5 अप्रैल। बुधवार को बीएचयू गेट पर बनारस के विद्यार्थियों और नागरिक समाज की ओर से एक जोरदार प्रदर्शन हुआ। बिहार में कट्टरपन्थियों द्वारा मदरसा जलाए जाने और पाठ्यक्रमों में साम्प्रदायिक दृष्टि से काट-छांट किये जाने के खिलाफ यह प्रदर्शन आयोजित हुआ।
प्रदर्शन में सद्भावना जिंदाबाद। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई। धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद आदि नारे लिखी तख्तियां आकर्षण का केंद्र रहीं।
प्रदर्शन में सवाल उठाया गया कि जिन्होंने इस मदरसे को जलाया है उनकी शत्रुता क्या केवल उर्दू ज़ुबान से है? ऐसा नहीं है कि सिर्फ उर्दू से ही दिक्कत है। ये विध्वंसक काम करने वाली सोच दक्षिणपंथी विचारधारा की है। धार्मिक त्योहारों और शोभायात्राओं का सांप्रदायीकरण भाजपा-आरएसएस की फितरत है। युवाओं से रोजगार छीनकर उन्हें दंगाई बनाने की घिनौनी साजिश चिंता का विषय है। अल्पसंख्यक समाज पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। मस्जिदों-गिरजाघरों को हिंसक भीड़ के हवाले किया जा रहा है। ऐसी घटनाएं सभ्य और लोकतांत्रिक समाज के खिलाफ जाती हैं। बिहार की घटना भी इसी सिलसिले की ताजा कड़ी है जो हमें शर्मसार करती है।
पढ़ाई का बोझ कम करने के नाम पर पाठ्यक्रम में कटौती की जा रही है। मध्यकालीन भारत के इतिहास में मुगल काल के सारे पाठ काट दिए गए हैं। अब 1857 की क्रांति के मुखिया बहादुर शाह जफर रहे ये बच्चे कैसे जानेंगे? उस दौर को नहीं पढ़ाएंगे तो सुर तुलसी कबीर रैदास को पढ़ना समझना भी कैसे हो पाएगा ये समझ से परे है।
इसी क्रम में खबर आई है कि निराला, सुमित्रानंदन पन्त और फिराक गोरखपुरी के पाठ भी हटाए जा रहे हैं। यहाँ तक अखबारों में आ रहा है कि सुरेंद्र मोहन, गुलशन नंदा के सड़कछाप उपन्यास पढ़ने-पढ़ाने की भी बात चल रही है। तो ऐसे में ये लोग सिर्फ उर्दू विरोधी नहीं है। असल में ये शिक्षा विरोधी हैं। ज्ञान विरोधी हैं।
बनारस की बात करें तो एक लाख से ज्यादा किताबों से भरी कारमाइकल लाइब्रेरी बनारस के बौरहवा विकास की जद में आने के कारण विस्थापित कर दी गयी। राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द इस लाइब्रेरी के पहले अध्यक्ष रहे। 1872 में बनारस की पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी थी ये। मुंशी प्रेमचंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी समेत विद्वान पुस्तकालय हॉल की रौनक हुआ करते थे। डा. संपूर्णानंद के अलावा कमलापति त्रिपाठी तीन दशक तक अध्यक्ष रहे थे।
इस लाइब्रेरी को धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत थी। इसे संरक्षित करने की जगह हमने विस्थापित कर दिया।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि रामनवमी शोभायात्रा के आयोजन के बाद से ही लगातार हिंसा की खबरें आना चिंतनीय है। बंगाल और बिहार में राज्य सरकारों को सख्त कदम उठाने चाहिए और उपद्रवियों पर कार्रवाई करनी चाहिए। प्रदर्शन में प्रमुख रूप से अविनाश, शांतनु, अर्शिया, चेतना, इंदु, सानिया, अनुपम, इम्तियाज, वल्लभाचार्य पांडेय, नीति, राजेश, रचना, राजकुमार गुप्ता, महेंद्र, विश्वजीत, शशि, धनंजय, रोशन, मुरारी, आरिफ, रवि शेखर, रामजनम आदि मौजूद रहे।
– रोशन पांडेय