74 फीसद भारतीयों के लिए स्वास्थ्यप्रद भोजन की कीमत पुसाने लायक नहीं

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2 सितंबर। संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों की ओर से हाल में प्रकाशित रिपोर्ट “विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति” (“स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यट्रीशन इन द वर्ल्ड”) 2023 बताती है कि स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने और वेतन तथा मजदूरी में ठहराव के कारण स्वास्थ्यप्रद भोजन कर पाना 74 फीसद भारतीयों की आर्थिक क्षमता के बाहर है।

काफी छानबीन के बाद हर साल यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों – एफएओ, आईएफएडी, यूनिसेफ, डब्ल्यूईपी और डब्ल्यूएचओ – की ओर से साझा तौर पर जारी की जाती है।

इस अध्ययन में यह देखा जाता है कि किसी इलाके में पोषण की जरूरत पूरी करने वाले, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध, सबसे सस्ते खाद्य पदार्थों की कीमत क्या है। फिर संबंधित देश की औसत आय के बरक्स यह देखा जाता है कि वह पुसाने लायक है या नहीं। अगर स्वास्थ्यप्रद भोजन की लागत देश की औसत प्रतिव्यक्ति आय के 52 फीसद से अधिक है, तो उसे महंगा, यानी न पुसाने लायक माना जाता है।

यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतें तो बढ़ी हैं पर उस अनुपात में अधिकांश आबादी की आय नहीं बढ़ी, या वहीं जस की तस है। मसलन, मुंबई में भोजन की कीमत पिछले पांच साल में 65 फीसद बढ़ी लेकिन वेतन/मजदूरी में बढ़ोतरी सिर्फ 28 से 37 फीसद के बीच रही।

इस रिपोर्ट के मुताबिक खाद्य सुरक्षा एवं पोषण के लिहाज से भारत दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में है।

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