— विनोद कोचर —
मधु लिमये जन्म शताब्दी वर्ष का समारोह कार्यक्रम, 30 अप्रैल 2023 को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित होने वाला है जिसमें शिरकत करने की गहरी चाहत के बावजूद, अपनी थकी हुई उम्र और लंबे सफ़र की असमर्थता के चलते, शिरकत नहीं कर पाने का अफसोस तो है लेकिन कुछ यादें सुरक्षित हैं मेरे पास, मधु जी और उनकी जीवनसंगिनी चंपा जी लिमये के साथ हुए मेरे आत्मीय पत्राचार के रूप में!
चंपा जी, मधु जी की ऐसी जीवनसंगिनी थीं जिन्होंने उनके चिंतन, मनन और लेखन कर्म के सफ़र में भी कदम से कदम मिलाकर, न केवल मधु जी के जीवित रहते, अपितु मरणोपरांत भी, मरते दम तक उनका साथ निभाया।
पूरे साल भर तक मधु जी से प्रेरित, प्रभावित और अनुगामी साथीगण मधु जी को ही याद करते रहे, उनके जीवन और लेखन आदि के बारे में ही लिखते रहे, प्रसंगवश कहीं कहीं चंपा जी के नाम का उल्लेख करते रहे लेकिन उनकी प्रतिभा, समर्पण और ममता को उजागर करने वाले पहलुओं पर, मुझे तो कुछ भी पढ़ने को मिला नहीं।
मधु जी को, चंपा जी के बिना याद किये ही, उनके जन्म शताब्दी वर्ष का समारोह मैं कैसे हो जाने दूं?
मधु जी, आपातकाल के दौरान,9 सितंबर 1975 से 14 नवंबर 1976 तक के 14 महीनों तक मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ कारागार में निरुद्ध रहे। इसके पहले के ढाई महीनों तक रायपुर जेल में और बाद के ढाई महीनों तक वे भोपाल जेल में निरुद्ध रहे।
आपातकाल और तानाशाही के विरोध में मधु जी के ऐतिहासिक संघर्ष की सारी कहानी, जो अब इतिहास है, नरसिंहगढ़ जेल में ही लिखी गई थी जिसका प्रामाणिक उल्लेख, मेरी प्रकाशित पुस्तक ‘विचारों का सफ़र : हिन्दूराष्ट्रवाद से समाजवाद की ओर’ (जेल डायरी, चिट्ठियों और अन्य दस्तावेजों के आईने में) में मैं कर चुका हूं।
आज मैं मधु जी की अधूरी यादों को पूरा करने के लिए, उनकी जीवन, विचार और कर्म संगिनी – चंपा जी लिमये और मेरे बीच हुए पत्रव्यवहार के जो दस्तावेज मेरे पास सुरक्षित हैं, उन्हें मित्रों के साथ शेयर कर रहा हूँ।
जिस दिन मधु जी को नरसिंहगढ़ जेल से भोपाल जेल भेजा गया उसी दिन अर्थात 14 नवंबर को मैंने पहला पत्र चंपा जी को लिखा था जो निम्नानुसार है :
चंपा मासी,
विनोद के प्रणाम स्वीकारो।
आज दोपहर दो बजे, आदरणीय मधुजी को इलाज के लिए भोपाल ले जाया गया है। उनके जाने के बाद, उनके द्वारा मुझे दिए गए इस लेटरपैड का जब मैंने इस्तेमाल करना चाहा तो इसमें रखा, मधुजी के हाथ का लिखा एक अधूरा पत्र मेरे हाथ लगा जो उन्होंने(पुत्र)अनिरुद्ध को लिखा है। ये अधूरा पत्र मधुजी के पास भोपाल भेजने की बजाय आपके पास भेजने का विचार मेरे मन में आया है। मैंने सोचा कि इस बहाने चंपा मासी से भी, पत्र के जरिये थोड़ी बात कर लूं और खासकर, मधुजी की तबीयत के बारे में अपने मन की बात कह दूं।
आप मुझे तो नहीं, लेकिन मेरे हस्ताक्षरों को जरूर पहचानती होंगी। प्रचार के लिए मधुजी के विचारों को कलम में बांधने की खुशनसीबी, इन हस्ताक्षरों को आजतक हासिल होती रही। अब मधुजी यहां नहीं हैं तो जेल बड़ा नीरस लग रहा है।
मधुजी से ही मुझे मालूम हुआ था कि इलाज के लिए उन्हें भोपाल भिजवाने की कोशिश आपने ही की थी। उन्हें यहां से अपना सारा सामान लेकर जाना पड़ा है। मधुजी को भी ये शक है कि इलाज के बाद भी उन्हें भोपाल में ही रखा जाएगा।
