अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस (10 दिसम्बर) के उपलक्ष्य में झारखंड जनाधिकार महासभा ने आज प्रेस वार्ता का आयोजन कर पिछले एक साल के कई तथ्यान्वेषणों व जांच के आधार पर लगातार हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों को प्रस्तुत किया। जहां एक ओर मोदी सरकार नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों को खतम कर रही है, वहीं दूसरी ओर हेमंत सोरेन सरकार इन अधिकारों के प्रति अत्यंत उदासीन है। आदिवासी, दलित, मुसलमान और गरीब दैनिक पुलिसिया दमन और लचर न्यायिक व्यवस्था से त्रस्त हैं।
पुलिसिया दमन – फर्जी मुठभेड़, हिरासत में हिंसा, प्राथमिकी दर्ज करने में आनाकानी
6 साल तक सरकार की कमान संभालने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य पुलिस के ऐतिहासिक जन-विरोधी रवैया को बदलने में नाकाम रहे हैं। पिछले एक साल में भी फर्जी मामलें, मुठभेड़ के नाम पर हत्या, हिरासत में हिंसा और आदिवासी-वंचितों के शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज न करने के अनगिनत घटनाएं हुए हैं। 10-11 अगस्त 2025 को डकायता गाँव (गोड्डा) के सूर्या हांसदा का फर्जी मुठभेड़ सबसे स्पष्ट उदाहरण है। यह भी अत्यंत चिंताजनक है कि आदिवासी व वंचितों के लिए उन पर हुए हिंसा के विरुद्ध एक महज़ प्राथमिकी दर्ज करवाना आज भी चुनौती है। हाल में, 1 नवंबर 2025 को पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर के युवा आदिवासी मनसा सामड को गैर-आदिवासी समुदाय के लोगों ने बुरी तरह से पीटा था। लेकिन स्थानीय थाना खून से लथपथ मानसा को चार दीनों तक घुमाते रहा लेकिन प्राथमिकी दर्ज नहीं किया। हालांकि पुलिस हिरासत में हिंसा और कुल मौतों की कोई औपचारिक रिपोर्ट नहीं है, लेकिन आदिवासी, दलित और मुसलमान लगातार शिकार हो रहे हैं। उच्च न्यायालय में दर्ज एक पीआईएल के जवाब में राज्य के जवाब अनुसार 2018 से अब तक 427 लोगों की जेल में मौत हुई है।
जन आंदोलनों के प्रति दमनकारी रवैया
यह दुख की बात है कि जन आंदोलन से निकली हुई पार्टी की सरकार ही जन आंदोलनों पर डंडे बरसा रही है और फर्जी मामलों में सामाजिक कार्यकर्ताओं को उलझा रही है। 27 अक्टूबर 2025 को चाईबासा के ताम्बो चौक पर क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासियों द्वारा शहर में बड़े वाहनों के प्रवेश पर नो-एंट्री लगाने की मांग पर एवं लगातार हो रहे दुर्घटनाओं के विरुद्ध शांतिपूर्ण आन्दोलन पर रात के अंधेरे में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया, आंसूगैस छोड़ा, 11 महिलाओं समेत 75 आदिवासियों के विरुद्ध ‘हत्या के प्रयास’ समेत कई गंभीर आरोपों के तहत प्राथमिकी दर्ज किया और 16 लोगों (व पहले 4 नेतृत्वकारी युवाओं) को गिरफ्तार किया। पुलिस की कानून व मानवता विरोधी मानसिकता इससे भी झलकता है कि 18 वर्षीय छात्र साहिल बिरुवा को फर्जी रूप से इस मामले में जेल भेजा और फिर हथकड़ी में कॉलेज ले गया इंजीनियरिंग का फॉर्म भरवाने।
चतरा के खूंटीकेवाल कला गांव में पूर्व सामंती जमींदार द्वारा फरवरी 2025 में ग्रामीणों के सामुदायिक भूमि को कब्ज़ा करने की कोशिश को पुलिस व प्रशासन ने साथ दिया एवं इसका विरोध कर रहे आंदोलनकारी विनय सेंगर समेत 33 ग्रामीणों पर रंगदारी, लूटपाट समेत कई बेबुनियाद आरोप पर मामला दर्ज किया। विनय सेंगर को 28 फरवरी को और राजा भुईयां को 5 नवंबर को गिरफ्तार किया गया। दोनों अभी भी जेल में है। रांची के लापूँग में भी पूर्व जमींदार द्वारा गाँव की जमीन को छीनने की कोशिश के विरुद्ध 3 जून 2025 को पारंपरिक पड़हा बैठक को पुलिस ने रोका, गोली चलाई, दो ग्रामीण घायल हुए और कई फर्जी आरोप आधारित प्राथमिकी दर्ज किया।
माओवाद खात्मा के नाम पर आदिवासी अस्तित्व पर हमला
