— डॉ. योगेन्द्र —
सुबह से आसमान में घने मेघ छाए हैं, लेकिन आसमान में कोई हलचल नहीं है। मेघ स्थिर से दिखते हैं। बिहार में इस बार कम बारिश हो रही है, लेकिन यहाँ की नदियाँ उफनती रहती हैं। नदियाँ सीमाबद्ध तो होती नहीं; वे राज्यों ही नहीं, कई राष्ट्रों से संवाद करती चलती हैं। ब्रह्मपुत्र चीन से भी बात कर लेता है, कोसी नेपाल से भी और गंगा बांग्लादेश पहुँच जाती है। इस धरती पर सबसे ज़्यादा बुद्धिमान और बुद्धिहीन अगर कोई जीव है तो वह मानव ही है। पशु-पक्षी, जलचर आदि देश की सीमाएँ नहीं मानते। भागलपुर में साइबेरिया से पक्षी आते हैं। देश के अन्य स्थानों में भी पक्षियों का आना-जाना लगा रहता है।
मुर्शिदाबाद का एक छोटा सा क़स्बा है लालगोला। मैं कोलकाता से गंगोत्री की यात्रा पर था, तब एक रात वहाँ ठहरा था। लालगोला के किनारे से पद्मा गुज़रती है। पद्मा के एक किनारे भारत है और दूसरे किनारे पर बांग्लादेश। कटाव के कारण बांग्लादेश का कुछ हिस्सा भारत की ओर आ जाता है। जानवर चरने के लिए बांग्लादेश में प्रवेश कर जाते हैं। जानवरों के कान में पहचान के लिए चिप्स लगे हैं। सरहद पर भारत के सैनिक तैनात हैं, वे आते-जाते जानवरों को भी चेक करते रहते हैं कि कहीं बांग्लादेश के जानवर भेदिया बनकर भारत तो नहीं आ रहे।
मैं जब विभाजन की कहानी पढ़ता हूँ तो पहला ग़ुस्सा जिन्ना पर फूटता है। 1945-46-47 के दरम्यान उसने जो विभाजन का वातावरण बनाया और अंग्रेजों ने जो दोरंगी चाल चली, दोनों बहुत कचोटते हैं। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन का जो कॉल दिया, वह बेहद जानलेवा था। 1946 के चुनाव में जिन्ना को मुसलमानों का समर्थन प्राप्त हो गया था। ‘आधा गाँव’ उपन्यास पढ़िए तो मुसलमानों के अंदर ग़लतफ़हमी का जंगल उग आया था, यह समझ सकते हैं।
अलीगढ़ से मुस्लिम लीगी गाज़ीपुर आदि जगहों में प्रचार के लिए जाते तो उनसे सवाल होता कि अगर पाकिस्तान बन गया तो अलीगढ़ कहाँ रहेगा? मुस्लिम लीगी कहते—पाकिस्तान में रहेगा, और अगर पाकिस्तान को भले मन से अलीगढ़ नहीं दिया तो पाकिस्तान की सेना चढ़ाई कर उसे भारत से छीन लेगी। ग़ज़ब की ग़लतफ़हमी फैला दी गई थी कि हिन्दू और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं, वे साथ-साथ नहीं रह सकते।
जिन्ना और सावरकर तो अब रहे नहीं, लेकिन उनके अनुयायियों को माफ़ी माँगनी चाहिए। उनकी ग़लतियों की वजह से लाखों लोगों का कत्ल हुआ और करोड़ों बेघर हुए। आज भी दोनों देशों का सबसे ज़्यादा खर्च सरहद पर हो रहा है। शातिर लोग अपने पाप को छुपाने के लिए गांधी को विभाजन का ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश करते हैं। यहाँ तक कि गांधी की हत्या कर दी गई। अहिंसा के पुजारी को गोलियों से भूना गया।
आज़ादी के बाद जिन्ना के सिर पर ताज था या नेहरू के सिर पर, लेकिन गांधी तो जलते देश की आग बुझाने के लिए मारे-मारे फिर रहे थे। सावरकर-पंथी आग लगाने में लगे थे और गांधी को मारने की साज़िश रच रहे थे।
इतिहास के पन्ने हमें सचेत करते हैं। गांधी ने जो किया, कहा या लिखा—वह मौजूद है। जिन्ना ने एक पर्चा तक नहीं लिखा। उनके द्वारा लिखा कुछ भी मौजूद नहीं है। उनके बारे में जो लिखा हुआ है, वह दूसरों ने लिखा है। गांधी को जानने के लिए प्राथमिक स्रोत उपलब्ध हैं, लेकिन जिन्ना को जानना है तो द्वितीय स्रोत पर निर्भर होना पड़ेगा।
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