हमें फ़ख्र है कि हमने उस महामानव से बात की है

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— प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन — (दूसरी किस्त ) सन 1939 में जब गांधीजी सीमा प्रांत के दौरे पर गए तो बादशाह ख़ान ने गांधीजी से कहा था :...

वनाधिकार कानून कहां है

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— नवनीश कुमार — हाल ही में गोरे अंग्रेजों के समय के दमनकारी ''देशद्रोह'' कानून की वैधता पर हैरानी जताते हुए सरकार से पूछा है...

लहू बोलता भी है

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— प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन — सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी की किताब का टाइटल ‘लहू बोलता भी है’ पढ़कर शुरू में अटपटा सा लगा, क्‍योंकि लहू खौलता...

नशा और नंगई के बीच नौनिहाल!

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— जयराम शुक्ल — अब यह बताने की जरूरत नहीं कि मासूमों के साथ बलात्कार फिर हत्या जैसे अपराधों का सैलाब क्यों तेजी से उफनने...

राष्ट्रपिता और फादर

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— कुमार कलानंद मणि — सन 1922 में गांधीजी को यरवदा जेल में रखा गया था। जेल के सुपरिटेंडेंट मेजर जोंस को लगा कि गांधीजी...

गांधीवादी संस्थाओं पर गिद्ध-दृष्टि

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— जागृति राही — गांधी विचार की संस्थाओं, आश्रमों में घुसपैठ और उन पर कब्जे की कोशिश बीजेपी की सरकारें और संघ के समर्थक लगातार...

राहुकाल से लोकतंत्र के निकलने की शेषकथा

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— जयराम शुक्ल — (तीसरी और अंतिम किस्त ) चाटुकारिता भी कभी-कभी इतिहास में सम्मान योग्य बन जाती है। आपातकाल  के उत्तरार्ध में यही हुआ। देशभर से...

अनुशासन के नाम पर यातना पर्व

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— जयराम शुक्ल — आपातकाल पर मेरे दो नजरिए हैं, एक- जो मैंने देखा, दूसरा- जो मैंने पढ़ा और सुना। चलिए पहले से शुरू करते हैं। वो स्कूली...

अर्थी को कंधा भी नसीब नहीं

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— प्रो. राजकुमार जैन — कोरोना की महामारी से हो रही मौतों के खौफ़ के कारण पुरानी कहावतें भी बेमतलब हो गई हैं। बचपन से...

हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या इतने कमजोर हैं!

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— शिवानंद तिवारी — बिहार आंदोलन के दरमियान पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश जी की सभा होने वाली थी। तारीख का स्मरण नहीं है।...