कपास आयात पर शुल्क हटाना कपास किसानों के लिए मौत का वारंट
एसकेएम ने कपास किसानों से अपील की – गाँव-गाँव बैठक कर प्रस्ताव पारित करें और प्रधानमंत्री को अधिसूचना रद्द करने की माँग भेजें
वित्त मंत्रालय ने कपास आयात पर लगे 11 प्रतिशत शुल्क को तुरंत प्रभाव से समाप्त करने की अधिसूचना जारी की है। यह अधिसूचना आज 19 अगस्त 2025 से लागू हो गई है और 30 सितंबर तक प्रभावी रहेगी। सरकार ने कहा है कि “कपास पर आयात शुल्क और कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC) को हटाना जनहित में आवश्यक है।”
एसकेएम इस अधिसूचना का कड़ा विरोध करता है और कहता है कि कपास आयात पर शुल्क समाप्त करना देशभर के कपास किसानों के लिए मौत का वारंट है। शुल्क हटने से घरेलू कपास के दाम सीधे प्रभावित होंगे। कपास की कीमतें निश्चित रूप से गिरेंगी और किसान और अधिक संकट और कर्ज़ में फँसेंगे। एसकेएम ने प्रधानमंत्री मोदी पर विश्वासघात का आरोप लगाया और उनसे पूछा कि अब उनकी “सर्वोच्च प्राथमिकता” कहाँ गई?
पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने कभी भी कपास किसानों को C2+50% के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं दिया। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा खरीफ 2025 के लिए घोषित कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹7710 है, जो कि ₹10075 (C2+50% के आधार पर) से ₹2365 कम है। कपास की खेती भारत का सबसे अधिक किसान आत्महत्या प्रभावित क्षेत्र है। कपास आयात पर शुल्क हटाने से लाखों कपास किसान परिवारों की आजीविका खत्म हो जाएगी।
भारत में कपास की खेती का क्षेत्र लगभग 120.55 लाख हेक्टेयर है, जो विश्व के कुल कपास क्षेत्रफल का लगभग 36% है। देश कपास क्षेत्रफल के मामले में दुनिया में सबसे आगे है। राज्यों में महाराष्ट्र का क्षेत्रफल सबसे बड़ा है, इसके बाद गुजरात और तेलंगाना आते हैं। भारत में लगभग 67% कपास की खेती वर्षा पर निर्भर है।
एसकेएम देशभर के कपास किसानों से आह्वान करता है कि वे गाँव-गाँव बैठकें करें, प्रस्ताव पारित करें और प्रधानमंत्री मोदी को भेजें – जिसमें यह माँग हो कि प्रधानमंत्री इस अधिसूचना को तुरंत वापस लें और कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य C2+50% के आधार पर ₹10075 प्रति क्विंटल घोषित करें तथा 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में किसानों से किया वादा निभाएँ।
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