— डॉ सुनीलम —
समाजवादी नेता और पूर्व मंत्री साथी शरद यादव जी नहीं रहे। मुलतापी में हमने उन्हें याद किया। जब मुलतापी में 12 जनवरी 98 को पुलिस गोलीचालन हुआ तब वे अपनी जान जोखिम में डालकर हवाई जहाज से मेरा पता लगाने मुलतापी पहुंचे थे। जहाज सड़क पर उतारा था। मुलतापी जेल गए लेकिन अधिकारी मुझे लापता बतला रहे थे जबकि उस समय मेरा थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट किया जा रहा था।
25 दिसंबर 22 को जब अनिल हेगड़े जी, सांसद के साथ बामनिया में था तब हमने पूरे दिन शरद भाई को शिद्दत से याद किया था। वे लगभग हर वर्ष बामनिया मामाजी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते थे। खुलकर कहते थे मामाजी के विचारों को लेकर काम होना चाहिए किसी किस्म की औपचारिक खानापूर्ति नहीं ।
युवा जनता के अध्यक्ष से लेकर जनता दल (यू) अध्यक्ष तक मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला। वे सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत संपर्क रखते थे। सुख-दुख में साथ देते थे। मुझे याद है वे अपना कार्यक्रम रद्द कर बहन की शादी में पहुंचे थे। कई बार मंत्री रहे लेकिन कभी किसी स्तर पर भ्रष्टाचार का आरोप शरद यादव जी पर नहीं लगा।
वे खरी खरी कहने के लिए जाने जाते थे। कई बयान उनके अत्यधिक विवास्पद रहे जिसमें ‘परकटी’ महिलाओं के बारे में उनकी टिप्पणी थी। हालांकि उनका कहना ठीक था, महिला आरक्षण का लाभ केवल उच्चवर्णीय महिलाओं तक सीमित न रह जाए इस कारण वे महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की स्थिति में वंचित तबकों को आरक्षण देने वकालत करते थे।
मधु लिमये, सुरेंद्र मोहन जी और जयपाल रेड्डी जी के बहुत करीबी साथी के तौर पर मैंने उन्हें देखा था। उन्हें समाजवादी होने के साथ-साथ वीपी सिंह जी की सामाजिक न्याय टीम के सदस्य के तौर पर रामविलास पासवान, लालू यादव, नीतीश के साथ साथ देखा जाता था। सामाजिक न्याय के मुद्दे पर उनकी समझ बहुत स्पष्ट थी। जाति व्यवस्था पर हर भाषण में गहरी चोट किया करते थे। समाजवादी होने के साथ-साथ वे कबीरवादी हो गए थे। उनके हर भाषण में कबीर के अचार विचार का उल्लेख होता था। जैसा प्रखर रूप उनका मंडल के समय देखा था वैसा ही रूप हाल ही में जाति जनगणना के मुद्दे पर देखने मिला था।
मध्य प्रदेश में पैदा होकर उन्होंने बिहार और उत्तरप्रदेश की राजनीति पर पकड़ बनाई थी। जब वे जनता दल (यू) के अध्यक्ष बने उसके बाद लगातार अध्यक्ष बने रहना चाहते थे। मधेपुरा ने उन्हें कभी हंसाया कभी रुलाया। जब वे बीमार पड़ गए तब उनकी बेटी कांग्रेस में चली गई। मधेपुरा के मतदाताओं ने उन्हें हरा दिया। जो बहुत दुखद था।
आखिरी दिन स्वास्थ्य और राजनीतिक दृष्टि से उनके लिए अच्छे नहीं रहे।
मुझे उनकी एक बात बार बार याद आ रही है। जब भी उन्हें किसी श्रद्धांजलि सभा में बुलाया जाता था तब वे हर वक्त कहा करते थे कि मरने के बाद वाहवाही करने की बजाय यदि जीते जी किसी व्यक्ति की पूछ-परख की जाए तो उसकी उम्र बढ़ सकती है।
लंबी बीमारी के बाद अधिकतर साथी उन्हें छोड़ गए थे।उनकी कोठी भी छूट गई थी। जिससे उनका बहुत लगाव था।
