बरसात में यहां लोगों के घरों खेतों बागबगीचों सड़कों और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर का भारी नुकसान हुआ है वहीं पर जंगलों में पेड़ पौधों दूसरी वनस्पति के साथ मिट्टी का भी नुकसान हुआ है। इतना ही नहीं जल संग्रह भी कम हुआ है।
30 जून और इससे भी पहले कुल्लू में गडसा में बही लकड़ी बारे तरह तरह के सवाल खड़े हुए। फिर पण्डोह डैम और पौंग डैम में आई लकड़ी पर भी लोगों के तरह तरह के सवाल आए। हम पौंग डैम से छोड़े पानी से बह कर आई लकड़ी भी देख आए यहां भी लोग सवाल कर रहे हैं। अभी दो दिन पूर्व राबी में आई भयंकर बाढ़ में आई लकड़ी पर भी सवाल यूट्यूबर खड़ा कर रहे हैं।
अच्छा है कि लोग इस बारे चिंता करें। पर लोगों को इस लकड़ी बारे पूरी असलियत पता करनी चाहिए या किसी जानकार से भी इसके बारे जानकारी लेनी चाहिए।
हमने 2023 में भी अपने इलाका पौंग झील में आई लकड़ी का पूरा अध्ययन किया और अब भी हर वीडियो और लोगों द्वारा डाली गई फोटो को ध्यान से देखते हैं। जैसे कल ही राबी या फिर पण्डोह डैम और पौंग डैम में इकट्ठा हुई लकड़ी को गहराई से देखा तो ज्यादातर लकड़ी लॉग के रूप में है या फिर पेड़ के पेड़ बह कर आए हैं पेड़ों की बिना तराशी बिना चिरान की गई लकड़ी है। होता यह है जब भी लैंड स्लाइड होता है या फिर बाढ की कटाई से पेड़ गिरता है और पानी में बहता है तो मिट्टी पत्थर चट्टानों से टकराते हुए चूर चूर हो जाता है जो हिस्सा इसकी मार सह जाता है वो ऐसे ही पानी में बहते हुए यहां भी ठहराव मिलता है किनारे लग जाता है पानी में तैरता भी है। इसलिए जो भी लकड़ी बह कर आती है यह सब बाढ़ में जंगलों या खेतों के पेड़ों की ही होती है। इसे नाजायज काटी हुई लकड़ी की संज्ञा देना बिल्कुल बेईमानी है। यह जरूर है कि कहीं वन निगम या वन विभाग द्वारा निकाली गई लकड़ी भी बह जाए पर यह बहुत कम होती है।
इसमें लोगों द्वारा अपने खेतों या फिर जंगल से जायज लकड़ी भी हो सकती है। बहुत कम लकड़ी होगी जो किसी तस्कर या फिर किसी द्वारा जंगल से नजायज काटी लकड़ी हो। पर सारी लकड़ी को जंगलात के सिर मढ़ना बिल्कुल नादानी है। हम आज भी दावे से कह सकते हैं कि ज्यादातर वन महकमा के लोग जंगलों को मुस्तैदी से सुरक्षित रखने में अपना सब कुछ दाव पर लगाते हैं। बहुत कम यानी न के बराबर ही होंगे जो तस्करों से मिलकर जंगलों को नुकसान पहुंचाते हैं। लोग भी सचेत हैं इसलिए बहुत कम स्तर पर मिलीभगत से वन को बड़े स्तर पर काटा जाता होगा। कहीं कहीं ठेकेदार जरूर अपने जायज लकड़ी में वन से काटी लकड़ी मिलाते हैं इसमें जाने अनजाने विभाग के लोग नजरअंदाज करते हैं पर बड़े स्तर पर यह होना संभव नहीं है। इसलिए जो भी लकड़ी नदी नालों डैम में बह कर आई है यह नाजायज नहीं है और यह एक किस्म की ड्रिफ्ट वुड है। और यह वन विभाग यानी सरकार की प्रॉपर्टी है।
रिवर रूल बने हैं इसमें ड्रिफ्ट वुड यानी पानी में बह कर आई लकड़ी को सरकार की प्रॉपर्टी माना जाता है तब तक कि कोई इसे क्लेम न करे और इसके पुख्ता संकेत या चिन्ह मौजूद न हों।
नदी किनारे बसने वाले इस लकड़ी को बिना काटे और चिरान किए अपने उठाने के बोझ जितना अपने इस्तेमाल के लिए ला सकते हैं ऐसा प्रावधान है पर इसे मार्केट में बेचना बिल्कुल मना है।
अतः मेरा वन विभाग और सरकार से अनुरोध है कि जितनी भी लकड़ी बह कर आई है इसे इकट्ठा किया जाए और फिर नीलाम किया जाए। ये हिमाचल प्रदेश की प्रॉपर्टी है इसे बेकार में बहने या बर्बाद नहीं होने देना है। मेरे अंदाजा के मुताबिक यह लकड़ी सौ करोड़ की कीमत की होगी। यदि इसे बर्बाद होने दिया तो प्रदेश के खजाने का नुकसान है।
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