एमपी वीरेंद्र कुमार ने राजनीति को ऊपर उठाया और साहित्य को समृद्ध किया

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एम.पी. वीरेन्द्र कुमार (15 अगस्त 1947 - 28 भी 2020)


— डॉ सुनीलम —

केरल के सबसे बड़े मीडिया समूह मातृभूमि प्रकाशन के प्रबंध निदेशक, लोकप्रिय विधायक, सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री रहे मनियानकोड़ी पद्मप्रभा वीरेंद्र कुमार की आज 28 मई 22 को दूसरी बरसी है।

72 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ था। उनके पैतृक निवास स्थान केरल के जिला वायनाड के कलपेट्टा इलाके के ग्राम पुरकडडी जाने का अवसर हाल ही में मिला, जहॉं उनके कॉफी के खेत हैं। वहीं उनकी अंत्येष्टि भी की गयी थी।

केरल के मानव अधिकार संगठन इनसोको के द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में भी मैं केरल के समाजवादियों के साथ शामिल हुआ।

वीरेंद्र कुमार के पिता एम के पद्मप्रभा, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ-साथ समाजवादी भी थे। समाजवादी विचार के साथ वीरेंद्र कुमार जी के परिवार का गहरा रिश्ता रहा है। उनके सुपुत्र श्रेयांश कुमार भी राज्यसभा के सदस्य रहे हैं तथा अभी लोकतांत्रिक जनता दल के अध्यक्ष है।

वीरेंद्र कुमार को केरल में समाजवादी आंदोलन के वरिष्ठतम नेताओं में तो माना ही जाता है, केरल में एक बड़े साहित्यकार के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की। उन्होंने 24 से अधिक किताबें लिखी है। जिनको लेकर उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं।

उन्हें साहित्य एकेडेमी द्वारा मलयालम भाषा में साहित्य लेखन के लिए, 2016 में 30वां मूर्तिदेवी अवार्ड, हैमवथ भोविल (हिमावथा भूविल) नामक किताब के लिए दिया गया। जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, साहित्य, पर्यावरण, पानी के सवाल और कचरा निस्तारण के सवालों को उठाया था। इसी पुस्तक पर उन्हें वायलर अवॉर्ड, अमृत कीर्ति पुरस्कारम दिया गया। उन्हें अपने जीवन काल में 106 विशिष्ट पुरस्कार प्राप्त हुए और उन्होंने 55 देशों की यात्रा की।

उन्होंने अपने जीवन काल में न केवल खुद समृद्धि हासिल की बल्कि अपनी प्रतिभा, प्रतिबद्धता और संकल्प से समाजवादी आंदोलन, मलयालम भाषा तथा मातृभूमि मीडिया ग्रुप को भी समृद्ध किया।

सबसे पहले वह ईके नायनार सरकार में वन मंत्री बनाए गए। उन्होंने पहला आदेश जंगल की कटाई को रोकने का दिया, हालांकि उन्हें 48 घंटे में ही मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वे गठबंधन के मंत्रिमंडल में थे और पार्टी का कोटा तय हो गया था।

वीरेंद्र कुमार जब कोझिकोड से लोकसभा के सदस्य बने तब उन्हें यूनाइटेड फ्रंट की केंद्र सरकार ने वित्त राज्यमंत्री और आईके गुजराल जी की सरकार में श्रम मंत्रालय दिया। श्रम मंत्री के तौर पर उन्होंने कामगारों को सेवानिवृत्त होते समय ही पूरा प्रोविडेंट फंड देने के आदेश जारी किए तथा कर्मचारियों के बीमा-अस्पतालों को सुधारा। विभिन्न मंत्रालयों को सॅंभालते हुए उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता और समाजवादी प्रतिबद्धताओं को साबित किया।

इमरजेंसी में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा उनकी संपत्ति को सरकार ने जब्त कर लिया, इसके बावजूद वे अपने रास्ते से नहीं हटे। उन्होंने यह साबित किया कि सरकार को चुनौती देते हुए भी अखबार न केवल चलाया जा सकता है बल्कि उसे सर्वाधिक लोकप्रिय भी बनाया जा सकता है।

उनकी तुलना समाजवादी साहित्यकार कर्नाटक के यू आर अनंतमूर्ति तथा मध्य प्रदेश के जगन्नाथ मिलिंद से की जाती है।

केरल में करोड़ों पाठकों की सुबह की शुरुआत ‘मातृभूमि’ अखबार पढ़ने से होती है। मलयालम में उनकी भाषण शैली को विशेष तौर पर सराहा जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे किसी भी सवाल को वैश्विक स्तर और दार्शनिक स्तर पर ले जाने की क्षमता रखते थे। जिसके माध्यम से किसी भी समस्या को सरलता के साथ सैद्धांतिक स्तर पर समझा पाने में सफल होते थे।

