— जागृति राही —
गांधी विचार की संस्थाओं, आश्रमों में घुसपैठ और उन पर कब्जे की कोशिश बीजेपी की सरकारें और संघ के समर्थक लगातार करते आ रहे हैं। वाराणासी में राजघाट स्थित गांधी विद्या संस्थान इसका ज्वलंत उदाहरण है। हजारों खादी-संस्थाओं और आश्रमों को खादी कमीशन के माध्यम से पहले अजीबोगरीब नियमों में बांध कर उनका सहज विकास और संबंध समाज से तोड़ा गया और फिर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया। इतना ही नहीं, अब उन्हें कर्जदार बनाकर उनकी संपत्ति पर कब्जा किया जा रहा है। यह प्रक्रिया वाजपेयी सरकार के समय ही शुरू हो गई थी। दुखद यह है कि कांग्रेसी सरकार ने भी उनकी बात नहीं सुनी ना ही उनके महत्त्व को समझा। खादी वस्त्र नही विचार है यह वाक्य कांग्रेस को याद नहीं रहा। यह याद नहीं रहा कि यही विचार समाज में उनका आधार है।
गांधी की परंपरा से निकले व्यक्ति हों या संस्थाएं, आज के दौर में जब देश में विघटन और नफरत फैलानेवाली सोच राजनीति में हावी है, कांग्रेस की समन्वयकारी सोच ही अपनी लगती है। इन विचारों के सिमटते जाने और गांधी के लोगों के बँटे होने के कारण आज देश में हालात इतने चिंताजनक हैं कि शुरू से रचनात्मक काम में ही लगी रही संस्थाओं पर भी खतरा मंडरा रहा है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्मृतियों से जुड़े हर स्थान, हर आश्रम या हर संस्था को सुनियोजित रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
वाराणसी में मोदी जी के संसदीय क्षेत्र में विकास के नाम पर जबरन सर्व सेवा संघ, जो गांधीवादी संस्थाओं में सबसे प्रतिष्ठित और पूरी तरह गैरदलीय संस्था रही है, उसके परिसर को अधिग्रहित किये जाने का खतरा बढ़ गया है। आए दिन सरकारी अधिकारियों की धमकी और दखलंदाजी पुलिस की उपस्थिति में होती है। आपसी रंजिश को हवा देकर, संस्था से निकाले गए स्वार्थी तत्त्वों को मिलाकर, शासन का दुरुपयोग करके सर्व सेवा संघ के वर्धा स्थित सेवाग्राम परिसर को भी विवाद में घसीट लिया गया है। साबरमती आश्रम को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के नाम पर वहां लोगों को विस्थापित किया जा रहा है और आश्रम के मूल स्वरूप को हानि पहुंचाई जा रही है।
देश मे गांधी विचार और खादी के केंद्र चलाने वाली संस्था गांधी निधि की उत्तर प्रदेश की इकाई में सेवापुरी में अब जमीनों पर कब्जा करने के लिए बीजेपी के बाहुबली विधायक दखल देने लगे हैं। आश्रम की खेती की जमीनों पर दबंग लोगों के दबाव में कॉन्ट्रैक्ट हो रहे थे, अभी खादी कमीशन के एक अधिकारी द्वारा संस्था की नियमावली (बायलॉज) को किनारे करके मनमाने तरीके से कठपुतली अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। दिल्ली में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति में मंत्री जी मनमाने तरीके से बिड़ला भवन में गांधी म्यूजियम को बदलकर गांधी की हत्या के वक्त की फर्जी कथा लिख रहे हैं।
राजघाट (दिल्ली) में जब मन होता है 30 जनवरी या 2 अक्टूबर के समय भी संघ परिवार के आयोजन होने लगे हैं और उस बहाने समाधि के गेट बंद कर दिए जाते हैं।
खादी ग्राम जमुई (बिहार) में सर्व सेवा संघ के धीरेंद्र मजूमदार की कर्मस्थली और भूदान आंदोलन के केंद्र में बीजेपी के मंत्री द्वय द्वारा घुसने के प्रयास सफल हो रहे हैं। राजस्थान में जयपुर में समग्र सेवा आश्रम पर कब्जा किया गया जो आज तक खाली नहीं हो सका। गांधी के विचारों के 100 खंडों में हुए संकलन (गांधी वांग्मय) को भी बदलने की कोशिश हुई। यह सब करने के लिए बाकायदा संघ ने काफी पहले रणनीति बना कर स्वदेशी के विचार, गांधी के रचनात्मक कार्यों के समर्थक बन, गोहत्या बंदी आंदोलन, ग्राम स्वराज, लोकसेवक, बुनियादी तालीम जैसी अवधारणाओं को चुराया और उनके केंद्रों में घुसने की कोशिश की। अपने लोगों को भेज कर, पदाधिकारियों की कमजोरियों को पकड़कर विवाद को हवा दिलवाई, बेईमान लोगों का समर्थन किया।
मेरी चिंता जमीनों और मकानों की नहीं है। ये विचार के केंद्र नई पीढ़ी की विरासत हैं। गांधी विचार पर सुनियोजित हमला यूट्यूब और तमाम सोशल मीडिया पर झूठ फैलाकर जोर-शोर से जारी है। ये दुष्प्रचार नई पीढ़ी को गांधी और आजादी की लड़ाई के बारे में गुमराह करने और अपने गुनाहों पर परदा डालने के मकसद से किया जा रहा है।
अब तो हिन्दू-मुस्लिम एकता या सद्भावना की बात करनेवाले, देश की एकजुटता और वैज्ञानिक विकास को आधार देनेवाले हर नायक के खिलाफ नफरत भड़काई जा रही है। हमारे देश की बुनियाद हिलाई जा रही है।
मुझे नहीं पता यह संकट अपने साथ क्या-क्या बर्बाद करेगा लेकिन मैं गिलहरी जितनी भूमिका होते हुए भी हार नहीं मान सकती। कुछ और लोग हैं जो लड़ रहे हैं, अपनी कलम के माध्यम से, अन्य तरीकों से। वो गिनती के लोग हैं। गांधी विचार पर हो रहे हमले के खिलाफ लड़ने की जिस किसी की भी तैयारी हो, उन सबसे मेरा आग्रह है, खासकर पत्रकारिता से जुड़े लोगों से, कि एक-एक जगह, जिनका हमने जिक्र किया है, उनकी स्टोरी जरूर करें, जो और संस्थाओं को भी जोड़ सकते हैं उनपर भी लिखें। दुनिया को पता तो चले कि इस देश में कट्टरपंथी तत्त्व क्या-क्या मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। बुद्ध की मूर्तियां केवल अफगानिस्तान में नहीं तोड़ी गईं।