— योगेंद्र यादव —
प्रधानमंत्री की बात सुन मेरा सिर झुक गया। प्रधानमंत्री गुजरात में थे। हमेशा की तरह ओजस्वी भाषण दे रहे थे। अपने आठ वर्ष की राष्ट्रसेवा का बखान कर रहे थे। बोले “आठ साल में गलती से भी ऐसा कुछ ना होने दिया है, न ऐसा कुछ किया है, जिसके कारण आपको या देश के किसी नागरिक को सर झुकाना पड़े।” वैसे प्रधानमंत्री जी थोड़ा लंबी फेंकते हैं, लेकिन यह बाउंसर तो उनके स्टैंडर्ड से भी कुछ ज्यादा ही ऊंचा था। मेरी आंखों के सामने पिछले आठ सालों की आठ छवियां तैरने लगीं।
पहली छवि सूटकेस पर ऊंघते बच्चे की थी जिसके मां-बाप उसे घसीटते हुए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गांव जाने के लिए अभिशप्त थे। लॉकडाउन के दौरान ऐसी सैकड़ों तस्वीरें हर भारतीय ने देखीं और शर्म से उनका सर झुका था। लॉकडाउन कमोबेश पूरी दुनिया में लगा, लेकिन ऐसी भयावह तस्वीरें अफ्रीका के निर्धनतम देश से भी नहीं आयीं। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में प्रति व्यक्ति कोरोना रिलीफ पैकेज में सबसे कम पैसा देनेवालों में भारत सरकार शामिल थी। इस व्यथा पर कविताएं लिखी गयीं, किताबें लिखी गयीं, फिल्में बनीं लेकिन प्रधानमंत्री को झुके सर दिखे नहीं।
दूसरी छवि गंगा में बहती हुई लाशों की थी, धू-धू कर जलते हुए श्मशान घाटों की थी, अस्पताल के बाहर तड़पते मरीजों की थी, ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भागते परिजनों की थी। कोरोना की महामारी पूरी दुनिया में आयी, लेकिन इतनी मौतें और बदइंतजामी बहुत कम देशों में दिखाई दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सच्चाई से पर्दा उठा दिया है और भारत में कोरोना काल में लगभग 47 लाख मौत का अनुमान बताया है। संक्रमित आबादी में सबसे अधिक प्रतिव्यक्ति मौत वाले देशों में अब भारत शामिल है। दुनिया भर में छपी इस खबर से क्या हमारा सर झुकना नहीं चाहिए?
तीसरी छवि नोटबंदी के समय लगी लंबी-लंबी कतारों की है। अब तो सरकार के समर्थक अर्थशास्त्री भी यह मानते हैं कि यह फैसला तुगलकी था। खुद रिजर्व बैंक के आंकड़ों से यह साबित हो गया है कि नोटबंदी के बाद सारा काला धन सफेद हो गया, जाली नोटों का प्रचलन पहले से ज्यादा बढ़ गया और कैश के जरिए दो नंबर का धंधा पहले से ज्यादा फल-फूल रहा है। दुनिया भर की अर्थशास्त्र की पाठ्य पुस्तकों में भारत सरकार के नोटबंदी के फैसले को मूर्खतापूर्ण मौद्रिक नीति के नमूने के रूप में पढ़ाया जाएगा। यह सोचकर मेरा सर तो झुक जाता है।
चौथी छवि सरकारी नौकरी के इंतजार में मीलों लंबी दौड़ लगाते हुए नौजवानों की है, भर्ती में धांधली के खिलाफ रेलवे पटरी पर उतरे उम्मीदवारों की है और बेरोजगारी पर देश का ध्यान आकर्षित करने के लिए युवाओं के प्रदर्शनों की है। आंकड़े बताते हैं कि इस समय भारत में बेरोजगारी की दर आजाद भारत के इतिहास में सबसे अधिक है। भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां युवा बेरोजगारी का प्रतिशत सबसे ज्यादा है। यही नहीं, रोजगार की संभावना बुझती देखकर अब करोड़ों लोगों ने रोजगार ढूंढ़ना ही बंद कर दिया है। उनके झुके सर देखने की फुर्सत है मोदी जी को?