मेरी उनसे आखिरी मुलाकात समाजवादी विचार यात्रा के दौरान कोरोना काल के पहले कोझीकोड के अस्पताल में हुई थी। उन्होंने समाजवादी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए लंबी चर्चा की थी। वे चाहते थे कि समाजवादी विचारों की पार्टियों और संगठनों को एकजुट हों।

हालांकि उनका कार्यक्षेत्र केरल था लेकिन उन्होंने कभी भी क्षेत्रीय स्तर पर नहीं सोचा; वे हर समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोचते, लिखते और कार्य किया करते थे। उन्होंने कभी राजनीतिक लाभ के लिए समझौते नहीं किए। जब नीतीश कुमार फिर से भाजपा के साथ चले गए तब वे जनता दल यूनाइटेड से अलग हो गए। उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। फिर से निर्दलीय चुनकर राज्यसभा में आए।

उन्होंने शरद यादव के साथ रहना पसंद किया। उनकी शुरुआत तो संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से हुई थी, वे जॉर्ज फर्नान्डिस के साथ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे। उन्होंने अंतिम सांस भी समाजवादी नेता के तौर पर ही ली। यदि वे कांग्रेस में रहे होते तो केरल का मुख्यमंत्री बन सकते थे और कई दशकों तक केंद्रीय मंत्री रह सकते थे। लेकिन उन्होंने समाजवादी विचार को अंतिम समय तक नहीं छोड़ा। कभी कांग्रेस कभी वामपंथियों के साथ उनका रिश्ता अपनी स्वतंत्र समाजवादी पहचान के साथ बना रहा।

केरल में वीरेंद्र कुमार जी को प्लाचीमाड़ा संघर्ष के लिए भी जाना जाता है। जहां केरल की एक पंचायत ने अमेरिका की सबसे बड़ी कंपनी कोका कोला को चुनौती दी थी, जिसके चलते कंपनी को अपना प्लांट बन्द करने के साथ साथ मुआवजा भी देना पड़ा था।

वीरेंद्र कुमार जी के निधन के बाद एक स्मारिका प्रकाशित हुई जिसमें केरल के वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद ने लिखा है कि जनहित में अपने हित को त्याग देने की वीरेंद्र जी ने शानदार मिसाल पेश की थी। जब मालाबार के इलाके से दो समाजवादी मंत्री बनाए जाने को लेकर सवाल खड़ा हुआ तो उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। यदि इस्तीफा नहीं दिया होता तो पार्टी में फूट हो सकती थी।

जहाजरानी एवं जल परिवहन मंत्री रहे के पी उन्नीकृष्णन ने कहा कि उन्होंने गांट (चाय बागान) के श्रमिकों को लेकर जो लिखा उसमें मलयालम साहित्य में आर्थिक मुद्दों पर लिखने की एक परंपरा शुरू की। आरएसपीके के सांसद एन के प्रेमचंद्रन ने लिखा कि उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाए जाने को लेकर जो रुख अपनाया उससे कुछ समय के लिए ही सही, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बचाया जा सका।

मुस्लिम लीग के सांसद अब्दुल समद समाधानी ने उन्हें सशक्त वक्ता तथा मानवतावाद के लिए प्रतिबद्ध बेजोड़ व्यक्ति बताया।

प्रख्यात लेखक पी पद्मनाभन ने लिखा कि विवेकानंद के ऊपर उन्होंने जो किताब लिखी है, वह मानवता के लिए उनकी सबसे बड़ी देन है। लेखक मुकन्दन ने हैमवथ भोविल किताब को पर्यावरण संकट और मानवता के अस्तित्व पर मंडराते संकट की पड़ताल करनेवाली विशिष्ट पुस्तक बताया।

प्रोफेसर एमएन काराशेरी, जो जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक और इतिहासकार है, ने लिखा कि विवेकानंद के विचारों से कैसे फासिस्टों से लड़ा जा सकता है यह रास्ता वीरेन्द्र कुमार जी ने बताया।

केरल के मुख्य सचिव रहे आईएएस के जयकुमार ने लिखा कि वीरेंद्र कुमार ने जो कुछ भी कहा और किया वह पूरे मन से किया तथा अपनी समाजवादी प्रतिबद्धताओं से कभी भी समझौता नहीं किया।

कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने लिखा है कि सैद्धांतिक राजनीति, चमकदार व्यक्तित्व, प्रभावी शैली और सुसंस्कृत व्यक्ति के तौर पर उन्हें इतिहास में जाना जाएगा।

वीरेंद्र कुमार जी पर प्रकाशित स्मारिका में उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व मंत्री शरद यादव, डॉ एम वीरप्पा मोइली, संजय राउत सहित देश के प्रख्यात राजनीतिज्ञों, इतिहासकारों एवं बुद्धिजीवियों ने उन्हें व्यक्तिगत दोस्त बताते हुए राजनीति और साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान की सराहना की है।

वरिष्ठ समाजवादी आरंगल श्रीधरन जी और वीरेंद्र कुमार
समाजवादियों और आनेवाली पीढ़ियों को सदा प्रेरणा देते रहेंगे।

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