समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा को अलविदा!

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Socialist thinker Sachchidanand Sinha

रणधीर गौतम

— रणधीर गौतम —

भारतीय समाजवाद के प्रेरणाओं के अनेक पुंज हैं। न जाने कितने नायकों ने समाजवादी विचार को अपनी साधना (चिंतन और कर्म) से विस्तार दिया, नव-सृजन से गति दी। इसमें अनेकों चिंतक, दार्शनिक, शिक्षक, समाजसेवी, संस्थान, नेता, कलाकार, लेखक और पत्रकार का महत्वपूर्ण योगदान है। न जाने कितने साधकों ने अपने नाम और पहचान के साथ समाजवाद की साधना और विरासत को विस्तार दिया है।

इन सबों में मैं वैचारिक अन्वेषण और साधना के मार्ग को सबसे महत्वपूर्ण और उपयोगी मानता हूं! और सच्चिदानंद बाबू इस मार्ग के एक महानायक थे।

समाजवादी दर्शन की मौलिक दिशा सच्चिदानंद जी के कार्यों में दृष्टिगोचर होती है। जब आचार्य नंदकिशोर जी ने अपनी किताब “लोहिया : मानव सामीप्य का दर्शन” को डेडिकेट करने के लिए नाम के रूप में समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा का नाम चुना, तो मैंने उनसे पूछा कि सच्चिदा जी ही क्यों?

तो आचार्य जी ने कहा कि—लोहिया की मीमांसा को समझने का कुछ लोग ही गौरव कर सकते हैं, और सच्चिदानंद सिन्हा उनमें से एक हैं।

समाजवादी विचार में Colonialism (उपनिवेशवाद) के खिलाफ संघर्ष की आवाज हमेशा बुलंद रही। सच्चिदा बाबू ने Internal Colonialism (आतंरिक उपनिवेशवाद) के विचार का विमर्श देकर बाहरी से लेकर आंतरिक वर्चस्व की शक्ति को चुनौती देने वाला एक स्थायी विमर्श स्थापित किया था।

इसके साथ ही Ideology और Power के संबंध को जिस तरह उन्होंने अपने विमर्श में महत्वपूर्ण स्थापना के साथ उपस्थित किया, उससे साबित होता है कि भले ही वह भारतीय समाज के संदर्भ में सोचते थे, लेकिन दुनिया के समाज-विज्ञान विमर्शों को भी गहराई से समझते, पढ़ते और चिंतन करके उस पर रिफ्लेक्ट करते थे।

सच्चिदा जी Global intellectual discourses के महत्वपूर्ण विमर्शों को बहुत सहजता के साथ भारतीय समाज के पाठकों के सामने प्रस्तुत करते थे। और यही वह लक्षण है कि ज्यादातर चिंतकों में जो Global Knowledge और Indian Knowledge के बीच बौद्धिक Gap (intellectual lag) दिखता है, वह सच्चिदा जी के कामों में नहीं दिखता। यह व्यक्ति—जो बिहार के गांव में बैठकर लेखनी कर रहा था—उसके विमर्श में मिशेल फूको से लेकर स्ट्रक्चरलिज़्म तक के विचारक उपस्थित हैं।
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उन्होंने एक साधारण जीवन को अपने कार्यों से असाधारण बनाया और असाधारण कार्यों के साथ भी साधारण जीवन जीने की समाजवादी वृत्ति उनके अंदर स्वाभाविक रूप से मौजूद थी। कहते हैं—हर सफल इंसान सच्चा होता है, हर सच्चा इंसान अच्छा होता है और हर अच्छे इंसान में सरलता और विनम्रता का बोध होता है।

एक देशज समाजवादी होने का हर हुनर उनके अंदर कूट–कूट कर भरा हुआ था। लोकल होते हुए भी ग्लोबल समझ विकसित करने के लिए अध्ययन की साधना ने उन्हें महान समाजवादी विचारको में स्थापित किया।

सच्चिदा बाबू हमें क्या प्रेरणा देकर विदा हुए हैं—इस पर हमें अवश्य विचार करना चाहिए। सच्चिदा बाबू में अनासक्ति का बोध प्रबल था, और मेरा मानना है कि किसी भी बुद्धिजीवी, विचारवान और बड़े व्यक्ति में अनासक्ति का बोध होना आवश्यक है। उनके भीतर किसी भी तरह की तृष्णा नहीं थी, यही उन्हें हमेशा सहज और सरल बनाए रखता था।

समाजवादी वृत्ति क्या होती है—यह उनके साथ रहने पर समझ में आता है। समाजवादियों में हमेशा voluntary poverty की प्रवृत्ति रहती है। लालची व्यक्ति कभी समाजवादी नहीं बन सकता। कोई भी व्यक्ति समाजवादी तभी बनता है जब वह साधारण, सहज और देशज भाव से भरा हो। ये तीनों गुण सच्चिदा बाबू में कूट–कूट कर भरे थे। और जब तक किसी व्यक्ति में अनासक्ति का बोध नहीं आता, तब तक वह न विवेकशील बन सकता है और न ही विनम्र।

मेरा व्यक्तिगत मानना है कि सच्चिदा बाबू—अशोक सेकसरिया और किशन पटनायक जी से विचार–विमर्श और बौद्धिक ऊर्जा के संदर्भ में कहीं 20 थे। क्योंकि सच्चिदा बाबू के विचारों में जो रेंज है, वह विस्तृत है। उनकी लेखनी पढ़कर समझ आता है कि समाज-विज्ञान के हर विमर्श को समझने और उसका विवेचन करने की क्षमता उनके भीतर थी।

एक समाजवादी और सच्चा विचारक न तो छुटपूटिया नेता–राजनीति से प्रभावित होता है और न ही छुटपूटिया नेताओं के प्रभाव में आता है—और यह सामर्थ्यबोध सच्चिदा जी हमें सिखाते हैं। उन्होंने हमेशा राजनीतिक प्रभाव में आकर अपनी बुद्धि और विचार–परंपरा को दोषपूर्ण होने से बचाया। यह साधना हम सभी को सीखनी चाहिए।

राजनीति में हार–जीत अपनी जगह है, लेकिन राजनीति के उन्माद में अपनी बौद्धिकता को बेकार कर देना; यह दुर्भाग्यपूर्ण परंपरा आज समाज में, खासकर बुद्धिजीवियों के बीच फैल रही है। सच्चिदा बाबू हमें इस दुर्भावना से बचकर सत्यशोधक समाजवादी बने रहने की प्रेरणा और दृष्टि देते हैं। अपने समाजवादी विवेकशील चिंतन को कभी धूमिल न होने देना, सत्य, प्रेम और न्याय की पुकार के साथ अपनी बौद्धिक साधना को प्रेरित करना—यह शिक्षा सच्चिदा बाबू हमें हमेशा देते रहेंगे।

आज जब समाजवादी विचार की देश और दुनिया को सबसे अधिक जरूरत है, और जब कई लोग राजनीति में खुद को समाजवादी विचार की झूठी विरासत के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं—ऐसे समय में सच्चिदा बाबू का होना बहुत आवश्यक था। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी।…..

समय मिलने पर उनके कार्यों का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन अवश्य करूंगा, और उनके द्वारा दिए गए विमर्शों को समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में विवेचित करूंगा।

अभी के लिए इतना ही।….
उन्हें सादर श्रद्धांजलि।


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