यह भी स्पष्ट है कि हेमंत सोरेन सरकार आँख बंद करके केंद्र के माओवादी-खात्मा अभियान के नाम पर आदिवासी-खात्मा के रणनीति के नक्शेकदम पर चल रही है। हाल में छत्तीसगढ़ में भाकपा (माओवादी) के आदिवासी नेता मांडवी हिडमा की हत्या ने केंद्र सरकार के माओवाद-खात्मा अभियान के पीछे की सच्चाई को फिर से उजागर किया है। झारखंड में 21 अप्रैल व 16 जुलाई को गोमिया में हुए मुठभेड़ों पर भी प्रमुख सवाल यही है कि क्या माओवादियों को घेरने के बाद आत्मसमर्पण का मौका दिया गया था? साथ ही, इसमें सिविल्यन ग्रामीण बलदेव किसकु की भी मौत हुई थी जिसको दबाने की कोशिश की गई। इसके बाद भी राज्य में कई मुठभेड़ हुए जिसमें माओवादी, मुख्यतः आदिवासी-दलित, मारे गए।
चाहे छत्तीसगढ़ हो या झारखंड, महासभा का मानना है कि माओवाद खात्मा अभियानों का असली उद्देश्य आदिवासी इलाकों को कॉरपोरेट लूट के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाना है। इसके लिए आदिवासियों को उनके ही क्षेत्र में सुरक्षा कैम्पों से घेरकर उनके आज़ादी को सीमित की जा रही है। पिछले कुछ सालों में राज्य के आदिवासी सघन क्षेत्रों में लगातार PESA व अन्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर, बिना ग्राम सभा की सहमति के, एक के बाद एक सुरक्षा बलों के कैंप लगाये गए। यह महज़ संयोग नहीं है कि एक तरफ कोल्हान व सारंडा में पिछले कुछ सालों में 25 से अधिक कैम्प स्थापित किए गए और दूसरी ओर वहां लौह अयस्क खनन को बढ़ावा देने की कोशिश भी लगातार चल रही है।
व्यवस्थागत मुद्दे व महासभा की मांग
राज्य में शोषण और व्यवस्थागत हिंसा के लंबे इतिहास के बावजूद राज्य मानवाधिकार आयोग को निष्क्रिय करके रखा गया है। लंबे समय से आयोग में अध्यक्ष व अन्य पद रिक्त पड़े हुए हैं। यह महज़ संयोग नहीं है कि राज्य के जेलों में बंद लोगों में 75 % विचाराधीन हैं और अधिकांश आदिवासी, दलित, पिछड़े और मुसलमान हैं। सरकारी आंकड़ों पर आधारित हाल में जारी “इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025” के अनुसार पुलिस, न्यायिक व्यवस्था, जेल व कानूनी सहायता के सभी आंकड़ों पर झारखंड देश के सबसे निचले पायदान पर खड़ा है।
इस परिप्रेक्ष में झारखंड जनाधिकार महासभा राज्य सरकार से निम्न मांग करती है:
1) उपरोक्त मामलों – चाईबासा नो-एंट्री, लापुंग , चतरा आदि – में दर्ज प्राथमीकियों को तुरंत रद्द किया जाए, जेल में डाले गए सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाए और दोषी पुलिस के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई हो।
2) सूर्या हांसदा के फर्जी इन्काउनर के लिए जिम्मेवार पुलिस के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई हो। राज्य के सभों थानों व जेल में कड़ी निगरानी सुनिश्चित हो एवं हिरासत में हिंसा के मामलों पर त्वरित न्यायसंगत कार्यवाई सुनिश्चित हो। साथ ही, पुलिस को स्पष्ट निदेश दिया जाए कि 24 घंटे के अंदर प्राथमिकी दर्ज करना सुनिश्चित करे।
3) आदिवासी क्षेत्रों में तुरंत सशस्त्र आक्रमण और हिंसा को रोकें। निष्पक्ष और विश्वसनीय सैन्य अभियान विराम लागू करें। स्थानीय आदिवासियों के साथ उनके मुद्दों पर संवाद करें। 16 जुलाई के मुठभेड़ में ग्रामीण बलदेव किस्कू की मौत की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करें व न्यायसंगत कार्यवाई करें। उनके मौत के एवज़ में उनके परिवार के सदस्यों को मुआवज़ा दी जाये। IED ब्लास्ट में घायल या मरे आदिवासियों को मुआवज़ा दिया जाए। ग्राम सभा की सहमति के बिना बनाये गये सशस्त्र बल कैम्पों व विद्यालयों में लगे कैम्पों को हटाया जाये।
4) राज्य के आदिवासी-मूलवासियों पर दर्ज UAPA समेत माओवाद सम्बंधित गंभीर आरोपों के मामलों व विचाराधीन कैदियों के मामलों की निष्पक्ष जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन हो।
5) आदिवासी क्षेत्रों में PESA, पांचवी अनुसूची प्रावधान, वन अधिकार कानून समेत सभी आदिवासी अधिकार सम्बंधित कानून व संवैधानिक प्रावधानों को पूर्ण रूप से लागू किया जाये।
6) निष्क्रिय पड़े राज्य मानवाधिकार आयोग के सभी पदों पर नियुक्ति कर पूर्ण रूप से सक्रिय किया जाए।
प्रेस वार्ता को अलोका कुजूर, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, मनोज भुइयां, नंदिता भट्टाचार्य , सुशीला बोदरा और सिराज ने संबोधित किया।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
















