राजनीति का अंतरिक्ष

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— अमन नम्र —

र्ष 2000 में एक फिल्म आई थी ‘रिफ्यूजी।’ करीना कपूर और अभिषेक बच्चन के कॅरिअर की यह पहली फिल्म थी। इसमें जावेद अख्तर का लिखा एक गीत था,
‘पंछी नदिया पवन के झोंके,
कोई सरहद ना इन्हें रोके
सरहदें इन्सानों के लिए हैं
सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इन्सां हो के।’

इस गीत के लिए जावेद अख्तर को ‘फिल्मफेयर अवॉर्ड’ भी मिला था। आप सोच रहे होंगे कि इस जानकारी का भला इस लेख से क्या तालमेल है। दरअसल जावेद अख्तर को पंछी, नदिया, पवन के साथ राजनीति भी जोड़नी थी, तो ये लाइनें ऐसी बनतीं–‘पंछी, नदिया, राजनीति, पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके।’

आज तो यही बात चरितार्थ हो रही है। अब राजनीति प्रदेश, देश और धरती की सीमा पार कर चांद तक पहुंच चुकी है। इसका ताजा उदाहरण है, चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद उस प्वाइंट को ‘शिवशक्ति’ नाम देना। आपका सवाल हो सकता है कि भला इसमें क्या राजनीति हो सकती है। यह तो वैज्ञानिकों और देश के सम्मान के लिए एक प्रतीक के तौर पर दिया गया नाम है। इससे पहले भी 2008 में जब भारत ने पहली बार चांद पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी तो उसे ‘जवाहर पॉइंट’ नाम दिया गया था। जाहिर है, तब कांग्रेस की मनमोहन सरकार थी, ऐसे में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर नामकरण किया गया। सवाल है कि क्या ‘जवाहर पॉइंट’ देशभक्ति थी और ‘शिवशक्ति पॉइंट’ राजनीति है?

जायज सवाल है, पर इसका जवाब भी इसी सवाल में दे दिया गया है। अगर ‘जवाहर पॉइंट’ का नामकरण भी राजनीति ही थी तो यह अच्छी राजनीति थी, क्योंकि इसी का नतीजा है कि 15 साल बाद चंद्रयान-3 चांद के उसी दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारा गया। तो ऐसे में ‘शिवशक्ति पॉइंट’ के नामकरण में भला क्या आपत्ति हो सकती है? नहीं होती, अगर यही नाम ऐसे किसी पॉइंट का होता जो मानसरोवर के सामने मौजूद कैलाश पर्वत के किसी राज़ को खोलने के किसी वैज्ञानिक मिशन के लिए वहां के किसी स्थान के लिए रखा जाता। तब शिवशक्ति के नाम के पीछे की एक जायज वजह होती। कैलाश पर्वत पर वास करने संबंधी भगवान शिव से जुड़ी मान्यता के साथ इस नामकरण पर कोई भी आपत्ति खारिज की जा सकती थी।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ‘शिवशक्ति पाइंट’ के नामकरण पर तीन आपत्तियां बताई जा सकती हैं। पहली, जिस मिशन के लिए चंद्रयान-3 को वहां भेजा गया था, उसका इस नाम से कुछ लेना-देना नहीं है। दूसरी, ‘इसरो’ के वैज्ञानिक जिस जिद, जुनून, जज्बे और वैज्ञानिक नजरिए के साथ यह पूरा मिशन संभाल रहे थे, उसमें धर्म, वैज्ञानिकों का एक निजी विश्वास जरूर हो सकता है, लेकिन इसे मिशन के दूरदर्शी नतीजों के साथ जबरन जोड़ना कतई फायदेमंद नहीं होगा। उलटे इसके नुकसान जरूर हो सकते हैं।

इस पूरे मिशन में जितने भी वैज्ञानिक जुड़े हैं, जरूरी नहीं कि वे सारे हिंदू हों, होने भी नहीं चाहिए। ऐसे में किसी वैज्ञानिक मिशन से जुड़े ऐसे बेहद अहम पाइंट का नाम धर्म विशेष से क्यों रखा जाना चाहिए? तीसरी आपत्ति यह है कि इस नाम को ‘नासा’ या ‘ईएसए’ (यूरोपियन स्पेस एजेंसी) जैसी अंतरराष्ट्रीय स्पेस एजेंसियों को किस तरह समझाया जाएगा। आखिर किसी को कैसे बताया जाएगा कि चांद की संरचना को बेहतर ढंग से समझने और उसकी सतह पर मौजूद रासायनिक और प्राकृतिक तत्वों, मिट्टी, पानी आदि पर वैज्ञानिक प्रयोग करने के इस मिशन के बेहद अहम प्वाइंट को केवल हिंदू देवता के नाम पर क्यों रखा गया है?

और यह भी कि देश के एक हिंदूवादी संगठन के नेता का यह बयान जब वतन की सीमा पार कर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जगह बनाएगा कि चांद को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए, तब भारत किस मुंह से इस पर सफाई देगा। सच तो यह है कि ऐसे बयान देने वालों पर कार्रवाई न करने की स्थिति में भारत की धर्मनिरपेक्ष देश से, बीते 9 सालों में हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाले देश की छवि और मजबूत होगी। क्या इससे खालिस वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक खोज के लिए बनी ‘नासा,’ ‘ईएसए’ जैसी अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थाओं के सामने हमारा मजाक नहीं बनेगा?

