15 जून। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण मुसीबत झेल रहे मजजदूर वर्ग को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए राष्ट्रव्यापी राहत पैकेज दिया जाना चाहिए।
वर्किंग पीपुल्स चार्टर (डब्ल्यूपीसी) के नेतृत्व में 70 से अधिक ट्रेड यूनियनों और सामजिक संगठनों के एक समूह ने केंद्र सरकार से राहत पैकेज, डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर, मनरेगा का विस्तार समेत कई मांगें रखी हैं।
इस संबंध में एक बयान जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि मजदूरों और गरीब वर्ग के लोगों के खाते में छह महीने तक 3,000 रुपये प्रतिमाह जमा किए जाएं।
इन संगठनों का अनुमान है सीधे आर्थिक मदद पहुंचाने में 5.5 लाख करोड़ रुपये खर्च होगा।
पूरा बयान पढ़ें-
कोरना महामारी की दो लहरों और कुछ कुछ अंतराल पर लगे लॉकडाउन का मजदूरों पर गहरा असर पड़ा है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। यहां तक कि दूसरी कोरोना लहर से पहले ही दसियों लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे चले गए। तमाम स्रोतों ने इसकी पुष्टि की है।
और इस तरह गरीबी कम करने की कठिन लड़ाई न केवल बाधित हुई बल्कि इसमें हम पीछे गए हैं।
असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाली आधी से अधिक आबादी ने रोजगार और आजीविका खो दिया है, जबकि इनमें से दो तिहाई के सामने भुखमरी जैसे हालात पैदा हो गए हैं।
गरीब परिवारों का हाल और बुरा हुआ है और इसके कारण गैरबराबरी का दंश उन्हें सबसे अधिक झेलना पड़ा। कोरोना की दूसरी लहर और लोकल स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन ने पिछले साल से चली आ रही मुसीबतों में और इजाफा किया है। इसका असर केवल शहरी गरीब और प्रवासी मजदूरों पर ही नहीं पड़ा बल्कि ग्रामीण गरीब परिवारों और ग्रामीण मध्यवर्ग को भी संकट में डाल दिया है।
महिलाएं, बच्चे और खासतौर पर सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों पर लंबे दौर तक के लिए पिछड़ने का खतरा पैदा हो गया है। अगर कुछ साहसिक कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर लंबे समय तक रह सकता है।
महामारी के पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत खराब थी और कई तिमाही के आंकड़े आर्थिक सुस्ती का गवाह रहे जिसके कारण बेरोजगारी और मजदूरी में ठहराव देखा गया।
महामारी के कारण आमदनी पर जो असर पड़ा उसने कुल मांग को और प्रभावित किया। वैक्सिनेशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर जरूरी ध्यान देने के अलावा छोटे स्तर पर राहत की सख्त जरूरत है और इसके लिए राष्ट्रीय राहत और रिकवरी पैकेज तत्काल घोषित होने चाहिए ताकि जिंदगियों को बचाया जा सके, आमदनी और आजीविका को हुए नुकसान की आंशिक भरपाई की जा सके और अर्थव्यवस्था की तेजी से रिकवरी बढ़ाने के लिए मांग को प्रोत्साहित किया जा सके।
बिना इस तरह के पैकेज के, सिर्फ अर्थव्यवस्था को खोल देने से संतुलित रिकवरी नहीं हो सकेगी। पूरी दुनिया में विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं इस तरह की सरकार नीत राहत कार्यक्रमों को लागू कर रही हैं ताकि परिवारों की आमदनी और खर्च को प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही वे इस बात को मान रही हैं कि अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर राहत और रिकवरी के काम जरूरी हैं। भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए।
हम मानते हैं कि इस राहत पैकेज में न्यूनतम तीन और बहुत जरूरी उपाय किए जाने चाहिए, राशन, आमदनी और रोजगार।
दूसरी कोराना लहर का सार्वभौमिक असर इस बात की ओर संकेत करता है कि हमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में आनेवाले परिवारों के अलावा एक व्यापक आबादी को ध्यान में रखना होगा।
इसलिए ऐसे पैकेज को 33 करोड़ परिवारों तक ले जाना चाहिए जिसमें देश के 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार और 70 प्रतिशत शहरी परिवार आते हैं।
साल 2020 में घोषित राहत पैकेज को और विस्तारित करते हुए लोन और क्रेडिट की सुविधाएं भी मुहैया करानी चाहिए।
राशन
पीडीएस के तहत राशन कार्ड धारकों के लिए अतिरिक्त राशन देने की समय सीमा को नवंबर 2021 तक बढ़ाया जाना स्वागतयोग्य कदम है। लेकिन हमें 10 करोड़ टन राशन और जारी करना चाहिए ताकि नवंबर 2021 तक उन गैर राशन कार्ड धारकों को भी राशन मिल सके, जिनके पास कार्ड तो नहीं है लेकिन उनकी आजीविका पर संकट है।
ऐसे परिवारों को भी इस दायरे में लाने की जरूरत है जिनमें बच्चे हैं। इसके अलावा स्कूलों और आंगनबाड़ी में राशन और भोजन (जिसमें अंडे शामिल हैं) की सुचारु व्यवस्था हो सके।
आमदनी
संकटग्रस्त परिवारों को छह महीने तक हर महीने 3000 रुपये प्रतिमाह सीधे खाते में जाम किए जाएं।
रोजगार
मनरेगा के तहत काम की गारंटी सीमा को 150 दिनों तक किया जाना चाहिए। साथ ही शहरी रोजगार के लिए सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रमों को बढ़ाया जाए।
राहत पैकेज को लोगों तक पहुंचाने के लिए पहले से कई सारे तंत्र मौजूद हैं। डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के बहुत सारे तंत्र मौजूद हैं मसलन नरेगा, पीएम-किसान, पीएमजेडीवाई, एनएसएपी। इसके अलावा राशन की दुकानों, पोस्ट ऑफिस, पंचायत और स्थानीय संस्थाओं की मार्फत वितरण की व्यवस्था की जा सकती है। हम मानते हैं कि प्रस्तावित नकद आर्थिक मदद से भारत सरकार पर 5.5 लाख करोड़ या 2021-22 में अनुमानित जीडीपी का 2.45 प्रतिशत का भार पड़ेगा।
केंद्र सरकार को इस पैकेज को घोषित करना चाहिए और राज्य सरकारों से भी इसमें न्यूनतम मदद लेनी चाहिए, जो वितरण के मामले में अपने फंड का इस्तेमाल करती हैं।
ये जरूरी है कि भारत सरकार इस मुसीबत से भारत के मजदूरों और नागरिकों को उबारने की जरूरत को संजीदा तरीके से महसूस करे।
हम अपील करते हैं कि इसपर तुरंत कार्रवाई की जाए, यह संवैधानिक जिम्मेदारी भी है और दुनिया के स्तर पर अपनाया जानेवाला एक मानक तरीका भी। अगर अभी नहीं किया जाएगा तो कब?
(workersunity.com से साभार )