8 सितंबर। हरियाणा सरकार द्वारा किसानों की मांगों को मानने से इनकार करने के बाद बुधवार को नेताओं और करनाल जिला प्रशासन के बीच वार्ता नाकाम रही। संयुक्त किसान मोर्चा ने फिर दोहराया है कि “शहीद सुशील काजल की हत्या के मामले में न्याय के लिए किसान दृढ़ संकल्पित हैं।”
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा जब तक एसडीएम आयुष सिन्हा को निलंबित नहीं किया जाता और मुआवजे का भुगतान नहीं किया जाता, घेराव जारी रहेगा।
मंगलवार को करनाल अनाज मंडी में किसान महापंचायत के प्रतिनिधियों और जिला प्रशासन के बीच वार्ता विफल होने के बाद किसानों ने लघु सचिवालय की ओर मार्च किया। रास्ते में एसकेएम के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया, और बाद में जब भीड़ इकट्ठा होने लगी तो उन्हें रिहा कर दिया गया। शाम करीब साढ़े सात बजे किसान लघु सचिवालय पहुंचे और घेराव शुरू कर दिया। एसकेएम के कई नेताओं समेत हजारों किसानों ने लघु सचिवालय के समक्ष सड़क पर रात गुजारी।
एमएसपी की दिखावटी घोषणा
बुधवार को केंद्र सरकार ने “एमएसपी में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि”, “किसानों के लिए असाधारण उपकार”, आदि की बयानबाजी के साथ रबी फसलों के लिए एमएसपी की दिखावटी घोषणा की। इस पर रोष जाहिर करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि तथ्य यह है कि सरकार ने वास्तविक रूप से रबी फसलों के एमएसपी को कम कर दिया है। जबकि खुदरा मुद्रास्फीति 6% है, गेहूं और चना के एमएसपी में सिर्फ 2% और 2.5% की वृद्धि की गई है। इसका मतलब है कि *वास्तविक रूप से, गेहूं और चना के एमएसपी में क्रमशः 4% और 3.5%* की कमी हुई है। आरएमएस 2022-23 के लिए गेहूं के लिए घोषित ₹ 2015 का नया एमएसपी मुद्रास्फीति के लिए समायोजित होने पर ₹ 1901 के बराबर है, जो कि आरएमएस 2021-22 के लिए गेहूं के लिए घोषित ₹ 1975 से ₹ 74 कम है। इसी तरह चना का एमएसपी वास्तविक रूप में ₹5100 से घटाकर ₹4934 कर दिया गया है। एक ओर जहां किसान डीजल, पेट्रोल, कृषि आदानों और दैनिक आवश्यकताओं की बढ़ी हुई कीमतों का खमियाजा भुगत रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी आय कम होने के कारण वे गरीब होते जा रहे हैं।
सरकार “व्यापक लागत” शब्द का भी धोखे से दुरुपयोग कर रही है जिसका उपयोग हमेशा उत्पादन की सी2 लागत को संदर्भित करने के लिए किया जाता रहा है। जैसा कि 2018 से किसान संगठनों द्वारा बताया गया है, सरकार कम लागत (ए2 + एफएल) का उपयोग करके किसानों और देश को धोखा दे रही है, और दावा कर रही है कि वह व्यापक लागत से 50% अधिक एमएसपी प्रदान कर रही है। उदाहरण के लिए, 2021-22 में, गेहूं के लिए व्यापक उत्पादन लागत (सी2) 1467 रुपये थी जो सरकार द्वारा उपयोग की जानेवाली 960 रुपये की कम लागत से 50% अधिक है। एक बार फिर, भारत के किसान पूरी ताकत से सरकार के खेल को खारिज कर रहे हैं और वास्तविक लाभकारी कीमतों की मांग कर रहे हैं, न कि काल्पनिक लाभ की।
अधिकांश किसानों के लिए एमएसपी कागजी
अंत में, एसकेएम ने यह स्पष्ट किया है कि एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के बिना, सरकार द्वारा घोषित एमएसपी अधिकांश किसानों के लिए कागज पर ही रहेगी। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बड़ी संख्या में किसानों, विशेष रूप से उन राज्यों में जहां मंडी प्रणाली कमजोर है, को अपनी फसल एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ती है। एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी किसानों की लंबे समय से मांग रही है, और एसकेएम की प्रमुख मांगों में से एक है।
इस बीच करनाल में किसानों के आंदोलन के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए पूरे हरियाणा और भारत में किसान समर्थन में आ गए हैं। राकेश टिकैत के नेतृत्व में यूपी के किसानों ने अपना समर्थन दिया, और घोषणा की कि अगर सरकार ने किसानों की मांगों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया तो वे करनाल में किसानों के साथ शामिल होंगे। झज्जर, बहादुरगढ़, शाहजहांपुर, कुरुक्षेत्र, महेंद्रगढ़ समेत कई जगहों पर सीएम खट्टर का पुतला दहन गया। किसान-मजदूर महापंचायत की सफलता के बाद भाजपा का सहयोगी अपना दल किसान आंदोलन के समर्थन में आ गया है। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया है। आरएसएस से जुड़े, भारतीय किसान संघ ने मौजूदा एमएसपी निर्धारण के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है, मौजूदा एमएसपी व्यवस्था को एक भ्रम और धोखाधड़ी बताया है।
भारत बंद की तैयारी तेज
इस बीच पूरे देश में भारत बंद की तैयारियां जोरों पर हैं। किसान संगठनों द्वारा तैयारी बैठकें और सभाएं की जा रही हैं। 29 सितंबर को उत्तर प्रदेश के तिलहर में किसान महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। 10 सितंबर को शाहजहांपुर बार्डर पर किसान संगठनों की बैठक होगी, जिसमें 33 जिलों के लोग शामिल होंगे। इस बीच गन्ना किसानों ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ भी एक आंदोलन शुरू कर दिया है, जहां 2017 से गन्ने का एसएपी नहीं बढ़ाया गया है। उत्तराखंड में किसानों का आंदोलन पूरी ताकत के साथ जारी है, और अधिक टोल प्लाजा को हर रोज मुक्त किया जा रहा है। आनेवाले दिनों में आंदोलन और तेज होगा। राजस्थान के जयपुर में 15 सितंबर को, और छत्तीसगढ़ में 28 सितंबर को किसान संसद का आयोजन किया जाएगा।