अब जरा, ‘शिवशक्ति’ के पीछे की राजनीति समझने की कोशिश करते हैं। अगर केंद्र सरकार का इरादा वास्तव में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक मिशन को बढ़ावा देने का होता तो वह ‘इसरो’ जैसी संस्थाओं का बजट बढ़ाता, लेकिन हकीकत तो यह है कि इसी साल के बजट में सरकार ने ‘इसरो’ का बजट 1100 करोड़ रुपए कम कर दिया है। यानी दो चंद्रयान मिशन के बराबर की राशि।

आरोप तो ये भी लग रहे हैं कि चंद्रयान-3 मिशन के लिए ‘लॉन्च पैड’ बनाने वाली कंपनी के कर्मचारियों को 17 महीनों से वेतन नहीं मिला है। परोक्ष या प्रत्यक्ष तौर पर इससे भी चंद्रयान मिशन जैसे अभियानों से जुड़े ‘इसरो’ सरीखे संगठनों के आत्मविश्वास को बढ़ावा तो नहीं ही मिलता। अब जरा विदेश यात्रा से लौटकर सीधे ‘इसरो’ जाने और वहां वैज्ञानिकों से मिलकर प्रधानमंत्री ने जिन तीन बड़ी घोषणाओं का ऐलान किया, उन्हें देखते हैं। पहली, 23 अगस्त को हर साल भारत ‘नेशनल स्पेस डे’ मनाएगा। दूसरी, चांद पर लैंडर जिस जगह उतरा, वह जगह ‘शिवशक्ति पॉइंट’ कहलाएगी। तीसरी, चांद पर जिस जगह चंद्रयान-2 के पदचिह्न हैं, उस पॉइंट का नाम ‘तिरंगा’ होगा।

इन घोषणाओं के राजनीतिक फायदे तो समझ आते हैं, पर वैज्ञानिक फायदे जानने के लिए रिसर्च की जरूरत पड़ सकती है। अगर पीएम ‘इसरो’ के लिए 2-4 हजार करोड़ के विशेष बजट का ऐलान कर देते, इस पूरे मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों, कर्मचारियों, स्टॉफ के लिए एक या दो महीने के वेतन के बराबर बोनस की घोषणा करते या अगले ऐसे ही मिशन के बजट में 10-15 फीसद बढ़ोतरी की ही घोषणा कर देते तो बेहतर होता। बहरहाल, एक बात तो तय है कि भले ही सरकार ने ‘इसरो’ के बजट को 13,700 करोड़ रु से घटाकर 12,543 करोड़ रु कर दिया हो, वह चंद्रयान मिशन-3 को 2024 के अपने राजनीतिक मिशन की कामयाबी के लिए भुनाने में किसी तरह की कोर-कसर नहीं रहने देगी। चंद्रयान-3 की सफलता पर जिस तरह बधाइयों की विज्ञापनबाजी हो रही है, उससे इसे समझा भी जा सकता है।

अब, एक बार जरा यह भी सोचकर देखें कि ‘शिवशक्ति’ के नामकरण का ‘इसरो’ के ऐसे किसी वैज्ञानिक शोध या मिशन पर क्या असर पड़ेगा? 

यह सोचें कि क्या इस नामकरण के बाद भी ‘इसरो’ से जुड़ा हर वैज्ञानिक, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, पूरे जोश, जुनून के साथ अपने काम में जुटा रहेगा? जुटना ही चाहिए, देश को आगे ले जाने का मिशन है, पर मानव मन का क्या! क्या गैर-हिंदू वैज्ञानिकों में इस हिंदू नामकरण से कहीं-न-कहीं छोटी सी भावना आहत नहीं हुई होगी? हमें भरोसा है कि हमारे वैज्ञानिक देश की राजनीति में चल रही अवैज्ञानिक और स्वार्थी सोच से प्रभावित नहीं होंगे और देश को वैज्ञानिक सोच वाली नई राह पर ले जाने के प्रयासों में सफल होंगे। ‘इसरो’ चीफ एस सोमनाथ का बयान भी है कि मैं एक खोजकर्ता हूं, चंद्रमा का अन्वेषण करता हूं। विज्ञान और आध्यात्मिकता दोनों की खोज करना मेरे जीवन की यात्रा का एक हिस्सा है।

प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में, वेदों में, पुराणों में, स्पेस साइंस का अपार भंडार है। उसे आज के जमाने से जोड़ने और ज्ञान के इस भंडार का उपयोग करने की जरूरत है। उन्होंने नौजवानों को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा देते हुए बताया कि देश को महाशक्ति बनाने में विज्ञान बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि देश चांद पर चंद्रयान-3 जैसे मिशन और चांद को हिंदू राष्ट्र बनाने की घोषणा सरीखे दो परस्पर विपरीत विचारधारा वाले दोराहे पर खड़े होने के बावजूद अपने लिए वैज्ञानिक सोच और बेहतर भविष्य के लिए सही राह चुन पाएगा।

इस मौके पर देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यह बात जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि मनुष्य चांद पर तो पहुंच गया, लेकिन धरती पर उसे कैसे जिंदा रहना है, यह नहीं सीख पाया। हम पक्षी की तरह आकाश में उड़ सकते हैं, हम मछली की तरह सागर में तैर सकते हैं, मगर हम इंसान की तरह धरती पर नहीं चल सकते। उम्मीद है कि अब हम धरती को भी ग्लोबल वार्मिंग, युद्ध, नफरत से बचाने और इंसानों के रहने लायक बनाने के मिशन में कामयाबी की तरफ बढ़ेंगे। ऐसा न हुआ तो सूर्य व शुक्र को लक्ष्य कर शुरू किए गए मिशन भले सफल हो जाएं, पर शायद हम न धरती बचा पाएंगे, न उसके इंसानों को।

(सप्रेस) 

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