भारत में लोकतंत्र बचाना है तो इलेक्टोरल बांड को रद्द करना होगा

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Ram sharan
— रामशरण —

ह नहीं कह सकता कि मोरबी पुल हादसे में मारे गये 130 से अधिक लोगों के अपराधी को बचाने के लिए ही नवंबर में इलेक्टोरल बांड जारी किया गया है, पर शंका तो होती है। नियम यह था कि स्टेट बैंक 1जनवरी, 1अप्रैल, 1जुलाई और 1अक्टूबर से सिर्फ 10 दिनों तक इलेक्टोरल बांड बेचेगा। लेकिन नियम बदलकर, गुजरात चुनाव के ठीक पहले इलेक्टोरल बांड की बिक्री शुरू कर दी गई। क्या कारण है कि मोरबी पुल के मुख्य ठेकेदार और गुजरात की प्रसिद्ध ओरेवा (अजंता कंपनी) के मालिक की अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई?

इस शक को दूर करने का आसान उपाय था कि सरकार बता दे कि किस किस कंपनी ने इलेक्शन बांड खरीदा है और भाजपा को या किस अन्य राजनीतिक दल को वह बांड दे दिया है। पहले यह नियम था कि राजनीतिक दल 20,000₹ से अधिक का दान देनेवालों का नाम घोषित करते थे, जिससे पूंजीपतियों का किसी राजनीतिक दल से सांठगांठ न होने पाए। लेकिन मोदीजी ने सरकार में आते ही इलेक्टोरल बांड का कानून बना दिया। तब चुनाव आयोग ने भी इसका विरोध किया था।

यह कानून भी गलत ढंग से पास किया गया। राज्यसभा में उस समय विपक्ष ताकतवर था। इसलिए यह कानून वित्त बिल (फाइनेंस बिल) के रूप में सिर्फ लोकसभा में पास कराया गया, जिससे यह राज्यसभा में फंस नहीं जाए। जबकि यह वित्त बिल नहीं था। अब किसने बांड खरीदा और किस दल को घूस दी, इसकी जानकारी सिर्फ स्टेट बैंक को और सरकार को रहती है। क्या यह कानून एक एक करोड़ का बांड खरीद सकने वाले उन उद्योगपतियों के दबाव में लाया गया जिन्होंने नन्दीग्राम आन्दोलन के बाद मिलकर तय किया था कि नरेन्द्र मोदी जी को ही प्रधानमंत्री बनाना है?

इलेक्टोरल बांड आ जाने से अब देशी-विदेशी कंपनियों को गुप्त दान करने के लिए ब्रीफकेस में करोड़ों रुपए लेकर नहीं जाना पड़ता है। आपको सरकार से कोई लाइसेंस लेना हो, आपको किसी कानून को बदलवाना हो, आपको बैंकों से अरबों रुपए कर्ज लेना हो और बैंक से माफ करवा लेना हो, आपको कोई बहुत बड़ा ठेका लेना हो, कोई सरकारी कंपनी सस्ते में खरीदनी हो, आप किसी मामले में जेल जा सकते हों पर जेल जाने से बचना हो या ऐसा ही कोई अन्य काम हो तो आप आराम से घूस दे सकते हैं। किसी को पता नहीं चलेगा।

पहले यह नियम था कि कंपनियां तीन साल की अपनी औसत आय का सिर्फ 7.5 फीसद चंदा दे सकती हैं।‌ यह रोक भी हटा दी गयी है। ऊपर से टैक्स में छूट भी मिलती है। इसे सूचना पाने के आरटीआई कानून से भी बाहर रखा गया है। यहां तक कि विदेशी चंदों पर नियंत्रण लगाने वाला विदेशी मुद्रा नियमन कानून (एफसीआरए) भी इलेक्टोरल बांड पर लागू नहीं होता। भारत में रजिस्टर्ड विदेशी कंपनियां भी आराम से घूस दे सकती हैं। चीन के हमले के बाद से हमारे रिश्ते खराब होने के बदले काफी ऊंचे हो गये हैं। वैसे बयानबाजी जारी है पर चीनी माल का भारत में आयात दस गुना के करीब बढ़ गया है। पर भाजपा का स्वदेशी जागरण मंच चुप है। यह शंका पैदा करता है।

फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसी विदेशी आनलाइन कंपनियों के कारण देश में करोड़ों छोटे व्यापारियों का रोजगार चला गया। लेकिन सरकार को चिंता नहीं है। उद्योगपतियों पर से संपत्ति कर हटा दिया गया और कंपनियों पर लगने वाले टैक्स में भारी कटौती कर दी गई है। लेकिन जनता पर जीएसटी तथा अन्य टैक्स लादे जा रहे हैं। इसलिए महंगाई तेजी से बढ़ रही है। इन्हीं नीतियों के कारण 2019 के चुनाव में भाजपा को भारी चंदा मिला और वह फिर से जीत गयी।

अडाणी और आशीर्वाद जैसे उद्योगपतियों के कारण लाखों तेल-घानी और आटा-चक्की बंद हो गये हैं, लेकिन उन्हें सरकारी संरक्षण जारी है। सरकार ने अडाणी और अन्य बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए जो किसानों पर हमला किया और अचानक तीन कृषि कानून क्यों ले आयी? सरकार मजदूरों से उनके कानूनी हक क्यों छीनना चाहती है? इस सब के पीछे उद्योगपतियों के इसी गुप्त चंदे का हाथ तो नहीं है?

यह सही है कि आज के चुनाव में भारी खर्च होता है। चुनाव क्षेत्र में प्रचार-प्रसार से ज्यादा खर्च मतदाताओं में शराब आदि बांटने, मीडिया को कंट्रोल करने, हवाई जहाज उड़ानें और नेताओं को खरीदने आदि में खर्च होता है। इसलिए राजनीतिक दलों को पैसे की भारी कमी रहती है और वे भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं।

कुछ दल अपने चुनावी टिकट भी बेच देते हैं। कई राजनीतिक दल पैसे की कमी के कारण करोड़पतियों को टिकट दे देते हैं। ये ही उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद पैसे या पद के लिए दलबदल भी कर लेते हैं। वर्षों से पार्टी में काम कर रहे ईमानदार कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं मिलता है। यदि ईमानदार कार्यकर्ताओं को टिकट मिले तो दलबदल की समस्या बहुत कम हो जाए। यदि नेता ही भ्रष्ट होगा तो देश में भ्रष्टाचार बढ़ेगा ही। जयप्रकाश जी भ्रष्टाचार की गंगोत्री पर ही हमला करना चाहते थे। इसे इलेक्टोरल बांड बढ़ावा दे रहा है।

इस लोकतंत्र को बचाने के लिए इलेक्टोरल बांड को रद्द करना जरूरी है। इसकी बदौलत विज्ञापन आदि पर होनेवाले भारी चुनाव खर्च पर रोक लगनी चाहिए तथा सभी दलीय या गैरदलीय उम्मीदवारों को उचित चुनाव खर्च सरकार को देना चाहिए।

इलेक्शन बांड से करीब दस हजार करोड़ चंदा आता है, जिसका 80 फीसद भाजपा को चला जाता है। ऐसे में मुकाबला गैरबराबरी का हो जाता है। यदि उद्योगपतियों का लाखों करोड़ कर्ज माफ किया जा सकता है तो सरकार चुनाव पर दस या बीस हजार करोड़ क्यों नहीं खर्च कर सकती? यदि भारत में लोकतंत्र बचाना है, विदेशी हस्तक्षेप रोकना है, महंगाई तथा बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को रोकना है तो इलेक्टोरल बांड को रद्द करना जरूरी है।

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