फिलिस्तीनी जनों के पक्ष में और इजराइली हिटलरशाही के विरोध में लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान का बयान

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लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान ने एक बयान जारी कर इजराइली सरकार की हिटलरी नृशंसता की घोर भर्त्सना की है और निर्दोष फिलिस्तीनी जनता पर जारी कत्लेआम के अपराधी इजराइली शासकों को दंडित करने हेतु व्यापक विश्व जनमत अभियान चलाने में अपनी सहभागिता का संकल्प लिया है।  यह ऐतिहासिक तथ्य है कि इजराइल की स्थापना ही विश्वप्रभु देशों की एक औपनिवेशिक साजिश थी। हर कदम पर फिलिस्तीनी समुदाय के साथ अन्याय किया गया। हिटलर द्वारा उत्पीड़ित यहूदियों को जर्मनी में ही बसाने के बदले फिलिस्तीन ले जाकर बसाना घोर अन्याय था। उसके बाद अमेरिकी और अन्य देशों द्वारा फिलिस्तीन को विभाजित करना और उसके पुराने निवासियों को वेस्ट बैंक और गाजापट्टी तक सीमित कर देना शुद्ध दादा गिरी था। इसके बाद भी इजरायल ने अमेरिका और युरोप संरक्षित आक्रामक विस्तारवाद के जरिए फिलिस्तीन के निर्धारित क्षेत्र को अपनी कालोनी बना लिया है। अब वह पूरे क्षेत्र से वहां के मूल निवासी फिलिस्तीनियों को दूसरे मुस्लिम देशों में निष्कासित कर देना चाह रहा है। इसी क्रम में गाजा पट्टी में 50हजार से अधिक फिलिस्तीनियों की हत्या कर दी है, जिसका बड़ा हिस्सा वे लोग हैं जो भूख मिटाने केलिए रोटी पाने की कोशिश कर रहे थे। वेस्ट बैंक में भी यहूदियों की गैर कानूनी बस्तियां बसायी जा रही हैं।

यह त्रासद विडम्बना है कि जो समुदाय नाजीवादी जैसी नृशंसता, अभूतपूर्व गणसंहार का शिकार रहा, उसी समुदाय के लिए बने राष्ट्र का शासक फिलिस्तीनी समुदाय पर वैसा ही कत्लेआम रच रहा है। जिस तरह हिटलर और उनके समर्थक यहुदियों के प्रति अपना घिनौना मनोभाव रखते थे, वैसा ही घिनौना मनोभाव इजराइल सरकार समर्थक फिलिस्तिनियों के बारे में रखते हैं। दुनिया भर के प्रताड़ित यहुदियों में समुदाय संहारी नाजी नफरत के प्रतिकार में सारे इंसानों के प्रति अदम्य सद्भाव का सृजन होना चाहिए था। उसकी जगह साम्प्रदायिक वर्चस्व और उत्पीड़न का पागलपन पनपा। यह ऐतिहासिक तथ्य विश्व मानवता के लिए एक चेतावनी है।
यह सच एक अपरिहार्य युगधर्म का मार्गसंकेत है। और वह यह है कि सामुदायिक सद्भाव की अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक सांस्कृतिक मुहिम भी निरंतर चलानी होगी।

पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ में इजराइली सरकार से युद्ध विराम करने के प्रस्ताव पर भारत सरकार को स्पष्ट समर्थन करना चाहिए था। उसकी जगह भारतीय प्रतिनिधि ने अनुपस्थित रहकर एक तरह से जनसंहार जारी रखने का समर्थन किया है। युद्ध के बारे में मोदी नजरिया अमेरिकापरस्ती की हास्यास्पद मिसाल बन गयी है। एक ओर मोदी सरकार ट्रंप के दबाव में भारतीय संप्रभुता की विरासत को तोड़ते हुए पाकिस्तान के साथ युद्धविराम कर लेते हैं। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ के युद्धविराम प्रस्ताव को नकार कर फासीवादी युद्धोन्मादी इजराइल के पीछे खड़े हो जाते हैं। उनमें 150 से ज्यादा युद्धविरोधी देशों के साथ रहने का साहस भी नहीं बचता। मोदी सरकार की यह भूमिका भारत की युद्धविरोधी मानवीय विदेश नीति की गौरवशाली विरासत पर कालिख पोतने का निंदनीय और शर्मनाक कृत्य है। इजराइल और उसके मित्र अमेरिका के आगे आत्मसमर्पण की मोदी नीति ने दुनिया के देशों में भारत के प्रति सम्मान भाव को तार तार करके रख दिया है। मोदी सरकार, विदेश मंत्रालय विश्व मानवता के लिए विनाशकारी और भारत के लिए अपमानजनक अपने इस रवैये को तत्काल बदले। निहत्थी फिलिस्तीनी जनता, निरीह औरतों और बच्चों की गोलीबारी और भूखमरी के जरिए बेमौत मारने पर रोक लगाने की मांग करे।

आज कई देश सालों से आक्रमण प्रत्याक्रमण में भिड़े हैं। चार पांच दिन पहले इजराइल सरकार ने ईरान पर भी हमला बोल दिया है। गौर करें कि अभी के ज्यादा युद्ध एशिया की धरती पर हो रहे हैं। और इन हथियारी विध्वंसों के संचालक, संरक्षक और असली हितधारक अमेरिका और कुछ पुराने उपनिवेशवादी युरोपीय देश हैं। इसमें युद्धास्त्र बनाने वाली कंपनियों का दबाव भी शामिल है । अधिकांश अरब देशों की जनता इजरायल के खिलाफ है, पर इन देशों में अमेरिका ने लोकतंत्र नहीं पनपने दिया है। इन अरब देशों के तानाशाह शासक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इजरायल और अमेरिका की मदद कर रहे हैं। जबकि पूरे दुनिया की अधिकांश जनता इजरायल द्वारा किए जा रहे अत्याचार से दुखी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की व्यवस्था शुरू से ही कमजोर थी । अब तो तानाशाह और माफिया राष्ट्रों की बेशर्म मनमानियों के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ एक सांकेतिक भूमिका में सिमट गया है।

अब नये सिरे से अपनी संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय न्याय के प्रति सचेत राष्ट्रनेताओं और विश्व नागरिकों को नया और ज्यादा समर्थ अंतर्राष्ट्रीय संघ बनाने की राजनैतिक जमीन तैयार करने के काम में भी लगना होगा।

लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान और अन्य मित्र संगठन फिलिस्तीन और ईरान के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हैं और तत्काल ईरान पर हो रहे हमले को बंद करने की मांग करते हैं।

(इन समूहों का प्रतिनिधिमंडल इन राष्ट्रों के दूतावासों में जाकर अपनी औपचारिक रूप से लिखित एकजुटता जाहिर भी करेगा।)

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