भोपाल जेल की आबोहवा से परिचित कुछ कैदी इस जेल में हैं। वे कहते हैं कि उस जेल की आबोहवा कुछ ठीक नहीं है। इसलिए सावधानी की दृष्टि से मैं कहना चाहता हूँ कि डायथर्मी के इलाज के बाद, मधुजी का भोपाल जेल में रहना ठीक नहीं।
मधुजी कहा करते थे कि तिहाड़, नासिक या पूना की जेल में उन्हें रखा जाय तो ठीक, वर्ना मध्यप्रदेश में नरसिंहगढ़ की जेल से अच्छी, उनके लिए कोई जेल नहीं है। मधुजी की इच्छा और भोपाल की आबोहवा का मिलाजुला नतीजा कहता है कि आप उन्हें तिहाड़, नासिक या पूना की जेल में भिजवाने की कोशिश करें और अगर इस कोशिश में कोई कामयाबी न मिले तो इलाज के तुरंत बाद उन्हें वापस इसी जेल में भिजवाने की कोशिश करें।
पोपट (अनिरुद्ध) को लिखे गए मधुजी के अधूरे पत्र के बारे में भी, अगर आप धृष्टता न समझें तो, मैं कहना चाहता हूं कि इस अधूरे पत्र को आप पूरा करिए और फिर पोपट को भिजवाइए। ये कल्पना ही मुझे बड़ी सुखद मालूम पड़ती है कि पोपट से कही जाने वाली मधुजी की अधूरी बात को आप पूरा करें और फिर अपने माता पिता की मिलीजुली बात के रस का पोपट मजा ले। शायद ये कोशिश, पोपट के लिए एक शानदार और अनूठी भेंट साबित हो जाय। अगर आपको मेरी राय अच्छी न लगे तो पत्र मधुजी को वापस भिजवा दीजिए।
मैंने आपके दो लेख पढ़े थे। एक मराठी में लिखा हुआ, ‘आवो जावो घर तुम्हारा’ और दूसरा, साप्ताहिक धर्मयुग में, मातृवंश संबंधित लेख। आपकी ममता और कल्पनाशीलता से प्रेरित होकर ही, आपको इतने खुले मन से पत्र लिखने का साहस मैंने जुटाया है।
मुझसे कोई अविनय हुई हो तो बेटा समझकर मुझे माफ़ कर दीजिए। इतिशम।
स्नेहाधीन आपका ही,
विनोद कोचर
—–
(इस पत्र का चंपाजी द्वारा लिखा गया जवाब)
चंपाजी का पत्र दिनांक 24-11-76
सप्रेम नमस्कार,
समाचार मिला।बड़ी खुशी हुई। मधुजी की भोपाल से चिट्ठी आई है।उनको दस्त हो रहे हैं। सिविल सर्जन उन्हें देखकर गए हैं। अब आर्थोपेडिक सर्जन उन्हें देखकर ट्रीटमेंट देंगे।आपलोगों के बिना उनको भी सूना लगता होगा।
पप्पू को पिताजी की चिट्ठी मिली होगी। चिट्ठी बड़ी ही मीठी थी।उसमें कुछ जोड़ना असंभव था। 22-23अक्टूबर के बाद उससे मेरी मुलाकात नहीं हुई। शायद अगले हफ्ते मिलेगा।अपने कामों में डूब गया है।
आपने धृष्टता नहीं की।आप हमेशा लिखिये। आपका समाचार जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।
यहां मैं कई कामों में व्यस्त हूँ। कॉलेज के अलावा और बहुत सारी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं। आपका मोतियों जैसा हस्ताक्षर कौन नहीं पहचानेगा? आपकी जुदाई मधुजी को जरूर खलती होगी। पप्पू के पिताजी का एक लेख जनवाणी में प्रकाशित हुआ है।
शरद जी तथा बाकी साथियों को प्रणाम।
पत्र का उत्तर जरूर दीजिए।
आपकी मौसी
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चंपा जी का पत्र दिनांक 8-8-77
सप्रेम नमस्कार,
आपका पत्र तथा साथ में भेजा गया मधुजी का लेख मिला।धन्यवाद।
असल में मैंने आपको चिट्ठी लिखना कब से प्रारंभ किया था लेकिन कुछ न कुछ बाधाएं आती गई। पत्र आखिर पूरा नहीं हुआ। क्षमा कीजिए।
मधुजी ने जेल से भेजे गए कुछ पत्रों की कॉपी(नकल) अगर आपके पास होगी तो तुरंत भेज दीजिए।विशेषतः’गुलाबी सड़क और सेविका’ यह चिट्ठी।
