28 अक्टूबर। देश में जातिगत हिंसा की खबरें इस बात की गवाह हैं, कि आज भी जाति के आधार पर पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार और क्रूरता अपने चरम पर है। 2014 के बाद से जाति आधारित हिंसा का क्रम जारी है और लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
वर्ष 2015 में डांगावास में हुई दलित हिंसा में 4 दलितों की मौत हो गयी थी, जबकि 15 लोग घायल हुए थे। वर्ष 2016 में शोध छात्र रोहित वेमुला ने जातिगत भेदभाव के चलते आत्महत्या कर ली। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में अधिक तेज संगीत बजाने को लेकर ठाकुरों और दलितों के बीच हिंसा भड़क उठी जिसमें 16 घायल हो गए और 25 दलितों के घर जला दिए गए। वर्ष 2018 में राजस्थान के जोधपुर जिले के समरौ गाँव में जाटों और राजपूतों के बीच हुई झड़पों में कई निर्दोष लोगों की दुकानों को जला दिया गया था। वर्ष 2019 में उच्च जाति की महिला डॉक्टरों द्वारा रैगिंग का शिकार बनाये जाने के कारण डॉ. पायल तडवी ने मुंबई में आत्महत्या कर ली।
2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक दलित लड़की की कथित तौर पर ठाकुर जाति के 4 लोगों ने दुष्कर्म कर हत्या कर दी थी। पुलिस ने बिना पोस्टमार्टम टेस्ट किए आधी रात को चुपके से उसके शव को जला दिया था। 2021 की रात, हरियाणा के तरनतारन जिले के चीमा खुर्द गाँव के एक दलित सिख मजदूर, लखबीर सिंह को किसानों के विरोध स्थल पर मौजूद निहंग सिखों द्वारा इष्ट आराध्यों के अपमान के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला गया था। 2022 में राजस्थान के जालौर जिले में एक नौ वर्षीय दलित छात्र इंद्र मेघवाल द्वारा पानी का मटका छूने के कारण उच्च जाति के शिक्षक द्वारा पीट- पीटकर मार दिया गया।