ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाएं और प्रधानमंत्री से एक अनुरोध

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यह कोई लेख नहीं है. यह देश के 93 पूर्व नौकरशाहों का प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र है जिसमें हाल के बरसों में ईसाई समुदाय पर हमले की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई गयी है और प्रधानमंत्री से चुप्पी तोड़ने तथा ईसाई समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया है. पत्र इस प्रकार है –

म अखिल भारतीय और केन्द्रीय सेवाओं में काम कर चुके पूर्व लोक सेवकों का एक समूह हैं, अपने करियर के दौरान हमने केंद्र और राज्य सरकारों के मातहत काम किया है. एक समूह के तौर पर किसी राजनीतिक दल से हमारा संबंध नहीं है, बल्कि हम निष्पक्षता, तटस्थता में यकीन करते हैं और भारत के संविधान के प्रति हम सब की प्रतिबद्धता है.

यह पत्र आज हम आपको इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि हम देश में अल्पसंख्यक समुदायों के निरंतर जारी उत्पीड़न से व्यथित हैं, उत्पीड़न बयानों के जरिए भी हो रहा है और आपराधिक कृत्यों के जरिए भी. उत्पीड़क आपकी सरकार से, आपकी पार्टी से तथा आपकी पार्टी से संबद्ध संगठनों से जुड़े हैं, अलबत्ता कुछ की ऐसी कोई संबद्धता नहीं है, वे निरे बदमाश लोग हैं. हालांकि हम सभी अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ घृणाजन्य बयानों तथा घृणाजन्य अपराधों (हेट स्पीच और हेट क्राइम) को लेकर चिंतित हैं, आज हम यह पत्र आपको एक छोटे-से अल्पसंख्यक समुदाय, ईसाई समुदाय, के खिलाफ लगातार बढ़ रही अपमानजनक बयानबाजी और दुष्टतापूर्ण कृत्यों के बारे में लिख रहे हैं. हमारा संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों, समान हैं और उनके अधिकार समान हैं, लेकिन हमें विरोधपूर्वक आपसे यह कहना पड़ रहा है कि हाल में ईसाइयों के खिलाफ घोर भेदभाव की घटनाएं लगातार बढ़ती गयी हैं.

भारत की आबादी में ईसाई 2.3 फीसद हैं, और 1951 की जनगणना से लेकर अब तक देश की जनसंख्या में उनका अनुपात लगभग यही रहा है. फिर भी कुछ लोगों को लगता है कि यह छोटी-सी संख्या खतरा है हिंदुओं के लिए, जो कि देश की आबादी का अस्सी फीसद हैं. ईसाइयों के खिलाफ मुख्य आरोप यह है कि वे जबरन धर्मान्तरण कराने में मुब्तिला हैं और इसी आरोप की बिना पर उन पर हमले किये गए हैं, शाब्दिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक; और इन हमलों में व्यक्तियों को भी निशाना बनाया गया है तथा संस्थाओं को भी. यह दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन अकाट्य तथ्य है कि हमारे बीच ऐसे तत्त्व हैं जो परपीड़ा में ही अपनी उपलब्धि देखते हैं.

यह मानी हुई बात है कि हमारे राष्ट्र-निर्माण में ईसाइयों की महती भूमिका रही है. लोक सेवाओं और सशस्त्र बलों में ईसाइयों की भागीदारी और नेतृत्व, इस समुदाय की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रमाण है. इसके अलावा भारतीय ईसाई तीन मोर्चों पर सक्रिय रहे हैं- शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सुधार. और इन सरोकारों को लेकर वे दूरदराज तथा दुर्गम इलाकों में और वंचित तबकों तक गए हैं. उनकी सेवाओं का लाभ सभी धर्मों के लोगों को मिला है. अनुशासन, सेवा और त्याग जैसे ईसाइयत के मूल्य ईसाई-संस्थाओं की पहचान रहे हैं. हाल की महामारी के दौरान ईसाइयों द्वारा संचालित एक हजार से अधिक अस्पतालों ने मरीजों के इलाज में बड़ी तत्परता से अपना योग दिया. एक भी ईसाई संस्था ऐसी नहीं है, चाहे वह शिक्षा से संबंधित हो या स्वास्थ्य से, जिसकी सेवाएं ईसाइयों तक महदूद हों.

हरेक क्षेत्र में ईसाइयों ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर काम किया है. लेकिन आज इन्हीं संस्थाओं और सेवाओं पर धर्मान्तरण कराने, यहाँ तक कि जबरन धर्मान्तरण कराने की तोहमत मढ़ी जा रही है. यह पूछा जाना चाहिए कि अगर बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण होता रहा है तो इतने दशकों बाद भी देश की आबादी में ईसाइयों का अनुपात वही का वही क्यों है?

फिर भी हाल के बरसों में ईसाई समुदाय को हिंसा का शिकार होना पड़ा है. यह बहुत परेशान करने वाला तथ्य है कि देश के विभिन्न इलाकों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं न सिर्फ जारी रही हैं बल्कि इधर के बरसों में उनमें बढ़ोतरी भी हुई है. जेसुइट पादरी, फादर स्टेन स्वामी का कोई गुनाह था तो बस यही कि वह झारखंड के आदिवासियों, दलितों और अन्य वंचित तबकों से गहराई से जुड़े थे और उनके हक में काम कर रहे थे. उनका यही गुनाह सत्तातंत्र के हाथों उनकी मौत का सबब बना. ईसाई आदिवासियों और ईसाई दलितों के घर ढहाए गए हैं, उनके कब्रगाहों में तोड़-फोड़ की गयी है, शिक्षा और स्वास्थ्य की उनकी संस्थाओं पर हमले किये गए हैं और उनकी प्रार्थना सभाओं को आतंकित किया गया है. ये हमले खासकर छत्तीसगढ़, असम, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र में हुए हैं. यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के मुताबिक ईसाइयों पर हमले की घटनाएं 2020 में 279 से बढ़कर 2021 में 505 और 2022 (अक्टूबर तक) में 511 हो गयीं.