पांचवीं छवि खुद मोदी जी के आठ साल पुराने चुनाव प्रचार के होर्डिंग की है : “बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार”। पिछले महीने यह कीर्तिमान भी टूट गया। अब देश में थोक महंगाई सूचकांक पिछले 30 वर्षों में सबसे ऊंचाई पर है। इसकी चढ़ाई यूक्रेन युद्ध से पहले ही शुरू हो चुकी थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज भी कच्चा तेल उसी दाम पर बिक रहा है जितना आठ साल पहले था। लेकिन पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम डेढ़ से दोगुने हो चुके हैं। इस बीच प्रतिव्यक्ति आय बढ़नी बंद हो गयी है, किसानों की आय दोगुनी करने का जुमला झूठा साबित हो चुका है। हां अंबानी की संपत्ति तीन गुना और अडानी की संपत्ति चौदह गुना बढ़ चुकी है। सोचता हूं क्या अपने ही पुराने होर्डिंग देखकर प्रधानमंत्री का सर नहीं झुकता होगा?
छठी तस्वीर खींसे निपोरते सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की है। यह तस्वीर गोदी मीडिया के किसी एंकर की भी हो सकती थी। पिछले आठ साल में हर दिन भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटा गया है, हर स्वतंत्र संस्था की स्वायत्तता खत्म हुई है। दुनिया की लगभग हर संस्था की नजर में भारत लोकतंत्र और मीडिया की स्वतंत्रता की रैंकिंग में हर साल गिरता जा रहा है। विदेशी रैंकिंग की चिंता छोड़ भी दें तो भी हर भारतीय की आंख के सामने लोकतांत्रिक संस्थाएं चौपट हो रही हैं। चूंकि एक जमाने में मैं दुनिया भर में जाकर भारतीय लोकतंत्र का गुणगान करता था, इसलिए आज कम से कम मेरा सर तो झुकता है।
सातवीं तस्वीर बुलडोजर की है, लिंचिंग की है, खुदाई की है। जिस वक्त पूरी दुनिया संकट से उबर रही है, देशवासी अपना तिनका तिनका जोड़ रहे हैं, उस वक्त हमारे देश में सरकार की नाक के नीचे नफरत के सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं, अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है, उन पर बुलडोजर चल रहे हैं। लिंचिंग अब आम बात हो गयी है, हिंसा भड़काने वाले बड़ी बड़ी कुर्सियों पर बैठे हैं। पूरी दुनिया में भारत की टोपी उछल रही है। प्रधानमंत्री मौन हैं।उनका सर झुका नहीं कुछ उठा सा नजर आता है।
आठवीं और अंतिम तस्वीर दरअसल एक सेटेलाइट मैप है जो पूरी दुनिया देख रही है, बस भारत का मीडिया नहीं। सेटेलाइट की यह छवि यह दिखाती है कि 1962 के बाद पहली बार लद्दाख में चीन की सेना ने भारत के दावे वाले 900 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, उस पर चीन पुल भी बना रहा है, अरुणाचल प्रदेश में भारतीय जमीन पर गांव बसा रहा है। पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात करते हुए ना थकनेवाली मोदी सरकार इस विषय पर दबी जुबान में बात करती है, चीन से पंगा लेने में डरती है। इस सच का ईमानदारी से सामना करने पर हर देशभक्त भारतीय का सर झुकना नहीं चाहिए?
राजकोट से प्रधानमंत्री का भाषण सुनकर मैं सोचने लगा : क्या दिक्कत मेरे सर की है जो बेवजह झुकता है? या कि चुनावी सफलता मोदी जी के सर पर चढ़ गयी है? आप ही तय कीजिए।
(नवोदय टाइम्स से साभार)