जो व्यक्ति जीवन भर हजारों-लाखों के बीच रहा हो उसे अकेला छोड़ दिया जाना किसी सजा से कम नहीं हो सकता। वे एकदम अकेले हो गए थे। रेखा भाभी ने अधिकतम सेवा की। शरद जी का हर तरह से खयाल रखा।
मुझे याद है जब नीतीश जी ने वापस भाजपा के साथ जाने का निर्णय लिया तब वे बिना भविष्य की चिंता किए अलग हो गए। अपनी पार्टी बना ली, सदस्यता भी चली गई; अंततः उन्होंने लालू यादव जी की पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर दिया था। यानी आजीवन समाजवादी राजनीति करते रहे। छात्र जीवन का उनका तेवर लगातार बना रहा ।
वे मानते थे कि मैं नहीं तो महफिल नहीं। यानी जहां पूछ-परख न हो वहां नहीं रहना चाहिए।
अब न शरद भाई रहे न ही उनकी महफिल। उनके साथ नियमित तौर पर मिलकर या फोन पर बतियाने वाले उन्हें सर्वाधिक याद करेंगे।
देश उन्हें प्रखर सांसद, सामाजिक न्याय के शानदार योद्धा के तौर पर सदा याद रखेगा। जब वे बोलते थे पूरा सदन उन्हें गंभीरता से सुनता था। जनांदोलनों के सवालों और सामाजिक न्याय के मुद्दों को वे लगातार उठाया करते थे।
पहली बार छात्रनेता के तौर पर जबलपुर के सबसे बड़े नेता गोविंद सेठ को हराने वाले शरद यादव ने संसद की मियाद इमरजेंसी के दौरान बढ़ाए जाने पर मधु लिमये जी के कहने पर संसद से इस्तीफा देकर राजनीति में सिद्धांत और नैतिकता की सर्वोच्चता को स्थापित किया था ।
बीमारी की हालत में जब भी उनसे मिला किसान आंदोलन के लिए चिंतित रहते थे। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले चल रहे किसान आंदोलन का उन्होंने खुलकर समर्थन किया था। नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुद्दों को भी लगातार सदन और सड़क पर उठाया।
मुझे जो अप्रिय लगता था वह भी लिखना चाहूंगा। उन्होंने अपने ही नेता जॉर्ज फर्नांडिस को संसदीय दल के नेतापद के चुनाव में जिस तरह चुनाव लड़कर जातिगत गोलबंदी के आधार पर हराया, मुझे पसंद नहीं आया था। हालंकि इस चुनाव ने जनता दल के भीतर वैश्वीकरण के सामने मंडल की बड़ी लाइन खींचने में सफलता हासिल की थी। सामाजिक न्याय के योद्धा के बतौर सभी किस्म की सामाजिक न्याय की ताकतों द्वारा उन्हें नेता माना जाता था। वे बड़े बड़े नेताओं पर दो टूक टिप्पणियां करने में भी माहिर थे।
मेरी एक शिकायत शरद भाई से बराबर रही, यदि उन्होंने जबलपुर से सांसद बनने के बाद मध्यप्रदेश में ही खूंटा गाड़ा होता तो वे आज मध्यप्रदेश के सबसे बड़े नेता होते। मध्यप्रदेश की राजनीतिक तस्वीर आज से एकदम अलग होती। मैं उनसे जब जब यह कहता था उनका जवाब होता था, बंजर भूमि में कुछ पैदा नहीं होता। लेकिन मध्यप्रदेश के साथियों के लिए उनके मन में विशेष स्थान स्पष्ट दिखलाई देता था।
किसान संघर्ष समिति और समाजवादी समागम के सभी साथियों की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि.
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पिताजी के आईसीयू में भर्ती होने के कारण, शरद भाई के अंतिम दर्शन के लिए नहीं जा पा रहा हूं। परंतु शरद भाई यादों में सदा बने रहेंगे।