है, तो अहिंसा ही विश्वव्यवस्था का आधार बननी चाहिए। उन्होंने चेताया “हिंसा से जो कुछ प्राप्त होता है, वह अंततः हिंसा से ही नष्ट हो जाता है।”

1946 में जब डॉ. लोहिया ने गोवा जाकर पुर्तगाली शासन के विरुद्ध नागरिक स्वतंत्रता की आवाज उठाई, तो उन्हें तुरन्त गिरफ्तार कर एकान्त कारावास में डाल दिया गया। गांधीजी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी —

“किसी भारतीय को गोवा में प्रवेश से रोकना उतना ही अपमानजनक है जितना मुझे भारत के किसी भाग में जाने से रोकना। लोहिया ने गोवा में वह मशाल जलाई है जिसे बुझने देना गोवा के निवासियों के लिए आत्मघात होगा।”

यह गांधी का लोहिया के साहस के प्रति स्पष्ट सम्मान था। भले ही राजनीति में मतभेद रहे हों, पर दोनों का उद्देश्य स्वतंत्रता और मानव सम्मान की रक्षा का था।

लोहिया पर अंग्रेजी शासन ने “भड़काऊ भाषण” देने का आरोप लगाया। न्यायालय ने स्वीकार किया कि वे “उच्च विचारों और नैतिकता वाले व्यक्ति” हैं, फिर भी उन्हें दो वर्ष कठोर कारावास की सजा दी।

गांधीजी ने लिखा “अपने देश से प्रेम और स्पष्टवादिता उस देश में अपराध बन जाती है, जहाँ राज्य जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। लोहिया और अन्य कांग्रेसियों की जेलें वे हथौड़े हैं जो भारत की बेड़ियाँ तोड़ेंगी।”

गांधीजी और डॉ लोहिया के बीच अनेक पत्राचार हुए। गांधी ने उनके स्वास्थ्य, पिता के निधन, और सामाजिक कार्यों के विषय में चिंता व्यक्त की। यह केवल राजनीतिक नहीं, मानवीय संबंध था। स्वतंत्रता से पहले और बाद तक गांधी ने लोहिया से संवाद बनाए रखा। गांधीजी ने लिखा “हमने जो एकमात्र शक्ति पाई थी — वह नैतिक शक्ति थी और अब हम उसे खो चुके हैं। यदि हम कर्मयोगी हैं, तो हमें आत्मसंयम और इच्छाशक्ति का उदाहरण देना होगा।”

यह संदेश न केवल लोहिया को बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी संबोधित था।

गांधीजी के बाद लोहिया की विरासत

गांधीजी की हत्या के बाद डॉ लोहिया ने उनके अधूरे स्वप्न को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया।उन्होंने कहा “गांधीजी ने भारत को आत्मा दी, अब उसे शरीर देना हमारा काम है।”
डॉ लोहिया ने गांधी की अहिंसा को संगठित जन-शक्ति और राजनीतिक प्रतिरोध का हथियार बनाया।

महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया के बीच मतभेद थे, पर विरोध नहीं। गांधीजी ने कहा था — “मैं उनसे सहमत नहीं, पर उनके साहस और देशभक्ति को नमन करता हूँ।”

दोनों ने भारत को नैतिकता, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के मार्ग पर चलने का पाठ पढ़ाया। एक ने आत्मा की स्वतंत्रता दी, दूसरे ने सामाजिक चेतना का स्वर। यदि गांधी राष्ट्र की आत्मा हैं, तो डॉ लोहिया उसकी अंतरात्मा।

आज जब देश फिर से विभाजन, असमानता और हिंसा के संकट से जूझ रहा है, तो गांधीजी की करुणा और डॉ लोहिया की स्पष्टवादिता दोनों की पुनः आवश्यकता है। दोनों की संयुक्त आवाज़ हमें याद दिलाती है कि “स्वराज्य केवल शासन नहीं यह मनुष्य के भीतर की स्वतंत्रता है।”

डॉ लोहिया की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन!


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment