7 जुलाई। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में एक ‘विशाल’ अप्रत्याशित ओजोन छिद्र खोजा गया है, जो आकार में अंटार्कटिका के ऊपर मौजूद ओजोन छिद्र से करीब सात गुना बड़ा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह इतना बड़ा है कि विश्व की 50 फीसदी आबादी को प्रभावित कर सकता है। कैनेडियन वैज्ञानिकों के मुताबिक यह छिद्र ट्रॉपिकल क्षेत्र में 1980 से मौजूद है।
इस रिसर्च से जुड़ी विस्तृत जानकारी जर्नल एआईपी एडवांसेज में प्रकाशित हुई है। वाटरलू विश्वविद्यालय द्वारा किए इस शोध से पता चला है कि यह छिद्र 30 डिग्री उत्तर से 30 डिग्री दक्षिण में यानी कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच निचले समताप मंडल में स्थित है।
वैज्ञानिकों के अनुसार जहां अंटार्कटिका में दिखने वाला ओजोन छिद्र हर साल बसंत ऋतु में बनता हैं वहीं ट्रॉपिक्स में मौजूद यह छिद्र पूरे साल नजर आता है। इस बारे में शोध से जुड़े वाटरलू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रोफेसर किंग-बिन लू ने जानकारी दी है कि अंटार्कटिक ओजोन छिद्र जो केवल वसंत ऋतु में दिखाई देता है, के विपरीत उष्णकटिबंधीय ओजोन छिद्र 1980 के दशक से सभी मौसमों में गोचर रहता है, जो आकार में अंटार्कटिक ओजोन छिद्र से सात गुना बड़ा है।
अंटार्कटिक ओजोन छिद्र की तरह ही इस उष्णकटिबंधीय ओजोन छिद्र के केंद्र में ओजोन का मान सामान्य से 80 फीसदी तक कम पाया गया है।
क्या है ओजोन छिद्र
देखा जाए तो ओजोन छिद्र, ठंडे तापमान द्वारा आकार में बढ़ाई गई ओजोन परत है, जो ज्यादा से ज्यादा पतली होती जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब किसी क्षेत्र में ओजोन को होनेवाला नुकसान सामान्य वातावरण की तुलना में 25 फीसदी अधिक हो जाता है तो ओजोन छिद्र कहा जाता है।
गौरतलब है कि अंटार्कटिका में मौजूद ओजोन छिद्र को सबसे पहले 1982 में खोजा गया था, तब से उसपर लगातार निगरानी रखी जा रही है। वहीं यदि ओजोन परत की बात करें तो वो पृथ्वी के समताप मंडल में ओजोन गैस की एक परत है जो धरती के वातावरण को चारों ओर से ढंके हुए है। इस परत की वजह से सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें धरती तक नहीं पहुंच पातीं।
वैज्ञानिक लू के अनुसार ओजोन परत में आयी इस कमी से जमीन पर यूवी विकिरण बढ़ सकता है, जो इंसानों में त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद के खतरे को और बढ़ा सकता है। इतना ही नहीं यह विकिरण मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है और कृषि उत्पादकता में कमी की वजह बन सकता है। इसके साथ-साथ इस विकिरण की वजह से संवेदनशील जलीय जीवों और इकोसिस्टम पर बुरा असर पड़ सकता है।
देखा जाए तो इन घटनाओं के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं क्योंकि जिस तरह से इंसान क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कर रहा है वो इस परत को होते नुकसान की प्रमुख वजह है।
हालांकि इस खतरे को देखते हुए 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत लगभग 200 देशों ने ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले सबसे अधिक हानिकारक केमिकल्स पर प्रतिबन्ध लगाने पर सहमति जाहिर की थी। इसके बावजूद ओजोन में इस विशाल अप्रत्याशित छिद्र का मिलना एक बड़े खतरे की ओर संकेत करता है।
– ललित मौर्य
(डाउनटुअर्थ से साभार)
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