21 जुलाई। गुरुवार को बैंक कर्मचारियों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। वे मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (सरकारी बैंकों) के निजीकरण के लिए एक विधेयक पेश करने की योजना का विरोध कर रहे हैं। इस प्रदर्शन में उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर सरकार बैंकों के निजीकरण की तरफ बढ़ी तो वो (बैंक कर्मचारी) देशव्यापी लंबी हड़ताल करेंगे। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के आह्वान पर एकत्रित हुए सैकड़ों प्रदर्शनकारी बैंक स्टाफ सदस्य, केंद्रीय ट्रेड यूनियन के नेता भी प्रदर्शन में शामिल हुए जिनमें आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ और पूर्व संसद सदस्य भी शामिल थे जिन्होंने एक स्वर में केंद्र के निजीकरण के प्रस्ताव का विरोध किया।
ये प्रदर्शन सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश भर में किया गया है। देश में बैंक यूनियनों का आंदोलनकारी अभियान काफी लंबे समय से चल रहा है। हाल के वर्षों में कई हड़ताल की कार्रवाइयां देखी गई हैं। इसपर यूनियन नेताओं ने गुरुवार को न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा ये सब तब तक जारी रहेगा जब तक केंद्र यह आश्वासन नहीं देता कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण नहीं करेगा। वे कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मोदी सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ऑल इंडिया बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा, “हमने तय किया है, कि अगर सरकार संसद के वर्तमान (मानसून) सत्र के दौरान बैंकों के निजीकरण के लिए कोई कानून लाएगी, तो बैंकों में आंदोलन तेज होगा और लंबी हड़ताल होगी।”
वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में, मोदी सरकार ने इस साल अप्रैल में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के साथ दो सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण के अपने इरादे की घोषणा की थी। इसके साथ यह भी कहा था कि सरकार इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगी। विदित हो, कि केंद्र सरकार दो सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की बड़ी तैयारी कर रही है। इसी के चलते संसद में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक लाया जा सकता है। इससे सरकार को बैंकिंग नियमों में बदलाव करने का अधिकार मिल जाएगा। वहीं जिन दो बैंकों का निजीकरण करने की तैयारी चल रही है, उसका भी रास्ता साफ हो जाएगा।
बैंक कर्मियों ने बैंकों के निजीकरण के खिलाफ लगातार आवाज उठाई। इनका कहना है, कि सरकार संसद में जो बिल लाने जा रही है उससे बैंकों के निजीकरण का रास्ता साफ होगा और रोजगार के अवसर कम होंगे। साथ ही किसानों, छोटे व्यवसायियों, स्वयं सहायता समूह समेत कमजोर वर्गों के लिए ऋण सुविधा भी लगभग खत्म हो जाएगी। हालांकि, एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ट्रेड यूनियनों के विरोध के बीच, घोषणा करने के बाद से, केंद्र सरकार इन कई महीनों में बैंकों के निजीकरण पर कोई ठोस कदम उठा नहीं पायी है।
(‘न्यूज क्लिक’ से साभार)