अफ्रीका की गरीबी का असल कारण क्या है?

0

Sandhya Shaili

— संध्या शैली —

फ्रीका महाद्वीप को दुनिया अक्सर भूखे, जंगली, बर्बर और हिंसक आदिवासियों और जंगली जानवरों का महाद्वीप समझती है। दरअसल ये ‘समझदारी’ उस मानसिकता से आती है जो चमकते बाजारों, तकनीकी चमत्कारों और नौकरी का खूब बड़ा पैकेज देने वाले अमरीका, आस्ट्रेलिया और पश्चिमी यूरोप की चकाचौंध के प्रभाव से विकसित होती है। वैसे ये मानसिकता सिर्फ उन भर की नहीं है, आज ये हमारे देश के मध्यमवर्गीय युवाओं के सर चढ़कर भी बोल रही है।

दरअसल, अफ्रीका वह महाद्वीप है जिसके खनिजों के दम पर ही आज की तकनीक खड़ी है और अफ्रीका के 53 देशों का शोषण करके मोटी-ताजी हो रही है। वर्ष 2019 में इस महाद्वीप ने करीब एक अरब यानी 100 करोड़ टन खनिजों का उत्पादन किया था जिनकी कीमत 406 अरब डॉलर थी। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट बताती है कि अफ्रीका में दुनिया का 30 प्रतिशत खनिज दबा हुआ है। दुनिया का 40 प्रतिशत सोना, 12 प्रतिशत तेल और 8 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का उत्पादक यह महाद्वीप है। इसके अलावा यह दुनिया के 90 प्रतिशत क्रोमियम और प्लेटिनम के खजाने का भी मालिक है।

आज की तकनीक, चाहे वह हर किसी के हाथों में आया हुआ मोबाइल फोन हो या फिर सुपर-कंप्यूटर, जिसके दम पर आज अमरीका और अन्य उन्नत देश दुनिया भर में युद्धों को हवा देते हैं और दुनिया भर में लोगों की निजता में सेंध लगाते हैं, वे सारे खनिज इसी महाद्वीप से आते हैं। 

लिथियम और कोबाल्ट ऐसे खनिज हैं जो मोबाइल और तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बैटरियों में उपयोग किये जाते हैं। इन खनिजों का 63 प्रतिशत इसी महाद्वीप के कांगो (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो) से निकलता है। एक और खनिज है टेण्टेलम, जिसका उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप और मोटर वाहनों के अन्य कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है। टेण्टेलम के दुनिया के सबसे बडे़ उत्पादक कांगो और रवांडा हैं। ये दोनों देश मिलकर दुनिया का आधा टेण्टेलम उत्पादित करते हैं। इन सबके अलावा ‘हीरा है, सदा के लिए’ की टैगलाइन से हीरे को पहचानने वाले लोग शायद ही जानते होंगे कि दुनिया भर के कॉरपोरेट और व्यापारियों को अमीर बना देने वाला और अफ्रीका महाद्वीप के आदिवासियों और उनके बच्चों तक के खून में सना यह खनिज अफ्रीका के एक गरीब देश कांगो, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका से आता है।

अफ्रीका के पांच देश ऐसे हैं जिनके खनिजों की कीमत कई अरब डॉलर है। ये हैं- दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया,  अल्जीरिया, अंगोला और लीबिया। खनिजों के मामलों में इतने संपन्न होने के बावजूद इनमें से अधिकतर देश या तो गरीब हैं या फिर वहां पर कबीलाई संघर्ष चल रहे हैं। भुखमरी और अशिक्षा पसरी पड़ी है। नाइजीरिया एक उदाहरण है जहां हमारे यहां की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी खनिज तेल निकालती है और ढेर सारा मुनाफा कमाती है, लेकिन हम नाइजीरिया को वहां के कट्टरपंथी कबीले की हिंसक वारदातों से ही जानते हैं। एक और उदाहरण लीबिया का है जहां के तमाम खनिजों का राष्ट्रीयकरण करके उससे मिलने वाले मुनाफे को जनता के हित में खर्च करने वाले शासक कर्नल गद्दाफी को तानाशाह साबित करके अमेरिका और यूरोपीय देशों के एजेंटों ने मरवा दिया और वहां पर अपनी एक पिट्ठू सरकार बैठाकर उस देश के तमाम खनिजों को हथिया लिया। बाद में उन खनिजों से प्राप्त होने वाले मुनाफे को उस देश से छीनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे में बदल दिया गया।

