19 सितंबर। विगत 13-14 सितंबर को इंडोनेशिया के बाली में जी-20 के श्रम एवं रोजगार मंत्रियों का सम्मेलन हुआ। जी-20 के इस सम्मेलन में हिन्द मजदूर सभा (एचएमएस) के राष्ट्रीय महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू भी आईटीयूसी (इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कॉनफेडरेशन) की तरफ से शरीक हुए।
श्रमिकों का जोरदार ढंग से पक्ष रखते हुए श्री सिद्धू ने यह रेखांकित किया कि आज जी-20 की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए। श्री सिद्धू इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के महानिदेशक गाइ रायडर से भी मिले और उन्हें बताया कि मानवाधिकारों और श्रमिकों के अधिकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं। भारत में 44 श्रम कानूनों की जगह 4 लेबर कोड बना दिया गया है जो श्रमिकों के हितों के खिलाफ और पूंजीपतियों के पक्ष में है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का धड़ल्ले से निजीकरण हो रहा है, दरअसल उन्हें औने पौने दामों पर बड़े व्यापारिक घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों को बेचा जा रहा है। बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, महंगाई बेलगाम हो चुकी है। गरीबी बढ़ रही है। देश के महज 1 फीसद लोगों के पास देश की 70 फीसद संपत्ति है।
श्री सिद्धू ने इस मौके पर जी-20 के श्रम एवं रोजगार मंत्रियों के नाम एक पत्र के रूप में अपना लिखित वक्तव्य भी जारी किया जिसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं –
वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता का शिकार हैं। श्रम बाजार गहरे संकट में है। हम आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों और बढ़ी हुई कीमतों का अनुभव कर रहे हैं, और हमें डर है कि मंदी, मुद्रास्फीतिजनित मंदी, और कम वृद्धि के वर्षों का असर एकदम प्रामाणिक है।
दशकों से श्रम कानूनों तथा श्रमिक संघों को जिस तरह से कमजोर किया जाता रहा है उसका आर्थिक वृद्धि पर भी बुरा असर पड़ा है। यह हैरत की बात नहीं कि पिछले दशक में विशेष रूप से महामारी के दौरान असमानता इतनी तेजी से बढ़ी, जो हमारे जीवनकाल में इससे पहले कभी नहीं देखी गई। हम आपसे मांग करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मूल सिद्धांतों और कार्यस्थल पर अधिकारों का सम्मान तथा क्रियान्वयन करते हुए श्रम कानूनों तथा श्रमिक संघों को बहाल करें।
श्री सिद्धू ने अपने पत्र में आगे कहा है कि –
वर्तमान आर्थिक मॉडल जलवायु परिवर्तन का कारण है। यह वही मॉडल है, जो घोर गैरबराबरी और घोर गरीबी पर चलता है, और आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाल श्रम और दासता को सहन करता है। यह वही मॉडल जो अमीरों को अपनी आय छिपाने और करों से बचने की अनुमति देता है।
हम एक अभूतपूर्व जलवायु संकट का सामना कर रहे हैं, लेकिन आर्थिक मॉडल में कोई बदलाव नहीं देख रहे हैं। नवीकरणीय ऊर्जा में पर्याप्त निवेश नहीं हो रहा है जो कि होना चाहिए,। पारिस्थितिकी तंत्र को दुरुस्त करने के कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। मानवाधिकारों पर तत्परता से ध्यान देना अभी अनिवार्य नहीं बना है। मजदूरी की दरें निहायत कम हैं और और अगर कहीं कुछ थोड़ी बहुत बढ़ोतरी होती भी है तो महंगाई उस पर पानी फेर देती है।
श्री सिद्धू ने अपने पत्र में आगे कहा है कि जी-20 के श्रम मंत्रियों को अपने अपने देश के वित्तमंत्री और और केंद्रीय बैंक के गवर्नर के साथ मिलकर नए रोजगार सृजन, मजदूरी की दरों में बढ़ोतरी, सामूहिक सौदेबाजी की श्रमिकों की शक्ति को दृढ़ करने, सामाजिक सुरक्षा के मद में निवेश बढ़ाने, प्रगतिशील कर प्रणाली लागू करने और छिपाए गए धन की निशानदेही के लिए एक वैश्विक संपदा रजिस्टर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
श्री सिद्धू ने अपने पत्र में श्रमिकों से जुड़े मुद्दे उठाने के साथ ही पर्यावरण के मसले को भी प्रमुखता से पेश किया है, यह कहते हुए कि आज हमारी दुनिया के सामने आनेवाली आपात स्थितियों को अकेले वित्तीय उपायों से हल नहीं किया जा सकता।
– अंकित कुमार निगम
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