सामाजिक न्याय और जातिवाद – डॉ योगेन्द्र
बिहार चुनाव -25 ने बहुतों की कलइ खोली है। सरकार और चुनाव आयोग तो चौराहे पर नंगा खड़ा ही है, साथ ही सामाजिक न्याय की खोल में छुपे जातिवादी लोगों के कपड़े भी तार...
मुख्यमंत्री का कारुणिक अवसान बहुत कुछ कहता है – डॉ योगेन्द्र
ठंड हल्की फुल्की ही है। शीशे की खिड़कियों से आम के पेड़ों पर चिड़िया बैठी दिखाई दे रही है। सूरज उग कर पूरब क्षितिज पर दस्तक दे रहा है। जहां मैं हर सुबह टहलता...
बिहार का नया मंत्रिमंडल और परिवारवाद – परिचय दास
बिहार में नवम्बर , 2025 में बने नए मंत्रिमंडल की गंभीर विश्लेषण यह दर्शाता है कि पारिवारवाद (डायनैस्टिक पॉलिटिक्स) और वंशवाद की राजनीति इस सरकार की संरचना में एक स्पष्ट कारक है — और...
निठारी अकेला गांव नहीं है, जहां न्याय की गली बंद है – प्रियदर्शन
जर्मन कवि बर्तोल्त ब्रेख्त की पंक्तियां हैं- "हम सबके हाथ में/ थमा दिए गए हैं/ छोटे-छोटे न्याय/ताकि जो बड़ा अन्याय है, उस पर परदा पड़ा रहे।' लाल किले के पास बम धमाके के बाद...
बिहार के चुनावी दंगल में बदजुबानी की कोई हद ही नहीं! – प्रोफेसर राजकुमार...
बिहार का चुनावी दंगल पूरे जोश खरोश के साथ उफ़ान पर है। इसके मुतालिक जो खबरें या भविष्यवाणी हो रही है, उसमें दो तरह की रपट पढ़ने को मिल रही है। एक तबका...
मोदी-शाह के भाषणों में ‘पीके’ पर हमला सुना क्या? – श्रवण गर्ग
चौदह नवंबर को जिस रहस्य से पर्दा उठने वाला है वह यह नहीं होगा कि बिहार के कश्मकश भरे चुनावों में जीत किसकी होने वाली है ! इस बात से उठेगा कि मोदी, ममता,...
पंत प्रधान की लज्जाजनक शब्दावली – राकेश अचल
बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के पहले ही दिन पंत प्रधान श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की शब्दावली सुनकर मुझे एक बार फिर एक भारतीय होने के नाते शर्मिंदगी महसूस हुई. पहली बार लगा कि...
इन दिनों सनातनियों की बंद आंखें – डॉ योगेन्द्र
सनातन धर्म में ईश्वर के सामने सब बराबर है या सबकी हैसियत अलग-अलग है? चमार, दुसाध, भंगी आदि के ईश्वर और ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार के ईश्वर एक हैं या वे भी अलग अलग हैं?...
देश से ज्यादा विदेश में क्यों बोलते हैं मुख्य न्यायाधीश? – राकेश अचल
भरी इजलास में अपनी और हवा में उछाला हुआ जूता देखकर अविचलित रहे मुख्य न्याधीश जस्टिस बीआर गवई उन गिने लोगों में शुमार किए जा सकते हैं जो राहुल गांधी जैसे हैं. जस्टिस गवई...
कांशीराम की पुण्यतिथि व बसपा का भविष्य – परिचय दास
।। एक ।।
कांशीराम की पुण्यतिथि पर बहुजन राजनीति के अर्थ को फिर से समझने की ज़रूरत है। वे उस भारत से निकले व्यक्ति थे जो जाति की परछाइयों में पिस रहा था पर उन्होंने...
















