नियमगिरि कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने लगाया यूएपीए

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18 अगस्त। आतंकवाद से निपटने के नाम पर बने कानूनों का किस तरह बेजा इस्तेमाल हो रहा है इसका एक उदाहरण फिर सामने आया है। ओड़िशा पुलिस ने बीते 6 अगस्त को नियमगिरि सुरक्षा समिति के 9 कार्यकर्ताओं के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां निवारक कानून (यूएपीए) के तहत एफआईआर दर्ज की। इससे एक दिन पहले नियमगिरि सुरक्षा समिति के दो कार्यकर्ताओं कृष्ण सिकाका और बारी सिकाका को, सादी वर्दी में आयी पुलिस (कालाहांडी जिले में) लांजीगढ़ हाट से उठा ले गयी, जब ये दोनों कार्यकर्ता विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) मनाने के सिलसिले में ग्रामीणों से चर्चा करने गए थे। जब अन्य कार्यकर्ताओं ने, पकड़े गए अपने साथियों के बारे में पुलिस से पूछा, तो पुलिस इनकार करती रही।

आखिरकार नियमगिरि सुरक्षा समिति ने कल्याणसिंहपुर पुलिस थाने के सामने विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। प्रदर्शनकारी यह जानना चाहते थे कि उनके दो साथियों को पुलिस ने कहॉं रखा है? जब प्रदर्शनकारी तितर बितर हो रहे थे, पुलिस से उनकी तकरार हो गयी। फिर पुलिस ने एक अन्य कार्यकर्ता द्रेंजू कृसिका को भीड़ से खींचकर हिरासत में लेने की कोशिश की। लेकिन ग्रामीणों के सामूहिक विरोध के कारण पुलिस कामयाब नहीं हो पायी। फिर पुलिस ने 9 कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी, जिनमें नियमगिरि सुरक्षा समिति के लाडा सिकाका, द्रेंजू कृसिका, लिंगराज आजाद तथा खांडुआलमाली सुरक्षा समिति के ब्रिटिश कुमार और कवि लेनिन कुमार शामिल हैं।

कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज करने और यूएपीए लगाने की चौतरफा निन्दा हुई है। विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त से ऐन पहले नियमगिरि बचाओ आंदोलन (नियमगिरि सुरक्षा समिति) के आदिवासी कार्यकर्ताओं पर आतंकवाद निरोधक कानून की धाराएं लगाना पर्यावरण बचाने के प्रयासों तथा प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समुदायों के अधिकार पर हमला है।

गौरतलब है कि बाक्साइट खनन की परियोजनाओं से नियमगिरि पर्वत को बचाने की लड़ाई में डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय आगे रहा है। वर्ष 2003 में भारत सरकार ने वेदान्ता कंपनी को नियमगिरि में बाक्साइट खनन की इजाजत देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस परियोजना के चलते जहाँ नियमगिरि और आसपास रहने वाले आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ता, वहीं पर्यावरण का भारी बिगाड़ होता। लिहाजा, नियमगिरि सुरक्षा समिति के तत्वावधान में खनन परियोजना के विरोध में जोरदार आंदोलन चला।

यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने वेदान्ता कंपनी को खनन परियोजना पर काम जारी रखने की इजाजत नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आंदोलन के इस आरोप की भी पुष्टि हुई कि वेदान्ता कंपनी की बाक्साइट खनन परियोजना को हरी झंडी देने की प्रक्रिया में किस तरह नियम-कायदों की अनदेखी की गयी थी और आदिवासी क्षेत्र में ग्राम सभा की अनुमति लेने की शर्त को ताक पर रख दिया था। ग्राम सभा की अनुमति मिलने के झूठे दावे कोर्ट में पेश किये गये थे।

सुप्रीम कोर्ट ने वेदान्ता कंपनी को खनन परियोजना की मंजूरी देने में नियम-कायदों की अनदेखी की बिना पर उस परियोजना को खारिज कर दिया था लेकिन इससे यह सुनिश्चित नहीं हुआ कि नियमगिरि खनन से बचा रहेगा। जजों ने वेदान्ता की ही सहायक कंपनी स्टरलाइट को खनन के आवेदन करने की इजाजत दे दी। नतीजतन नियमगिरि के लोग अपनी जमीन, अपने जंगल और पहाड़, अपने वनोपज और अपनी आजीविका को बचाने के लिए फिर से आंदोलन करने को विवश हुए। उन पर सरकारी दमन का दौर भी फिर से शुरू हो गया। लेकिन शायद ही किसी ने सोचा हो कि पुलिस सादी वर्दी में कार्यकर्ताओं को अगवा करने और उन पर यूएपीए की धाराएँ लगाने की हद तक जाएगी।

(इनपुट sabrangindia से साभार)

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