22 नवम्बर। 2014 से लेकर बीजेपी गुजरात मॉडल का न केवल डंका पीट रही है, बल्कि गुजरात मॉडल के नाम पर अपनी पीठ थपथपाती आयी है। गुजरात मॉडल है क्या? यह अब तक किसी को पता नहीं है। लेकिन गुजरात मॉडल की भयंकर तस्वीरें सामने आ चुकी है। तस्वीरें गवाही दे रही हैं कि गुजरात मॉडल एक कुपोषित मॉडल है। सवाल है कि क्या मोदी सरकार इसी गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू करना चाहती है?
गुजरात में कुपोषण की स्थिति कितनी भयंकर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस साल मई के महीने में गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से आग्रह किया था, कि वे कम से कम एक कुपोषित बच्चे की देखभाल करें ताकि राज्य से अगले 90 दिनों में कुपोषण को खत्म किया जा सके। पता नहीं इसका नतीजा क्या निकला? इस बारे में रिपोर्ट नहीं है। लेकिन पाटिल द्वारा दिए गए इस नुस्खे से पता चलता है, कि राज्य में कुपोषण की स्थिति काफी गंभीर है। यह और भी आश्चर्यजनक लगता है, क्योंकि गुजरात को औद्योगिक रूप से उन्नत राज्य माना जाता है, जिसमें उच्च आर्थिक विकास, बहुत सारा विदेशी निवेश और राजनीतिक स्थिरता को एक मॉडल माना जाता है, और यहाँ भाजपा 1995 से लगातार शासन करती आ रही है।
आँकड़ों से आसानी से पता लगाया जा सकता है, कि भारत में बच्चे बड़े पैमाने पर कुपोषण के शिकार हैं। कुछ राज्य बहुत बेहतर कर पाते हैं, जबकि अन्य खराब स्थिति में हैं। आश्चर्य की बात यह है कि गुजरात इस मामले में कुछ सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्यों में आता है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि गुजराती अपने राज्य पर गर्व करें और अक्सर आरोप लगाते हैं, कि राजनीति से प्रेरित आलोचना गुजरातियों को बदनाम करने की कोशिश करती है। लेकिन कुपोषण के आँकड़ों से पता चलता है कि यह गुजराती बच्चे हैं, जिन्हें राज्य में उनकी पार्टी द्वारा अपनाई गई ‘मॉडल’ नीतियों से गंभीर रूप से पीड़ित होना पड़ा है।
ऐसा क्यों है कि ‘गुजरात मॉडल’ जिसे सुशासन के उदाहरण की तरह पेश किया जाता रहा है, गुजरात में बच्चों की सबसे जरूरी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहा है? असल में बाल स्वास्थ्य के तकाजों में बच्चे और मां को पौष्टिक आहार का उपलब्ध होना, समय पर स्वास्थ्य देखभाल मिलना, साफ-सफाई का होना, सुरक्षित पेयजल और गर्भावस्था के दौरान मां का स्वास्थ्य शामिल है। गरीबी, बाल स्वास्थ्य के सबसे बड़े निर्धारकों में से एक है। क्योंकि पर्याप्त आय के अभाव में माँ और बच्चा दोनों ही कुपोषण से पीड़ित रहते हैं। दस्त और अन्य बड़े पैमाने पर बाल रोगों के इलाज के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं, और स्वच्छता की स्थिति सुनिश्चित करना भी जरूरी है। लेकिन मौजूदा सरकार एक भी मूलभूत सुविधाएं देने में विफल रही।
बच्चों के पोषण की स्थिति के तीन जाने-पहचाने पैरामीटर हैं। स्टंटिंग (उम्र के अनुसार कम लंबाई), वेस्टिंग (ऊंचाई के अनुसार कम वजन) और कम वजन (उम्र के अनुसार कम वजन)। इन मानकों पर पर गुजरात के आँकड़े जितने दुखद हैं, उतने ही चौंकाने वाले भी हैं। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में 39 फीसदी बच्चे बौने पाए गए हैं। एक और मानक जो अध्ययन के लायक है वह एनीमिया है। रक्त में आयरन की कमी, बच्चों में मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की विकासात्मक कमी का कारण बनती है। एनएफएचएस-5 के आँकड़ों से पता चलता है कि 5 साल से कम उम्र के 80 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं।
(MN न्यूज से साभार)