30 सितंबर। 2 अक्तूबर को बिहार के मोतिहारी से एक अनूठी किसान यात्रा का आरम्भ होने की तैयारी है। ओड़िशा के गांधीमार्गी समाजसेवक अक्षय भाई की पहल पर गांधी की पहली पाठशाला के रूप में प्रसिद्ध मोतिहारी के भिथिहरवा गाँव से कई सौ किसानों का एक जत्था दिल्ली न जाकर वाराणसी की ओर प्रस्थान करेगा क्योंकि इनका मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसान विरोधी कानूनों के बारे में उनकी पिछले कई महीनों की हठधर्मिता की शिकायत वाराणसी के मतदाताओं से करना जरूरी हो गया है। आखिर वाराणसी के लोगों के ही कन्धों पर चढ़कर श्री मोदी दो बार से लोकसभा में पहुंच कर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं।
लेकिन इस यात्रा का उद्देश्य तीन किसान विरोधी काले कानूनों की वापसी से आगे की समस्याओं को सुलझाना भी है। इसीलिए इसे ‘दवाई-कमाई-पढ़ाई-महंगाई’ से जुड़े राष्ट्रीय प्रश्नों का उत्तर तलाशने की ही यात्रा के रूप में संयोजित किया गया है।
अक्षय भाई की सूझबूझ से इस यात्रा के साथ राष्ट्रीय स्तर पर किसान संघर्ष समन्वय समिति का सहयोग है और स्थानीय स्तर पर हर जिले के नागरिक संगठनों की साझी स्वागत समितियों का तानाबाना बनाया गया है। इस प्रकार यह यात्रा एक साथ तीन काम करने का आधार बन सकती है –
1. किसान आंदोलन को दवाई-कमाई-पढ़ाई-महंगाई के राष्ट्रीय संकट के समाधान से जोड़ना।
2. बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश के सरोकारी नागरिकों को किसान आंदोलन से जोड़ना, और
3. सभी लोकसभा सदस्यों को अपने चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति जवाबदेह बनाना।
यह खुशी की बात है कि किसान आंदोलन के राष्ट्रीय नेतृत्व के कई प्रमुख व्यक्तियों की 2 अक्टूबर को यात्रा के प्रस्थान स्थल पर उपस्थिति रहेगी। इससे गांधी की विरासत का किसान आंदोलन से जीवंत संबंध बनेगा। बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों के सच का पंजाब-हरियाणा-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँवों के सवालों से समन्वय बनेगा। यह भी है कि आत्ममुग्ध सत्तारूढ़ दलों के गठबंधन की आँखें अंबानी-अडानी के स्वार्थों से हटकर करोड़ों किसानों की समस्याओं के समाधान की तलाश में जुटेंगी।
अक्षय भाई और उनके साथियों ने एक परचा जारी करके प्रधानमंत्री से दस सवाल पूछे हैं-
1. लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक निर्णय क्यों? 500 से ज्यादा मौतों के बाद भी किसानों से मिलने के लिए आपकी संवेदना क्यों नहीं जगी?
2. तीनों काले कानून कब वापस होंगे?
3. एमएसपी पर कानूनी गारंटी क्यों नहीं?
4. नौजवानों के रोजगार पर फैसला कब?
5. महिलाओं और परिवार को महंगाई से राहत क्यों नहीं?
6. कोरोना से दिखाई दिए विफल स्वास्थ्य सिस्टम की जिम्मेदारी किसकी?
7. पढ़ाई, दवाई, कमाई, महंगाई, उचित मूल्य जैसे जरूरी सवाल सत्ता में आने के इतने साल बाद भी आपके एजेंडे में क्यों नहीं?
8. मजदूरों के पलायन और असमानता का जिम्मेदार कौन?
9. कॉरपोरेट और विदेशी कंपनियों के हाथ की कठपुतली सरकार कब तक बनी रहेगी?
10. प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध लूट की छूट कब तक?
इस सामयिक किसान पहल के सूत्रधारों को इस बात की जरूर चिंता है कि यदि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने किसानयात्रा को वाराणसी पहुँचने की अनुमति नहीं दी तो क्या होगा? कोई विवेकविहीन सरकार ही इस तरह के शांतिपूर्ण जनतांत्रिक कार्यक्रम को रोकेगी। लेकिन विनाश के पहले विवेक मर जाता है और कोई भी विनाश की ओर बढ़ रही सरकार द्वारा इस प्रकार का प्रतिबंध लगाना संभव है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के मौजूदा नायकों को जानना चाहिए कि ऐसी आत्मघाती कोशिश का परिणाम सत्याग्रह भी हो सकता है। फिर साँप-छंछूदर वाले हालात हो जाएँगे- देशभर से जुट रहे गांधी मार्गी किसानों को न निगलते बनेगा, न उगलते बनेगा…
– आनंद कुमार