हाल के हमलों में कुछ वाकये विशेष चिंता का कारण बने है. अगस्त 2022 में हिन्दू उग्रवादी संगठनों के प्रभाव में, एक हजार से अधिक आदिवासी ईसाइयों को, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और कोण्डागांव में, उनके गांवों से निकाल दिया गया, क्योंकि उन्होंने हिन्दू धर्म में धर्मान्तरित होने से इनकार कर दिया था. फिर 2 जनवरी 2023 को, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में, पचास लोगों की एक भीड़ जोर-जबर्दस्ती से एक चर्च में घुस गयी और तोड़-फोड़ की, यहाँ तक कि उपद्रव पर काबू पाने की कोशिश कर रहे पुलिस अधीक्षक तथा अन्य पुलिस अफसरों पर भी वे टूट पड़े. इस उत्पात के सिलसिले में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया उनमें भाजपा का एक नेता भी है.

फिर, जनवरी 2023 में, एक हिंदुत्ववादी संगठन से ताल्लुक रखने वाले चालीस गुंडों के एक झुंड ने गुजरात से बेलगावी जा रहे एक कैथोलिक स्कूल के शिक्षकों पर आरोप लगाया कि वे लोगों को धर्मान्तरित करने का प्रयास कर रहे थे. और इससे कुछ ही दिन पहले, नई दिल्ली में जंतर मंतर पर हुई ‘धर्म संसद’ में, एक साधु ने मुसलमानों और ईसाइयों को काट डालने के लिए श्रोताओं को ललकारा. इस सब को नजरअंदाज करते हुए, ईसाइयों के खिलाफ जहर उगलने वालों को ऊंचे पदों पर नियुक्त किया गया है, न्यायपालिका तक में.

ईसाई हमारे देश में ईसा की पहली शताब्दी से रहते आए हैं, उन देशों से भी काफी पहले से, जो आज ईसाई-बहुल हैं. फिर भी आज ईसाइयों को, और उन्हें ही क्यों, सभी अल्पसंख्यकों को यह अहसास कराया जा रहा है कि वे अपने ही देश में पराये हैं, उनके लिए अपने धर्म का पालन करना गुनाह है, यह सब किया जा रहा है कुछ मुखर उग्रपंथियों के जरिये, जिन्हें उनकी कारगुजारियों की कोई सजा नहीं मिलती, उलटे उन्हें उनके राजनीतिक आकाओं का और पुलिस अधिकारियों का गुपचुप संरक्षण हासिल रहता है.

यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह हमारे देश के सेकुलर स्वरूप की हिफाजत करे, हर नागरिक की रक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि हर कोई अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग कर सके, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो. लेकिन राज्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के अपने दायित्व से मुॅंह फेर रहा है. हम यह मॉंग करते हैं कि देश के प्रधानमंत्री के रूप में- देश जिसमें मुस्लिम, ईसाई और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक भी शामिल हैं- और बीजेपी के नेता के रूप में, आप इन बेहद चिंताजनक घटनाओं पर अपनी चुप्पी तोड़ें और यह सुनिश्चित करें कि पुलिस व अन्य अधिकारी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने दें. आज ईसाइयों को और साथ ही अन्य अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिलाने की जरूरत है कि वे अपने हिन्दू भाइयों से कमतर नागरिक नहीं हैं. नफरती बयानों के गंभीर परिणाम होते हैं. और ऐसा लगता है कि हमले का निशाना मुसलमानों के बाद अब ईसाई बन रहे हैं, ये हमले खूनी दंगों के बजाय चर्च में तोड़फोड़ के लिए लोगों को लगातार भड़काने, मूर्ति को गंदा करने, श्रद्धालुओं को मारने-पीटने, धर्मान्तरण का हौवा खड़ा करने और देश की राजधानी से जनसंहार का आह्वान करने आदि के रूप में सामने आ रहे हैं. विभिन्न धर्मान्तरण विरोधी कानूनों के साथ जुगलबंदी करके ये घटनाएं भय का वातावरण बनाती हैं, ईसाइयों में खौफ पैदा करती हैं और उन्हें हाशिये पर धकेलती हैं. पूर्वोत्तर में यह स्थिति भले न हो जहाँ ईसाई समुदाय सुसंगठित है लेकिन बाकी देश में दलगत सियासी स्वार्थ साधने के लिए ऐसी घटनाएं बार-बार कराई जाती हैं.

यह सारी हिंसा फौरन रोकी जा सकती है बशर्ते इसके खिलाफ बीजेपी, केंद्र सरकार और हर राज्य सरकार का शीर्ष नेतृत्व मुॅंह खोले. पूर्व लोकसेवक के नाते हम जानते हैं इस तरह की खामोशी और अधिक हिंसा का सबब बनती है. अन्य सभी भारतीयों के समान ईसाइयों को यह भरोसा दिलाने की जरूरत है कि कार्यपालिका के द्वारा और कानून के समक्ष उनके साथ समानता का तथा भेदभाव-रहित व्यवहार होगा. प्रधानमंत्री महोदय, आपका यह फर्ज बनता है कि आप उन्हें यह भरोसा दिलाएँ.

(counterview.org से साभार)

अनुवाद : राजेन्द्र राजन


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