सोशलिस्ट घोषणापत्र : तीसरी किस्त

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(दिल्ली में हर साल 1 जनवरी को कुछ समाजवादी बुद्धिजीवी और ऐक्टिविस्ट मिलन कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें देश के मौजूदा हालात पर चर्चा होती है और समाजवादी हस्तक्षेप की संभावनाओं पर भी। एक सोशलिस्ट मेनिफेस्टो तैयार करने और जारी करने का खयाल 2018 में ऐसे ही मिलन कार्यक्रम में उभरा था और इसपर सहमति बनते ही सोशलिस्ट मेनिफेस्टो ग्रुप का गठन किया गया और फिर मसौदा समिति का। विचार-विमर्श तथा सलाह-मशिवरे में अनेक समाजवादी बौद्धिकों और कार्यकर्ताओं की हिस्सेदारी रही। मसौदा तैयार हुआ और 17 मई 2018 को, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के 84वें स्थापना दिवस के अवसर पर, नयी दिल्ली में मावलंकर हॉल में हुए एक सम्मेलन में ‘सोशलिस्ट मेनिफेस्टो ग्रुप’ और ‘वी द सोशलिस्ट इंस्टीट्यूशंस’की ओर से, ‘1934 में घोषित सीएसपी कार्यक्रम के मौलिक सिद्धांतों के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुए’ जारी किया गया। मौजूदा हालातऔर चुनौतियों के मद्देनजर इस घोषणापत्र को हम किस्तवार प्रकाशित कर रहे हैं।)

सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण

र्थिक सुधारों के सबसे महत्त्वपूर्ण पक्षों में से एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) का निजीकरण है। 1991 से केंद्र में सत्ता में आनेवाली सभी सरकारों ने इस जनविरोधी नीति को कर्तव्यपूर्वक लागू किया है और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में निजी निवेशकों को धीरे-धीरे सरकारी इक्विटी बेच रही है; कई फर्मों में तो सरकार ने बहुमत हिस्सेदारी भी बेची है और निजी क्षेत्र को प्रबंधन नियंत्रण भी सौंप दिया है। देश के लोगों की गाढ़ी कमाई की बचत से निर्मित इन सार्वजनिक उपक्रमों में इस तरह के प्रत्येक विनिवेश को कम कीमत पर किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को भारी नुकसान उठाना पड रहा है।

मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बिक्री में तेजी आयी है। इस सरकार ने केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया है जैसे कि स्टील, ऊर्जा, बीमा, दवा और फार्मास्यूटिकल्स, विमानन, भारी इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र। देश की सबसे सस्ती सार्वजनिक परिवहन प्रणाली रेलवे के निजीकरण को बड़ी तेजी से किया जा रहा है। इसका मतलब होगा कि आनेवाले दिनों में यात्री किराये में भारी बढ़ोतरी होगी। इसका असर उन करोड़ों यात्रियों पर पड़ेगा जो नित्य प्रतिदिन इस सेवा का उपयोग करते हैं।

कोयला खानों का अराष्ट्रीयकरण किया जा रहा है और निजी कंपनियों को कोयला खनन की अनुमति व्यावसायिक उद्देश्यों से दी जा रही है। बड़े बंदरगाहों को निजी हाथों में देने के लिए कानूनी प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है। यहां तक कि सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों का भी, जो हमारी वायु, थल और नौ सेनाओं के लिए हथियार बनाते हैं, निजीकरण कर दिया गया है। यह हमारी विगत छह दशकों में विकसित हो चुकी निर्माण और शोध क्षमताओं को नष्ट कर देगी। सबसे गंभीर बात यह है कि इससे हमारी रक्षा प्रणाली भी निजी निगमों के हाथ में चली जाएगी जिनमें से अधिकांश विदेशी निगमों के पास चली जाएंगी। राष्ट्रवादी भाजपा ने हमारी रक्षा तैयारियों को भी बाजार में लाकर खड़ा कर दिया है।

वित्तीय वर्ष 2017-18 में जेटली ने केंद्रीय पीएसयू के विनिवेश से एक लाख करोड़ रुपये इकट्ठा करने की व्यवस्था की थी। 2018-19 के लिए उन्होंने यह लक्ष्य 80,000 करोड़ रखा है, जिसमें एयर इंडिया का महत्त्वपूर्ण विनिवेश भी शामिल है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इससे भी अधिक विनाशकारी बात यह है कि देश का वित्तीय क्षेत्र, जिसमें हमारे सार्वजनिक बैंक, बीमा कंपनियां और यहां तक कि पेंशन और भविष्य निधि कोष तक आते हैं, को भी निजी क्षेत्र में दिया जा रहा है। बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पूंजी प्रवाह लाने के लिए भाजपा सरकार ने बीमा कानून संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए संसद में पेश किया है। यह अंततः विदेशी बीमा निगमों को भारत के बीमा क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने की दिशा में एक और कदम है। इसने राष्ट्रीयकृत बैंकों के निजीकरण की दिशा में पहले कदम के रूप में बैंकिंग बोर्ड ब्यूरो का गठन कर लिया है।

इसका मतलब हुआ कि सार्वजनिक क्षेत्र में जमा लाखों करोड़ रुपये का नियंत्रण अंततः निजी विदेशी और भारतीय निगमों के हाथ में चला जाएगा। इन जमा पूंजी का उपयोग अब राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं हो पाएगा बल्कि इसका उपयोग निजी क्षेत्र के निगम अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर तय करेंगे। सबसे खराब बात यह है कि ये निजी निगम वित्तीय कुप्रबंधन या धोखाधड़ी में भी शामिल हो सकते हैं और दिवालिया होने की घोषणा कर सकते हैं, जिससे लोगों को उनके जीवन की गाढ़ी कमाई से भी वंचित कर दिया जा सकता है।

हाल ही में, सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। वित्तीय संस्थानों की विफलता से निपटने के लिए एक फाइनेंशियल रिसॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंश (एफआरडीआई) विधेयक प्रस्तावित किया गया है (एक संभावना जो केवल तब उत्पन्न होती है जब इन संस्थानों का निजीकरण किया जाता है)। बिल के अनुसार, बैंकों के दिवालिया होने की स्थिति में लोगों के जमा का उपयोग बैंकों को जमानत देने के लिए प्रस्तावित किया जा सकता है, जिसका मतलब है कि लोगों की जमा राशि अब लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रहेगी!


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