धुन के पक्के और बेपरवाह राजनारायण जी – हरीश खन्ना

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राजनारायण (15 मार्च 1917 - 31 दिसंबर 1986)

ह घटना 1978 की है। शिमला रिज मैदान पर युवा जनता की ओर से एक जनसभा थी। राजनारायण जी जो उस समय मोरारजी सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे, उनको उस जनसभा को संबोधित करना था। उस सभा की अनुमति प्रशासन ने नहीं दी। उस समय हिमाचल के मुख्यमंत्री शांता कुमार थे जो जनता पार्टी के जनसंघ घटक के थे। केंद्र में जनता पार्टी का आंतरिक कलह शुरू हो चुका था जिसमें राजनारायण जी की विशेष भूमिका थी । राजनारायण जी किसी की कहां सुनने वाले थे।

अटल बिहारी वाजपयी जो उस समय केंद्र में विदेश मंत्री थे उनकी जनसभा रिज मैदान में थोड़े दिन पहले हो चुकी थी। राजनारायण जी इस अन्याय और भेदभाव को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे! एक मंत्री की सभा को अनुमति और दूसरे मंत्री (राजनारायण जी) की सभा को अनुमति नहीं। यह तय हुआ कि सभा तो होकर रहेगी। नेताजी के स्वभाव को सब जानते थे। भड़क गए। बोले, हम सभा में आएंगे और बोलेंगे।

तय समय के अनुसार राजनारायण जी आए। मंच का संचालन राजकुमार जैन कर रहे थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण को कौन रोक सकता था, ऊपर से राजकुमार जैन। सोने पर सुहागा। राजकुमार जैन ओजस्वी भाषा में माइक पर बोले – आज परीक्षा है,  एक तरफ मंत्री राजनारायण में और दूसरी ओर समाजवादी साथी राजनारायण में। कौन असली है, आज यह तय होना है।

बस यह सुनते ही राजनारायण जी जोश में भर गए।

क्या कहा राजकुमार? मंत्री राजनारायण? अब हम मंत्री हो गए। हमें जानते नहीं हो जी?

राजनारायण के साथ लेखक

कड़क भाषा में बोले – हे शांताकुमार सुनो। उनका भाषण शुरू हो गया। इतने में पुलिस आ गई। सब तरफ अफरातफरी मच गई। मीटिंग को चलने नहीं दिया गया।  राजनारायण जी को सम्मान सहित पुलिस अलग से ले गई, क्योंकि वह केंद्रीय मंत्री थे। उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था। ‘युवा जनता’ के लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। राजकुमार जैन, मार्कंडेय सिंह, प्रोफेसर विनय कुमार मिश्र, श्याम गंभीर, सुधीर गोयल सहित हम कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। शिमला जैसी छोटी सी जगह में सैकड़ों युवकों की गिरफ्तारी हुई। वहां की जेल छोटी पड़ गई। शिमला में इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में लोग कभी गिरफ्तार नहीं हुए थे। कई  लोगों को दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। हम लोगों को शिमला जेल में डाल दिया गया।

अगले दिन अदालत में पेश किया गया। हमारे नेता प्रोफेसर  विनय कुमार मिश्रा थे। पुराने समाजवादी थे। अलग तरह के स्वभाव के थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के श्यामलाल कॉलेज में अंग्रेजी  के प्रोफेसर थे। उनके नेतृत्व में ‘युवा जनता’ का यह आयोजन हुआ था। उनकी विशेषता थी बड़े स्मार्ट, क्लीन शेव, साफ-सुथरे, कलफ लगा हुआ और प्रेस किया हुआ सफेद खादी का कुर्ता-पायजामा पहनते थे । बड़ा आकर्षक व्यक्तित्व था। हमसे काफी सीनियर थे। सभी लोग उनका आदर करते थे। अदालत में जब पेश किया गया तो उन्होंने जज के सामने अपना पक्ष रखा।

हालांकि कई वकील भी हमारे समर्थन में वहां उपस्थित थे। अदालत हमें रिहा करना चाहती थी पर प्रोफेसर विनय कुमार मिश्रा ने कहा कि चूंकि सभी गिरफ्तार लोग शिमला में बाहर से आए हैं लिहाजा सरकार का दायित्व बनता है कि उनको घर जाने तक का किराया राज्य सरकार दे। इसके लिए अदालत के सामने इस सम्बन्ध में कई धाराएं पेश की गईं। अदालत दुविधा में पड़ गई और सरकारी वकील इसका विरोध कर रहा था। लिहाजा जहां तक मुझे याद है, हमें वापिस जेल भेज दिया गया और अगले दिन हमें अदालत में फिर पेश किया गया। अदालत ने हमें रिहा तो कर दिया पर वापिस जाने के लिए किराया दिया जाए या नहीं इसका निर्णय बाद में होगा यह कहकर इसके लिए कई दिन बाद की तारीख डाल दी गई। इस बहाने थोड़े दिन शिमला में ठहरे भी।

सवाल सिद्धांत का और लोकतंत्र का था। एक मंत्री को रिज मैदान में मीटिंग करने की अनुमति और (दूसरे मंत्री) राजनारायण जी को नहीं। यह कैसे हो सकता है? राजनारायण जी जैसा बब्बर शेर जिसको कोई मंत्री पद या पिंजरा बांध नहीं सकता था, जिनके पीछे प्रोफेसर विनय कुमार मिश्रा, मार्कंडेय सिंह, राजकुमार जैन जैसे युवा लोग लोकतंत्र के सवाल पर अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा लेकर खड़े रहते थे। राजनारायण जी की इस बगावत का असर यह हुआ कि मोरार जी देसाई जो कि उस समय प्रधानमंत्री थे, उन्होंने नेताजी की इस घटना को बड़ी गंभीरता से लिया।

कई अन्य कारणों सहित इस घटना के कुछ ही दिनों बाद जनवरी 1979 में राजनारायण जी को मंत्री पद से हटा दिया गया। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। अपनी ज़िद और धुन के पक्के राजनारायण जी ने पार्टी के भीतर लोकतंत्र, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर अपना संघर्ष जारी रखा और यह लड़ाई तब तक चलती रही जब तक मोरारजी भाई की सरकार गिर नहीं गई। उनकी स्मृति को शत शत नमन और श्रद्धांजलि।

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