16 सितंबर। संयुक्त किसान मोर्चा ने अन्य देशों के किसान संगठनों से अपील की है कि भारत में दिल्ली की सरहदों पर 26 नवंबर से चल रहे किसान आंदोलन की पहली वर्षगांठ को अन्य देशों के किसान संगठन भी मनाएं। इस अपील में किसान मोर्चा ने कहा है कि खाद्य व्यवस्था और कृषि प्रणाली पर कॉरपोरेटीकरण किसी के भी हित में नहीं है इसलिए पूरी दुनिया में इसका विरोध होना चाहिए। भारत के किसान इस समय खेती और खाद्य को कॉरपोरेट के नियंत्रण में दिये जाने के खिलाफ लड़ रहे हैं और छह सौ से ज्यादा किसानों की शहादत के बाद भी बहादुरी से डटे हुए हैं।
मोर्चा ने कहा है कि मोदी सरकार के लाये तीन कृषि कानून खेती-किसानी पर कॉरपोरेट का जबर्दस्त हमला है। इस हमले को नाकाम नहीं किया गया तो खेती-किसानी कॉरपोरेट के नियंत्रण में चली जाएगी और इसका खमियाजा न सिर्फ किसानों को बल्कि आम उपभोक्ताओं को भी भुगतना होगा। किसान जहां कंपनियों के गुलाम हो जाएंगे वहीं खाने-पीने की चीजें महंगी होती जाएंगी और उस महंगाई पर कोई सरकार रोक लगाना भी चाहे तो रोक नहीं लगा सकेगी, क्योंकि उसके हाथ कानूनन बँधे होंगे। इसीलिए ये तीनों कृषि कानून किसानों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गये हैं और तमाम किसान संगठन ठान चुके हैं कि इन्हें रद्द कराएंगे ही।
बिरसा मुंडा जयंती मनायी गयी
संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार को बिरसा मुंडा की जयंती मनायी। बिरसा मुंडा को आदिवासी भगवान मानते हैं, ने आदिवासी अस्मिता के प्रतीक बन चुके हैं। उन्हें याद करते हुए किसान मोर्चा ने कहा कि आज आदिवासी सबसे ज्यादा कॉरपोरेट के हमले झेल रहे हैं, उनकी जमीनें कंपनियों को दी जा रही हैं। उन्हें उजाड़ा जा रहा है। उनके हक में बने कानून लागू नहीं किये जाते हैं और अब उन कानूनों में तरह-तरह के संशोधन करके उन्हें निरर्थक बनाने की कवायद चल रही है। आदिवासी विस्थापन और अत्याचार के खिलाफा आवाज उठाते हैं तो उन्हें नक्सली करार देकर मारा जाता है। जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों के हक सुनिश्चित करना ही बिरसा मुंडा को सही श्रद्धांजलि होगी।
करतार सिहं सराभा और उदा देवी को श्रद्धांजलि
मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने शहीर सरदार करतार सिंह सराभा को श्रद्धांजलि अर्पित की। गदर पार्टी के सराभा ब्रिटिश हुकूमत और दमन के खिलाफ लड़ा था। उन्हें 106 साल पहले 16 नवंबर को लाहौर जेल में फाँसी दी गयी थी। तब वह सिर्फ 19 साल के थे। भगतसिंह उन्हें अपनी प्रेरणा-स्रोत मानते थे।
संयुक्त किसान मोर्चा ने वीरांगना उदा देवी पासी को भी याद किया, मंगलवार को जिनका शहादत दिवस था। उदा देवी 1857 की लड़ाई की एक दलित योद्धा थीं और उन्होंने सिकंदर बाग की लड़ाई में गोरी फौज का मुकाबला करते हुए शहीद हुई थीं। एक तरफ देश में कुछ लोग स्वाधीनता संग्राम को नकारने और शहीदों का अपमान करने में लगे हुए हैं और दूसरी तरफ किसान आंदोलन ने पिछले एक साल में आजादी की लड़ाई के हर नायक-नायिका को याद किया है। जाहिर है, किसान आंदोलन ने देश में न सिर्फ सत्याग्रह का जज्बा फिर से जगाया है बल्कि हमारी विरासत और प्रेरणादायी इतिहास को भी रेखांकित किया है।