अपने शिशुओं की किलकारी सुनने से वंचित रह जातीं हैं हजारों महिलाएँ

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21 अप्रैल। जागरूकता और शिक्षा की कमी के चलते भारत में हर साल हजारों महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान उचित देखभाल न होने के कारण जान चली जाती है। भारत में हर साल हजारों महिलाएँ अपने शिशुओं की किलकारी नहीं सुन पाती हैं। घर में नौनिहाल के आगमन की खुशी, दुख के मंजर में तब्दील हो जाती है। किसी भी परिवार के लिए यह तस्वीर दिल को झकझोर देने वाली होती है। आखिर इसकी बड़ी वजह क्या है? तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद आखिर इस पर अभी तक नियंत्रण क्यों नहीं पाया जा सका?

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल करीब 45,000 महिलाएँ प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा देती हैं। यह संख्या दुनिया भर में इस तरह की होनेवाली मौतों का करीब 12 फीसद है। देश में जन्म देते समय प्रति 100,000 महिलाओं में से 167 महिलाएँ मौत के मुँह में चली जाती हैं। हालांकि, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मातृ मृत्यु दर में तेजी से कमी आ रही है। देश ने 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्यु दर को 65 फीसद से ज्यादा घटाने में सफलता हासिल की है। इस अभियान की शुरुआत ‘व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया’ द्वारा की गई थी।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. उपासना सिंह का कहना है, कि भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा गाँव में रहता है। गाँव में खासकर गरीब और आदिवासी इलाकों में एक बड़े तबके में महिला शिक्षा के प्रति उतनी जागरूकता नहीं है। यह आबादी महिलाओं के हक के प्रति भी उदासीन है। उन्होंने कहा, कि शिक्षा और जागरूकता की कमी के चलते वह सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रही हैं। उन्होंने कहा गर्भावस्था महिलाओं के लिए पर्याप्त देखभाल और कौशल के लिए केंद्र सरकार की आधे दर्जन से अधिक योजनाएँ अमल में है, लेकिन इन योजनाओं की पहुँच सुदूर गाँव तक नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा, कि अगर इन सरकारी योजनाओं का सही तरीके से उपयोग किया जाए तो गर्भावस्था के दौरान मरने वाली माताओं की संख्या पर काबू पाया जा सकता है।

डॉ. उपासना सिंह का कहना है, कि भारत में इसे एक दिवस के रूप में मनाने का मकसद गर्भावस्था के समय और उसके बाद महिलाओं के लिए आवश्यक देखभाल और कौशल के बारे में जागरूक करना है। शिक्षा और जागरूकता के कारण अभी भी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं और जागरूकता के स्तर पर अनजान है। गाँव के दूर दराज इलाकों में अभी भी इस बात की समझ नहीं है कि गर्भवती महिलाओं को क्या चाहिए और प्रसवोत्तर देखभाल माँ और बच्चों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

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