8 दिसंबर। हिंदी के जाने-माने लेखक और पत्रकार यशस्वी लेखक और पत्रकार रघुवीर सहाय और मंगलेश डबराल को 9 दिसम्बर को याद करेंगे तथा उनकी स्मृति को प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाएंगे।
गौरतलब है कि 9 दिसम्बर को रघुवीर सहाय की 92वीं जयंती है और मंगलेश डबराल की पहली पुण्यतिथि। गत वर्ष कोरोना के कारण श्री डबराल का निधन हो गया था।
प्रेस क्लब में 9 दिसम्बर को आयोजित होने जा रहे इस समारोह में हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, आलोचक एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी द्वारा संपादित ‘प्रतिरोध पूर्वज’ नामक पुस्तक का लोकार्पण किया जाएगा जिसमें 22 दिवंगत कवियों की प्रतिरोध कविताएं शामिल हैं। इसके अलावा स्व. डबराल पर लिखे गए संस्मरणों की एक किताब का भी लोकार्पण होगा जिसका सम्पादन स्वप्निल श्रीवास्तव ने किया है। इसके साथ ही वरिष्ठ कवि विमल कुमार के नए काव्य संग्रह का भी विमोचन होगा जिसमें कोरोना काल में लिखी गयीं प्रतिरोध की कविताएं हैं।
समारोह में प्रख्यात लेखक अशोक वाजपेयी, लब्धप्रतिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष विभूति नारायण राय, जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष असग़र वज़ाहत, दलित लेखक संघ के अध्यक्ष हीरालाल राजस्थानी, जन संस्कृति मंच के अशोक भौमिक को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है।
समारोह में सर्वश्री प्रयाग शुक्ल, इब्बार रब्बी, गिरधर राठी, पंकज बिष्ट, रामशरण जोशी, विष्णु नागर, असद ज़ैदी, कुलदीप कुमार, अजेय कुमार, संजीव कुमार, गोपाल प्रधान, देवीप्रसाद मिश्र, प्रियदर्शन, संजय कुंदन, आशुतोष कुमार आदि भी मौजूद रहेंगे।
इस अवसर पर एक प्रस्ताव भी पारित किया जाएगा जिसका मसौदा इस प्रकार है-
प्रतिरोध दिवस प्रस्ताव
हिंदी के यशस्वी कवि-पत्रकार रघुवीर सहाय और मंगलेश डबराल की स्मृति में आयोजित यह सभा पहले तो कोविड में हमसे बिछड़ने वाले लेखकों और देश में शहीद होनेवाले किसानों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
यह सभा देश में दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक शक्तियों और लोकतंत्र की आड़ में फासीवादी ताकतों के उभार तथा सत्ता तथा क्रोनी कैपिटलिज्म के गठबंधन पर गहरी चिंता व्यक्त करती है और पत्रकारों को संसद में जाने से रोकने का कड़ा विरोध करती है तथा लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों से अपील करती है कि देश में नित्य गढ़े जा रहे झूठ का पर्दाफाश करें तथा सत्य और न्याय के पक्ष में खड़े हों एवं संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए आगे आएं।
यह सभा करीब एक साल चले किसान आंदोलन, सीएए विरोधी आंदोलन और देश में चल रहे आदिवासियों, दलितों तथा स्त्रियों के संघर्ष का समर्थन करती है और एक धर्मनिरपेक्ष, शोषण रहित, समतामूलक, न्यायप्रिय समाज बनाने की परिकल्पना में विश्वास रखती है।
यह सभा देशभर की लघु पत्रिकाओं और प्रगतिशील-जनवादी मूल्यों में यकीन करनेवाली संस्थाओं से अपेक्षा करती है कि आनेवाले वर्षों में वे वर्तमान चुनौतियों के मद्देनजर प्रतिरोध के साहित्य पर ध्यान केन्द्रित करते हुए विशेषांक निकालें और कार्यक्रम आयोजित करें।
सभा यह भी अपील करती है कि अगले वर्ष प्रेमचन्द जयंती 31जुलाई से लेकर 31 जुलाई 2023 तक हम प्रतिरोध वर्ष मनाएं। इस दौरान अधिक से अधिक प्रतिरोध साहित्य लिखा जाए, संगोष्ठियों को आयोजित किया जाए, रचना पाठ किये जाएँ तथा किताबों का प्रकाशन हो।
सभा चाहती है कि हिंदी के लेखकगण साहित्य की प्रगतिशील परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आजादी के दौरान लिखने वाले उन क्रांतिकारियों, लेखकों की स्मृति में कार्यक्रम करें और ऐसे साहित्य के प्रचार-प्रसार पर ध्यान दें और सोशल मीडिया पर भी उसका प्रचार-प्रसार करें।
यह सभा यह भी प्रस्तावित करती है कि लेखकों के प्रतिरोध सम्मेलन दिल्ली, भोपाल, लखनऊ, पटना, चंडीगढ़, जयपुर, कोलकाता, मुम्बई, बनारस, इलाहाबाद जैसे तमाम शहरों में हों। प्रेमचन्द, निराला, मुक्तिबोध, महादेवी, ओमप्रकाश वाल्मीकि आदि की स्मृति में जब समारोह हो तो उसे प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया जाए।