जाने-माने शिक्षाविद, गांधी-विचार के संवाहक, प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगानेवालों में अग्रणी, साहित्य और दर्शन के अध्येता रमेश थानवी का 12 फरवरी 2022 को जयपुर में देहांत हो गया। वे 78 वर्ष के थे। देश में शैक्षिक बदलाव में रमेश जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। वे राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष और ‘अनौपचारिका’ के संस्थापक-संपादक थे। उनका व्यक्तित्व बहुत निर्मल और अद्भुत था। वे बाल-मन के संवेदनशील रचनाकार, सरलता और सहजता के साथ-साथ स्पष्टवादी इंसान थे। उनके संपादन में प्रकाशित पत्रिका अनौपचारिका उनके स्वभाव के अनुकूल थी।
कुछ दिन से वे अपने भतीजे ओम थानवी, पौत्र डॉ मिहिर के यहाँ थे। दो-तीन दिन से उनकी तबीयत नासाज़ थी। रोजाना की तरह राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति जा रहे थे। विस्तृत जाँच करवाकर आए थे। सब रिपोर्ट सही थीं। एक दिन पहले तक अपने पड़पोतों से खेल रहे थे। लेकिन शनिवार की सुबह वे नहीं उठे। चैन की नींद में अनंत सफर पर निकल गये।
वे प्रसिद्ध पत्रकार ओम थानवी जी के चाचा थे। ओम थानवी ने सोशल मीडिया पर उनके निधन की जानकारी दी। ओम थानवी ने बताया कि रमेश जी ने दर्शन की पढ़ाई की। साहित्य का स्वाध्याय किया। उनका हिंदी और अँग्रेजी, दोनों पर अधिकार था। बांग्ला भी जानते थे। समाज और शिक्षा पर उन्होंने बहुत लिखा। ‘सवाल करने का हक’ और ‘शिक्षा की परीक्षा’ उनकी जानी-मानी किताबें हैं। बच्चों के लिए लिखी ‘घड़ियों की हड़ताल’ बहुत छपी, बहुत पढ़ी गयी। उन्होंने रेगिस्तान की पृष्ठभूमि पर सत्यजित राय की कृति ‘सोनार केल्ला’ (सोने का किला) का अनुवाद भी किया था। इसके अतिरिक्त अनेक नवसाक्षर साहित्य की किताबें भी चर्चित रहीं।
ओम थानवी ने बताया कि रमेश जी का वास्ता शिक्षा के अलावा सरोकारी पत्रकारिता से भी रहा। ‘प्रतिपक्ष’ में वह कमलेश, गिरधर राठी, मंगलेश डबराल, एनके सिंह के साथ काम कर चुके थे। वह संघर्ष वाले जॉर्ज फर्नान्डीज का साप्ताहिक था। जॉर्ज के एनडीए से जुड़ने को वे कभी माफ नहीं कर सके। देश में बढ़ते आततायी माहौल से अकसर दुखी, बहुत भावुक हो उठते थे।
रमेश जी के निधन पर विख्यात शिक्षाविद अनिल सदगोपाल ने शोक संवेदना व्यक्त करते हए कहा कि रमेश थानवी जी इतनी जल्दी गुजर जाएंगे, यह मेरे सोच के बाहर था। उनके अनंतकालीन सफर पर चले जाने की खबर पाकर काफी अफसोस हुआ। उन्होंने कहा कि “रमेश जी से मेरा तीन दशक का संवाद रहा। मुलाकात के बगैर ही एक दूसरे को ऐसे जान गये थे जैसे पड़ोसी हों। 2010 में देश भर में नवोदित ‘शिक्षा अधिकार कानून’ का मामला गर्म था। सारा मीडिया और देश के मशहूर प्रगतिशील चिंतक इसके गुणगान में लगे हुए थे और इसे ऐतिहासिक तथा क्रांतिकारी बता रहे थे। मैं उस कानून के खिलाफ झंडा लेकर जनांदोलन खड़ा कर रहा था।
रमेश जी का फोन आया कि आप इस कानून पर ‘अनौपचारिका’ के लिए एक विस्तृत लेख लिख दीजिए। मैंने छूटते ही कहा, ‘मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है कि आप ऐसा कह रहे हैं लेकिन लिखूँगा नहीं। अगर मैंने लिख दिया और आपने छाप दिया तो जयपुर से लेकर दिल्ली तक की सारी नौकरशाही और शिक्षामंत्री आदि न केवल आपके, वरन अनौपचारिका के भी खिलाफ हो जाएंगे और वे अनौपचारिका को नुकसान भी पहुँचा सकते हैं। एकाध दिन बाद फिर फोन आया : ‘मैंने आगा-पीछा सब सोच लिया। आप लेख लिख दीजिए। हम उसे जरूर छापेंगे। अनौपचारिका अगर सरकारी नीतियों का विरोध करने से कतराएगी तो फिर इसके निकलते रहने का कोई मतलब नहीं।’
मैंने शर्त रखी कि मेरे आलेख में आप अर्धविराम तक नहीं बदलेंगे, जैसा भेजूंगा हूबहू वैसा ही छापेंगे। इतनी कड़क शर्त यह सोचकर रखी थी कि ऐसी शर्त सुनकर दुनिया का कोई भी संपादक छापने की सहमति नहीं देगा। लेकिन रमेश जी ने न केवल शर्त मानी बल्कि उसका पूरी ईमानदारी से पालन भी किया। अनौपचारिका के उसी अंक में तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा सचिव का भी लेख छपा। मेरे आलेख में भारत सरकार की स्कूली शिक्षा नीतियों की कड़ी आलोचना थी। उस दिन मैं समझ गया कि रमेश थानवी जी उस मिट्टी के नहीं बने हैं जिससे नवउदारवादी पूँजीवादी नीतियों और विश्व व्यापार संगठन का अथक यशगान करनेवाले अन्य संपादक बने हैं।”
समकालीन शिक्षा चिंतन की पत्रिका अनौपचारिका के कार्यकारी संपादक प्रेम गुप्ता ने शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ा दुख है कि शिक्षाविद, शिक्षा मनीषी रमेश थानवी हम सब को छोड़कर चले गये। उनका कुटुम्ब विशाल है। हर एक व्यक्ति के प्रति संवेदना से भर जाना, हमेशा सकारात्मक सोच रखना, चरैवेति, चरैवेति कहते रहना, अंतिम समय तक कर्मशील बने रहना, अपार स्नेह के धनी ऐसी शख्सियत को खोना हम सब के लिए असहनीय है।
समाजसेवी, विचारक, आदर्शवादी एवं उदार व्यक्तित्व के धनी रमेश जी का अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा। उनका जीवन ऐसा सादगी भरा था कि वे गांधी विचार के सच्चे संत लगते थे। समावेशी और प्रकृति के सहअस्तित्व वाले समाज निर्माण के प्रति आजीवन प्रतिबद्ध रहे।
(सप्रेस)