कांगो, अंगोला, रवांडा, नाइजीरिया वे देश हैं जहां पश्चिमी देशों और अमरीका द्वारा नस्लीय संघर्षों को हवा देकर नरसंहार करवाया गया और खनिजों को तो लूटा ही, लेकिन साथ ही सब-सहारन देश इथियोपिया की पहचान एक भूखे कमजोर बच्चे की तस्वीर में बदलकर रख दी। उस देश को भुखमरी के कगार पर ले जाकर छोड़ा जो 23 बहुमूल्य खनिजों का भंडार है।

विपन्न अफ्रीका के ये देश न केवल खनिजों से संपन्न हैं, बल्कि प्रकृति ने भी इन्हें ‘रईसी’ दी हुई है।

समुद्रों, पहाड़ों, विश्व की सबसे पुरानी मिस्र की सभ्यता की जनक और दुनिया की सबसे लंबी नील नदी के अलावा 12 बड़ी नदियों, दक्षिण अफ्रीका की माखोन्जवा नामक सबसे पुरानी और सोने की खानों से भरी पर्वत श्रृंखलाओं (जिसका एक पर्वत ‘टेबल माउंटेन’ के नाम से जाना जाता है), दुनिया के सबसे बडे़ जलप्रपात ‘मोसी उआ टून्या’ या विक्टोरिया जलप्रपात और दुनिया में सबसे लंबा प्रवास करने वाले जानवरों वाले तंजानिया के ‘सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान’ का भी महाद्वीप है।

इसके अलावा जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात है वह यह कि यही पहले मानव की मॉं का महाद्वीप है जहां से इंसान दुनिया भर में फैले। इस इलाके को यहां पर मानवता की गोद या ‘क्रैडल ऑफ हयूमनकाइंड’ कहा जाता है।

सान, खोईसान, कोजा, जूलू, मसाईमारा और ऐसे ही करीब 3000 आदिवासी और विभिन्न नस्लीय जनजातीय संस्कृतियों के साथ-साथ डच, जर्मन, फ्रेंच, पुर्तगाली आदि यूरोपीय भाषा-भाषियों के जन्म का साथी बन चुका यह महाद्वीप सदियों से लूटा गया। कभी नस्लभेदी शासन द्वारा तो कभी अमरीकी और पश्चिमी देशों की पिट्ठू सरकारों द्वारा। इन्हीं देशों ने इस महाद्वीप के खनिजों की दम पर अपनी तकनीकी प्रगति करके करोड़ों-अरबों डॉलरों का मुनाफा कमाकर यहीं के लोगों को भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी दी है।

उसी तकनीक का उपयोग करके इन्हीं लोगों को हिंसक, अपराधी और खतरनाक साबित कर दिया गया है। खनिजों का अनापशनाप उत्खनन करने के लिए वहां की जमीनों का उपयोग किया गया और कृषि की कोई उन्नति नहीं की गयी, नतीजतन भुखमरी बढ़ी। जिस शासक ने भी इन नीतियों के खिलाफ और अपनी जनता के हित में काम करना शुरू किया उसे या तो विद्रोह करके हटा दिया गया या फिर अपने एजेंटों के द्वारा मरवा डाला गया। वैसे देखा जाए तो दुनिया भर में अपने हथियार बेचकर देशों को बर्बाद करने वाला और लूट मचाकर तकनीकी प्रगति करने वाला मुनाफाखोर देश अमरीका अपराध, नस्लीय वैमनस्य और हत्याओं तक के मामलों में आज सबसे अधिक असुरक्षित देश हो गया है। हथियार लॉबी अब वहां एक भस्मासुर की तरह काम कर रही है।

18 जुलाई अफ्रीका महाद्वीप और दक्षिण अफ्रीका के ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के स्वाधीनता आंदोलनों और नस्लभेदी शासन के विरोधी आंदोलन के आदर्श रहे नेल्सन मंडेला का जन्मदिन था। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को ‘इंद्रधनुषी देश’ कहा था, लेकिन वास्तव में पूरा अफ्रीका ही एक इंद्रधनुषी महाद्वीप है। इस सचाई को समझकर लुटेरों द्वारा, लगातार झूठे प्रचार से दिमाग में बिठा दी गयी अंधेरी और जंगली अफ्रीका की छवि को हटाना होगा। तभी ही असली बर्बरों की पहचान की जा सकेगी, तभी इन बर्बरों को अपने-अपने देश में आने से रोकने की जरूरत का महत्त्व समझा जा सकेगा। (सप्रेस)


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment