— कुमार कलानंद मणि —
आचार्य जेबी कृपालानी, भारत की आजादी के आंदोलन में पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस से वरिष्ठ थे। वे महात्मा गांधी से, इन नेताओं से पहले ही, जुड़ चुके थे तथा चंपारण सत्याग्रह में अग्रणी सिपाही थे। अपने प्रखर स्वभाव, राजनीतिक शुचिता, विद्वत्ता आदि के कारण सदैव सबों से अलग रहे। संविधान सभा का जब भी सही आकलन होगा तो आचार्य कृपलानी का नाम शीर्ष शख्सियतों में होगा। यदि कृपालानी नहीं होते तो 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को चौथी बार अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद शायद नहीं मिलता। आचार्य कृपालानी कांग्रेस पार्टी के जनरल सेक्रेटरी पद पर सबसे अधिक समय सेवा देने वाले व्यक्ति थे।
आजादी के आंदोलन का अंतिम दशक था। तब आचार्य कृपालानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संविधान के इतिहास की प्रोफेसर 28वर्षीया सुचेता मजुमदार की ओर आकर्षित हुए। वे सुचेता से 20 साल बड़े थे। कुछ समय बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। सुचेता जी के घर में इसका बहुत विरोध हुआ। घर के लोगों ने सुचेता जी से स्पष्ट कह दिया कि वो अगर शादी करेंगी तो घर से रिश्ता टूट जाएगा। दरअसल घरवालों को जेबी कृपालानी की ज्यादा उम्र भी खासी चुभ रही थी। खटकने का दूसरा कारण कृपालानी जी का सिंधी और सुचेता जी का बंगाली होना था। इस शादी के प्रारंभिक निर्णय से खुद महात्मा गांधी असहमत थे। उन्हें लगता था कि पारिवारिक जिम्मेदारियां कृपालानी को आजादी की लड़ाई से विमुख कर देंगी। गांधी ने कृपालानी से कहा, अगर तुम उससे शादी करोगे तो मेरा दायां हाथ तोड़ दोगे। तब सुचेता ने उनसे कहा, वह ऐसा क्यों सोचते हैं बल्कि उन्हें तो यह सोचना चाहिए कि उन्हें आजादी की लड़ाई में एक की बजाय दो कार्यकर्ता मिल जाएंगे। दोनों की शादी हुई और सुचेता मजुमदार, सुचेता कृपालानी बनीं।
पंजाब में जनमीं यह बंगालन सुचेता कृपालिनी, जिन्होंने एक सिंधी से शादी की थी, आज की राजनीतिक भाषा में कहा जाए तो एक गैर-प्रांत उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। वह भारत की पहली महिला थीं जो किसी प्रांत की मुख्यमंत्री बनी थीं। बाद में सफलतम मुख्यमंत्री साबित हुईं। वे बतौर मुख्यमंत्री 1963 से 1967 तक इस पद पर रहीं। यह वह काल था, जब उनके पति आचार्य जेबी कृपालानी पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रखर विरोधी थे।
आजादी की लड़ाई में अरुणा आसफ अली, उषा मेहता और सुचेता कृपालानी का अविस्मरणीय योगदान है। वह ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के समय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ीं। भारत विभाजन के समय जो दंगे हुए थे उस समय पारस्परिक सौहार्द और कौमी एकता के लिए सुचेता जी, महात्मा गांधी की अनन्य सहयोगी थीं।
सुचेता कृपालानी जी ने सत्याग्रही के रूप में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और स्वतंत्रता मिलने के बाद आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने उत्तरप्रदेश की बागडोर संभाली। 1952 में वह लोकसभा सदस्य और 1957 में नई दिल्ली विधानसभा सदस्य चुनी गयीं और उन्हें लघु उद्योग मंत्रालय प्रदान किया गया। 1962 में वह कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य चुनी गईं। 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनाई गईं और इसके साथ ही उन्होंने देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने जैसा गौरव अपने नाम कर लिया। 1971 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। 1974 में उनका देहांत हो गया ।
भारत के लिए जब संविधान बनना था, तब संविधान सभा का गठन हुआ, इसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए सुचेता कृपलानी को शामिल किया गया। उन्होंने भारत के संविधान में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी।
सुचेता कृपलानी के बड़े भाई धीरेन्द्र मजुमदार भी आजादी के आंदोलन में सक्रिय थे। आजादी के बाद वे राजनीति में पड़ने के बजाय संत विनोबा के साथ सर्वोदय और भूदान के काम को आगे बढ़ाने में प्रमुख स्तंभ बने।
राजनीति तथा शिक्षा क्षेत्र के शीर्ष पदों पर रहने के बावजूद सुचेता कृपालानी तथा आचार्य कृपालानी के नाम कोई चल या अचल संपत्ति नहीं थी।