स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा – मधु लिमये : 48वीं किस्त

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मधु लिमये (1 मई 1922 - 8 जनवरी 1995)

न 1901 के कांग्रेस अधिवेशन की यह विशेषता रही कि इसमें प्रथम बार कृषिकार्यों को प्राथमिकता और वरीयता देने की बात की गयी और अमरीका, रूस, हॉलैंड तथा बेल्जियम जैसे देशों में कृषि सुधार के लिए किए जा रहे उपायों को अपनाने के लिए सरकार से अनुरोध किया गया। डॉ. वेल्सकर नाम के एक कृषि पंडित ने 1889 में भारतीय कृषि का अध्ययन किया था और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव दिए थे। इस अधिवेशन में माँग की गयी कि इन सुझावों को जल्दी कार्यान्वित किया जाए। इस प्रस्ताव में सरकार से अपील की गयी थी कि सरकार कुछ प्रायोगिक फार्म देश भर में स्थापित करे और हिंदुस्तानी छात्रों को छात्रवृत्ति देकर उन्नत कृषि तकनीक का अध्ययन करने के लिए उन्हें विदेश भेजे।

1901 और 1902 के अधिवेशनों में मुल्क की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए निम्न सुझाव दिए गए-

1. भारतीय उद्योगों और हस्त व्यवसायों को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार द्वारा सहायता था नए उद्योगों के निर्माण के लिए प्रोत्साहन।

2. देश भर में यांत्रिक शिक्षण के स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण।

3. स्थायी लगान पद्धति को देश भर में लागू करना और जहां लगान का मूल्यांकन अन्यायपूर्ण हुआ हो, वहां लगान घटाया जाना।

4. विदेशों में जा रहे भारतीय धन को रोकना और इस उद्देश्य को आंशिक रूप में कार्यान्वित करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं में अधिकाधिक हिंदुस्तानी नौजवानों को प्रश्रय देना।

5. कृषि बैंकों की स्थापना करना और अल्प ब्याज की दर पर कृषि ऋण की व्यवस्था करना।

6. भारत में पावरलूम पर बुने जानेवाले कपड़े पर जो साढ़े तीन प्रतिशत का उत्पादन शुल्क लगाया गया था, उसकी निंदा करते हुए उसको हटाने की माँग की गयी।

इसके पीछे मंशा यह थी कि इन पावरलूमों पर साधारण जनता के इस्तेमाल का मोटा कपड़ा ही बुना जाता है, अतः उत्पादन शुल्क माफ करने से साधारण जनता को राहत मिल सकेगी।

सन् 1900 और उसके बाद हर अधिवेशन में सेना के खर्चे में जो 7 लाख 86 हजार से भी अधिक वृद्धि की गयी थी, उसकी निंदा करते हुए यह कहा गया था कि सैनिक खर्च में यह वृद्धि कतई भारत के हित मे नहीं है, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्य के प्रभुत्व को एशिया और पूर्व में बनाए रखने के लिए यह खर्चा किया जा रहा है, अतः इसका भार भारत के बजट पर नहीं बल्कि ब्रिटेन के बजट पर पड़ना चाहिए।

कर्जन के प्रशासन में हिंदुस्तान के बजट की हालत काफी सुधर गयी और हर साल बजट घाटे का न होकर बचत का होता जा रहा था। ऐसी हालत में कांग्रेस को खेद था कि उच्च शिक्षा, यांत्रिक शिक्षा, छात्रवृत्ति आदि मदों पर व्यय बढ़ाने से सरकार इनकार कर रही थी। साथ ही साथ प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के बारे में अपने कर्तव्य को भी सरकार पूरा नहीं कर पा रही थी। 1904 के अधिवेशन के प्रस्ताव में प्राथमिक शिक्षा पर जो जोर दिया गया था, इसका श्रेय मुख्यतः श्री गोपाल कृष्ण गोखले को जाता है। इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल में पहुँचने के बाद अपने उत्कृष्ट बजट भाषणों के जरिए अनावश्यक प्रशासकीय खर्चे का गोखले साहब अच्छा विश्लेषण करते थे और प्राथमिक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य बनाने की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता पर बल देते थे। लेजिस्लेटिव कौंसिल में उनके द्वारा किए गए कार्यों का असर कांग्रेस के प्रस्तावों पर भी पड़ने लगा। 1904 के अधिवेशन में पारित प्रस्ताव इस बात का परिचायक है। इस अधिवेशन में सरकार की सुधरती हुई वित्तीय स्थिति को देखकर नमक कर में कटौती और कपड़े का उत्पादन शुल्क रद्द करने की माँग को पुरजोर तरीके से उठाया गया। गोखले साहब के बजट भाषणों और उनकी अध्ययनशीलता की सभी तारीफ करते थे। यहाँ तक कि कर्जन भी उनकी प्रशंसा करते थे।

1905 का बनारस अधिवेशन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण रहा। इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे गोपाल कृष्ण गोखले और उनके व्यक्तित्व की वजह से कांग्रेस अधिवेशन के स्वरूप में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। राजनीति को आध्यात्मिक स्वरूप देना और अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र कार्य के लिए अर्पित करनेवाले कार्यकर्ताओं की एक पूरी पलटन तैयार करना गोखले के जीवन का मुख्य उद्देश्य था।

बनारस अधिवेशन तक कर्जन के प्रति भारतीय लोगों के दृष्टिकोण में बुनियादी परिवर्तन आ गया था। जहाँ उनकी कर्तव्यपरायणता, उनकी कुशाग्र बुद्धि और प्रशासकीय कार्यक्षमता से भारत की शिक्षित जनता प्रभावित हो गयी थी, उनके साम्राज्यवादी रवैये और भारतीय आकांक्षाओं के प्रति उनकी अनास्था के कारण कर्जन के प्रति देश भर में व्यापक अप्रीति पैदा हो गयी।

बनारस के अधिवेशन में सरकार के बढ़ते फौजी खर्च की तीव्र आलोचना की गयी थी और रूस तथा जापान के बीच हुए युद्ध तथा इंग्लैण्ड और जापान के बीच हुए करार का हवाला देते हुए अधिवेशन में यह माँग की गयी कि एक करोड़ पाउंड का सेना के पुनर्गठन पर किया जानेवाला स्वीकृत व्यय स्थगित किया जाए और रैयत पर करों का जो बोझ है, उसको कम करने के लिए इस राशि का इस्तेमाल किया जाए।

अगला वर्ष बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन का वर्ष रहा। न सिर्फ बंगाल बल्कि समूचे देश में एक अभूतपूर्व चेतना जगी। साथ ही साथ कांग्रेस में निश्चित रूप से दो प्रवाह उत्पन्न हो गए। उग्रपंथी और नरमपंथी।


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