मधुजी की चिट्ठियों का एक संकलन प्रकाशित करने का विचार है- Mind of a detenyu करके।
आपसे अनुरोध है आपके पास जो चिट्ठियां होंगी, वे कृपया जल्द से जल्द रजिस्ट्री से भेज दीजिए ताकि कहीं खो न जाएं।
मधुजी की जीवनी का पहला खंड बनाते समय आपकी बार बार याद आती है। आपका मोतियों जैसा हस्ताक्षर देखकर मन बड़ा प्रसन्न होता है। अगर आप बम्बई में होते तो बहुत काम होता। लेकिन पहला प्रकाशन मराठी में होगा। बाद में हिंदी तथा अंग्रेजी में।
आशा है आप सकुशल होंगे। परिवार के सभी लोगों को प्रणाम।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,
आपकी चंपा मौसी
—–
चंपा जी का पत्र दिनांक 20-8-77
सप्रेम नमस्कार। आपकी चिट्ठी मिली। धन्यवाद। आपने यह चिट्ठी इतनी हिफाजत से रखी थी इसीलिए मिल पाई। आप अगर सारी चिट्ठियां रजिस्ट्री से भेज देंगे तो उनमें से मैं चयन कर सकूंगी। मधुजी की चिट्ठियों का (उन्होंने लिखी हुई तथा प्राप्त की हुई) संकलन प्रकाशित हो रहा है- ‘Mind of a detenyu’ उसके काम वे आएंगी।
आपने भेजा हुआ लेख, 2अक्टूबर के लिए, मैं ‘साधना’ तथा ‘नवभारत टाइम्स’ के लिए भेज दूंगी।
मधुजी 23 की सुबह रूस जाएंगे। 1तारीख तक वापस आएंगे उसके बाद बाकी लेखन कार्य संभव होगा।
मधुजी की मराठी तथा हिंदी चिट्ठियों का अंग्रेजी में अनुवाद चल रहा है। देखें, किताब कब तक पूरी होती है।
पप्पू पूना में मजे में है। मेरा कॉलेज का काम ठीक चल रहा है।
आपके परिवार के सभी लोगों को मेरा प्रणाम।
धन्यवाद।
शुभकामनाओं के साथ,
आपकी, चंपा मौसी
पुनश्च :
मैंने नरसिंहगढ़ जेल में कुछ हिंदी किताबें भेजी थीं। जिनकी किताबें थीं, उनको वे किताबें वापस देनी हैं। इन किताबों को बम्बई भेजने की व्यवस्था क्या आप कर सकते हैं? ये किताबें किसके पास हैं? शरदजी के या आपके? अगर शरदजी के पास हैं तो कृपया आप उन्हें मंगा लीजिये।तकलीफ के लिए क्षमा करना। — चंपा
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चंपा जी का पत्र दिनांक 23-4-81
श्री विनोद कोचर जी,
सप्रेम प्रणाम।
आपने मधुजी के नाम भेजा हुआ 16 अप्रैल का पत्र मिला।
धन्यवाद।
मधुजी के बाएं आंख में रक्तस्राव होने के कारण, उनकी उस आंख की रोशनी कम हुई है। दिल्ली तथा बंबई के चिकित्सकों ने उनको 10 इंजेक्शन लगाने के लिए कहा था। वे उन्होंने लगवाए हैं। अब वे होम्योपैथी का इलाज कर रहे हैं। धीरे धीरे आंखों की रोशनी वापस आएगी। चिंता मत कीजिये। आपकी सद्भावनाओं के लिए हम आपके ऋणी हैं।
मधुजी थोड़ा बहुत लिखने का काम करते हैं। लेकिन गर्मियों में वे अब दौरा नहीं करेंगे। पहले आपके दिल्ली आने की बात थी। उस समय वो हो न सका। अगर बरसात में आप दिल्ली आएंगे तो मधुजी आपके साथ बैठकर काफी काम कर सकेंगे,ऐसी उन्हें पूरी उम्मीद है। हाथ से लिखने में उन्हें काफी दिक्कत है। आपके सहयोग से काम अविलंब होगा।
बाकी उनका स्वास्थ्य ठीक है। हम सब ठीक हैं। अनिरुद्ध भी अभी बम्बई में ट्रांसफर होकर आया है। मेरी कॉलेज की छुट्टियां 20 अप्रैल से शुरू हुई।
आपके परिवार के सारे सदस्य सकुशल होंगे, ऐसी आशा है। सबको मेरे प्रणाम। बच्चों को प्यार।
मधुजी का दिल्ली का पता –
17 वेस्टर्न कोर्ट, जनपथ, नईदिल्ली
शुभकामनाओं के साथ,
आपकी चंपा मौसी
(बाकी हिस्सा कल)