नारायण भाई देसाई की पुण्यतिथि

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Vinod kochar

— विनोद कोचर —

नारायण भाई देसाई– को सिर्फ इसलिए याद नहीं किया जाता कि वे महात्मा गांधी के निजी सचिव एवं महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव भाई देसाई के सुपुत्र थे। उन्हें इसलिए याद किया जाता है क्योंकि वे खुद भी गाँधीमार्ग के अथक राही और गाँधीजी के विचारों के कुशल भाष्यकार और चिंतक भी थे। नारायण भाई देसाई को, उनकी पुण्यतिथि पर, उन्हीं के इस गहन चिंतन से उपजे और हमेशा पठनीय, लेख के जरिये याद किया जाना चाहिये जो निम्नानुसार है:-

“आज दुनिया का एकमात्र साम्राज्य (संयुक्त राज्य अमेरिका) तथा उसके उपग्रह जैसे देशों की दौड़ वैश्वीकरण, उदारीकरण जैसे लुभावने शब्दों के मायाजाल के कारण अंधकूप की तरफ है। ऐसा करके वह मानवता के अस्तित्व को जोखिम में डाल रहा है, क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत(अमेरिका)आज हर रोज दो सौ करोड़ डॉलर का ऋण करके अपना लश्करी विलासी और आत्मघाती जीवन निभा रही है।

दुनिया के इतिहास में साम्राज्य ज्यादातर अपने ही बोझ से दबकर कालसागर में समा गए हैं।आज का महासाम्राज्य पिछले साम्राज्यों जितने वर्ष भी बिता पाए-ऐसा लगता नहीं है।दुनिया के कोने कोने में अपने स्थापित लश्करी मिथकों को निभाने में उसकी बहुत सी समृद्धि ख़र्च हो जाती है।उसके लगभग 40 प्रतिशत वैज्ञानिक तो मात्र सेना के शोध में ही लगे रहते हैं।इसके आंतरिक संघर्ष भी दिन-ब-दिन अधिक से अधिक बोझ बनते जा रहे हैं।महान लोकतंत्र माना गया यह देश असंख्य तानाशाही देशों का समर्थन करके अनेक देशों की लोकशाही को तोड़ना चाहता है।मानवाधिकार की शेखी बघारने वाला अमेरिका लेटिन अमेरिका,पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका के देशों में खुले आम मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।

दूसरी तरफ, अमेरिका की स्पर्धा में खड़ी होती ताकतें (यूरोपियन यूनियन, जापान, चीन) उसी के रास्ते चलकर अपनी ताकत बढ़ाना चाहती है, परंतु विलासिता, उड़ाऊ बर्बादी, सैनिक खर्च, अमर्यादित उपभोगवाद, खुद अपनी प्रजा के और दूसरी निर्बल प्रजा के शोषण पर अवलंबित उनकी ताकत सारी मानव जाति और सृष्टि को भयंकर जोखिम में डाल रही है।

तथाकथित ताकतों का अंतिम आधार उनकी लश्करी ताकत होती है।इसलिए उनकी स्पर्द्धा उनको तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ धकेल सकती है और चालू ‘शान्ति’ के दिनों में भी उनके रहनसहन से प्रकृति का भयानक शोषण होता है। प्रकृति के सीमित स्रोत कम होने लगे हैं, वह तो नुकसान है ही परंतु इस रहनसहन से सृष्टि को ऐसी क्षति पहुंचा रही है कि जिसकी पूर्ति सैकड़ों या कदाचित हजारों वर्षों तक फिर से न हो सके।जीवन के हरेक क्षेत्र को ऐसी जीवन शैली बर्बाद करती है।यह सभ्यता का संकट है।

आज से एक सदी पहले गांधी की दूरदृष्टि ने इस संकट को देख लिया था और सामान्यतः सारी मानव जाति को और खासकर के हिंदुस्तान को इस बारे में मात्र चेतावनी ही नहीं दी थी अपितु इस संकट से बचने के लिए नई सभ्यता खड़ी करने का न्योता देकर उसका रेखाचित्र भी,1909में ‘हिन्द स्वराज्य’लिखकर खींच दिया था।”


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