— प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन —
सन 1968 में दिल्ली में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के हमारे नेता थे, साथी सांवलदास गुप्ता। गुप्ता जी की रहनुमाई में मुसलसल धरना-प्रदर्शन, गिरफ्तारी, मोर्चा, हंगामी जलसा का प्रोग्राम चलता रहता था। कांग्रेस पार्टी का राज मरकज से लेकर ज़्यादातर सूबों तक कायम था। भारतीय जनसंघ (भाजपा) पहली बार दिल्ली की म्यूनिसिल कमेटी में काबिज हो पाया था। कांग्रेस पार्टी द्वारा धरना प्रदर्शन इत्यादि की कोई गुंजाइश होती ही नहीं थी। भारतीय जनसंघ तथाकथित रचनात्मक कार्यों तक सीमित था। मज़दूरों, किसानों, झुग्गी और झोपड़ियों, दलितों, मेहनतकशों के सवालों से इनका कोई वास्ता नहीं था, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् राजनीति से परहेज़ करती थी। उनका कहना था कि विद्यार्थियों को राजनीति से दूर रहना चाहिए। जनसंघ सरमायेदारों की तरफदार पार्टी थी।
दिल्ली के सोशलिस्टों की कहानी एकदम उलट थी- कोई दिन ऐसा नहीं जाता था जब सोशलिस्टों की तरफ से कोई मोर्चा न लगा हो। यदा कदा कांग्रेस और जनसंघ के नेताओं के भाषण बेमजा, नीरस एक ही ढर्रे पर होते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी अपवाद थे। सोशलिस्टों के जलसों में खूब रौनक रहती थी, कांग्रेस, जनसंघ के स्थानीय नेता, कार्यकर्ता भी दूर खड़े होकर भाषण सुनते थे।
गुप्ता जी ने एक बैठक कनाट प्लेस के सेंट्रल पार्क में बुलायी तथा कहा कि बाराखंबा रोड, नयी दिल्ली के ‘माॉर्डन स्कूल’ पर प्रदर्शन करना है। मॉर्डन स्कूल उस दौर का बहुत ही नामी, पैसेवालों के बच्चों का स्कूल था। सोशलिस्टों का नारा था-
डॉ॰ लोहिया का अरमान
सबको शिक्षा एक समान
राष्ट्रपति का बेटा हो
या चपरासी की संतान
सबको शिक्षा एक समान। वगैरह वगैरह।
गर्मी के दिन थे, तय वक्त पर दिल्ली के सोशलिस्ट मॉर्डन स्कूल के गेट पर पहुँच गए थे। पुलिस को पहले ही इत्तला मिल चुकी थी, पुलिस भी मुस्तैदी से तैनात थी क्योंकि दिल्ली के बड़े ओहदेदारों के बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ते थे।
ज़ोर से नारा लगा-
इन्क्लाब जिंदाबाद
डॉ. लोहिया अमर रहे।
डॉ. लोहिया का अरमान
सबको शिक्षा एक समान
कमाने वाला खाएगा
लूटने वाला जाएगा
नया ज़माना आएगा
नेताओं का भाषण चल ही रहा था कि साथी सुदर्शन राही, रघुवीर सिंह कपूर, बलवंत सिंह अटकान इत्यादि हाथ में पार्टी का झण्डा लिये नारा लगाते हुए, स्कूल के गेट पर चढ़कर अंदर जाने का प्रयास करने लगे, धक्का-मुक्की शुरू हो चुकी थी। उस वक्त रिवाज था कि जब भी सोशलिस्ट पार्टी का मुजाहरा होता था तो दिल्ली पुलिस की जेल ले जानेवाली सींकचोंवाली लारी मौके पर मौज़ूद रहती थी। धर-पकड़ शुरू हो गयी, पुलिस की लारी में सबको बंद कर तिहाड़ जेल पहुँचा दिया गया। गिरफ्तार होनेवालों में अन्य साथियों के अलावा, इस किस्से से जुड़े हमारे नेता प्रो. विनय कुमार मिश्रा तथा डॉ. सलीमन भी थी।
दो दिन बाद नई दिल्ली की जिला अदालत में हमारी पेशी थी। अदालत की कार्यवाही अभी चल ही रही थी कि डॉ. सलीमन को किसी ने बतलाया कि ‘अम्मीजान’, यह जज साहिबा अभी कंवारी ही है। डॉ. सलीमन, एक बुजुर्ग महिला थीं। हालाँकि वे दाई का काम करती थीं, परंतु हम लोग उन्हें अदब से ‘अम्मी जान’, ‘डॉ. साहिबा’ कहते थे। वे सोशलिस्ट पार्टी के हर जलसे जुलूस मुजाहरे में जेल जाने को शामिल रहती थीं। न जाने उन्हें क्या सूझा कि उन्होंने कड़क आवाज़ में जज साहिबा की तरफ़ मुखातिब होकर कहा कि बेटी तू फ़िक्र न कर , मैं तेरी शादी अपने ख़ूबसूरत बेटे विनय कुमार के साथ करवा दूँगी। अदालत में सन्नाटा छा गया, जज साहिबा गुस्से से तमतमा गयीं, उन्होंने आव देखा न ताव, एक महीने की सजा सुनाकर जेल ले जाने का हुक्म सुना दिया।
तिहाड़ जेल में ले जाकर हमको बंदी बना दिया गया। गर्मी के दिन थे, मोटे मच्छर दिन रात काटते थे, रात को सोना मुश्किल था। हमारे साथी मदनलाल हिंद के साथ उनकी माता जी भी प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तार होकर आयी थीं। रात में मच्छर जब मदनलाल जी को काटते थे तो वो कहते थे कि विनय कुमार जी की कम से कम बातों में ही सही जज साहिबा के साथ शादी तो हो गयी, परंतु हम बारातियों का खून पीने के लिए ये मच्छर दहेज में साथ आ गये।
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