— डॉ. सुरेश खैरनार —
एस. एम. जोशी जी का जन्म 12 नवम्बर 1904 को पुणे जिले के जुन्नर तालुके के एक छोटे से गाँव में हुआ। उनके पिताजी की नौकरी के कारण उनका जन्म यहाँ हुआ, जबकि उनका मूल परिवार कोंकण के गोलप नामक गाँव से था। कोंकण की सुंदरता के बावजूद वहाँ की भूमि और संसाधन जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त नहीं थे। इसी कारण, कोंकण के हजारों परिवारों की तरह जोशी जी का परिवार भी पुणे जिले में आकर बस गया।
जोशी जी के जीवन की शुरुआत ही कठिनाइयों से भरी थी। जब वे ग्यारह वर्ष के भी नहीं थे, तब उनके पिताजी का निधन हो गया। इसके बाद उनकी पढ़ाई नागपुर से शुरू होकर पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज तक पहुँची। इस दौरान उन्हें अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा।
उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब पुणे में लोकमान्य तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। एक संवेदनशील बालक के रूप में एस. एम. जोशी भी तिलक के भक्तों में शामिल थे। पुणे के समाजवादी नेताओं के घरों में तिलक की तस्वीर देखना आज भी आम बात है, जबकि उसी पुणे में महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले जैसे समाज सुधारकों के संघर्षों को भुला दिया गया।
जोशी जी का जीवन जाति और धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण के लिए समर्पित था। उन्होंने न केवल अपने दो पुत्रों अजय और अभय की परवरिश की, बल्कि एक दलित छात्र को भी अपने घर में स्थान दिया। उन्होंने कभी भी अपने सार्वजनिक जीवन में इसका प्रचार नहीं किया।
एस. एम. जोशी जी को सार्वजनिक जीवन में संत-स्वभाव का व्यक्ति माना जाता है। मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ कि जीवन के उत्तरार्ध में मैं उनके निकट संपर्क में रहा। 1977 में महाराष्ट्र जनता पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए वे मुझसे अनेक आंतरिक बातें साझा करते थे, जबकि मैंने स्वयं उनकी पार्टी की सदस्यता नहीं ली थी।
जाति के प्रश्न को लेकर फुले दंपति के प्रयासों के बावजूद पुणे के ब्राह्मण नेतृत्व ने लंबे समय तक उनकी उपेक्षा की। जोशी जी ने सामाजिक समता और धर्मनिरपेक्षता के लिए अपना जीवन समर्पित किया। राष्ट्र सेवा दल की स्थापना भी इसी उद्देश्य के लिए हुई। उनकी आत्मकथा “मी एस. एम.” के 145वें से 166वें पृष्ठों में राष्ट्र सेवा दल के इतिहास और सिद्धांतों का संपूर्ण विवरण है।
हमारे समय में हमीद दलवाई जैसे मुस्लिम समाज सुधारक का निर्माण भी जोशी जी की प्रेरणा और राष्ट्र सेवा दल के प्रयासों का परिणाम था। संसदीय राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने साहसपूर्वक सामाजिक परिवर्तन के कार्यों में योगदान दिया। आपातकाल के दौरान मैंने स्वयं उन्हें पवनार आश्रम में आचार्य विनोबा भावे के साथ देखा। वे विनोबाजी के अत्यंत निकट थे। यदि सोशलिस्ट पार्टी न बनी होती तो संभवतः वे विनोबाजी के साथ भूदान आंदोलन में जीवन समर्पित कर देते।
जोशी जी के व्यक्तित्व में किसी प्रकार का अहंकार नहीं था। वे सरल, निष्कलंक और स्नेहशील व्यक्ति थे। आज उनके जन्मशती वर्ष में, जब राष्ट्र सेवा दल के इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है, यह आवश्यक है कि हम उनकी आत्मकथा के उन 21 पृष्ठों को पढ़ें और सच्चाई को समझें। उनकी पुण्यतिथि पर यही प्रार्थना है कि राष्ट्र सेवा दल के संविधान की रक्षा करें, तभी देश के संविधान की रक्षा की बात सार्थक होगी। अण्णा (एस. एम. जोशी जी) के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी।
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